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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-59 (विषय: सफ़र)

आदरणीय साथियो,
सादर नमन।
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-59 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है. प्रस्तुत है:
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-59
विषय: सफ़र
अवधि : 28-02-2020 से 29-02-2020
.
अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फ़ॉन्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है।
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाए रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पाएँ इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। गत कई आयोजनों में देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद ग़ायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आसपास ही मँडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया क़तई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ-साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा ग़लत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताए हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिसपर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फ़ोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने /लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें।
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

हार्दिक आभार आदरणीय रवि भसीन जी 

आदरणीय प्रतिभा पांडे जी आपके द्वारा जिस सरल, सहज और सार्थक ढंग से लवलघुकथा कही है वह तारीफे काबिल है । हार्दिक बधाई आपको इस लघुकथा के लिए।

हार्दिक बधाई आदरणीय प्रतिभा पांडे जी।बेहतरीन संदेश प्रद लघुकथा।

बिलकुल सीधी रेखा में बगैर उतार चढ़ाव के बहती हुई यह लघुकथा, वह बात कह गयी जिसे कहने के लिए यह लघुकथा लिखी गयी होगी, बहुत ही सुन्दर लघुकथा। बहुत बहुत बधाई आदरणीया प्रतिभा पांडे जी.

आदरणीया प्रतिभा दीदी, सादर नमन! विषयानुरूप एक सहज और सन्देशप्रद लघुकथा कहिआआपने , हार्दिक बधाई।

लघुकथा : धड़कनों का सफर

             "या अल्लाह! जान को ये कैसा धड़की का रोग लग गया है। दिल है कि सीने में इतनी जोर से दौड़ रहा है मानों चीर कर बाहर ही आ जाएगा।" "ऊपर से कश्मीर का भयंकर जाड़ा।चारों तरफ बर्फ ही बर्फ।" "सभी अपने घरों में बन्द हैं। बुलाऊँ भी तो किसे और कैसे? मैं अकेली जान.... आह्ह्ह...।" "राशिद के बाबा की पेंशन भी आधे महीने में ही खत्म हो गई " "एक सिपाही को पेंशन मिलती ही कितनी है" "ऊपर से मरा ये जानलेवा रोग राशन के पैसे भी खा गया। आज कई दिनों से शरीर को पूरी खु़राक भी तो नहीं मिल पा रही।" "ऊफ्फ्फ... ये ठंड बदन में घुसी जा रही है उस पर धड़कन का धड़धड़ा लगातार बढ़ता ही तो जा रहा है।" "लगता है बस अब सफर पूरा होने वाला है।" "यह राशिद भी चार पांच महीनों से न जाने कहाँ गायब हो गया है। कहता था अम्मी तू फिकर न कर...तेरी आखिरी ख्वाहिश जरूर पूरी करूंगा...तुझे अब्बू के आगोश में ही दफ्न करूंगा... सिपाही का बेटा होकर भी न जाने किन दहशतगर्दों के फेर में है..." "रा शि द जल्दी आ बेटा मेरे सफर का वक्त हो रहा है...।" "उफ्फ्फ, शरीर बर्फ हुआ जा रहा है, चलूं वह कुर्सी पड़ी है उसे जला कर ही कुछ आग पैदा करूं...कुछ गूदड़े डाल दूं तो जल्दी आग पकड़े शायद...चल धीरे धीरे जलना शुरू किया तो...पर बहुत धीरे है...कुछ और गूदड़े डालूं...ओह्ह ..ये धड़कन...ये धड़कन.. आह्ह..." "रा....शि....द...." "....."

मौलिक एवं अप्रकाशित

आदाब। वाह! प्रदत्त विषय को कितने उम्दा कथानक और उम्दा शैली में विधागत जिया गया है इस रचना में! धड़कनों का सफ़र कश्मीर की ठण्डी वादियों में एक बुज़ुर्ग माँ की पीड़ाओं व तमन्नाओं को बाख़ूबी उभारती लघुकथा। हार्दिक बधाई मुहतरमा कनक हरलाल्का साहिबा। टंकण व प्रस्तुति बेहतर करने पर ग़ौर फ़रमाइयेगा।

हार्दिक आभार आ0 शेखसाहब। आपकी सलाह पर गौर करने की चेष्टा करूंगी.।

अपने भटके हुए बेटे को याद करती हुई एक माँ के अंतिम सफ़र तक जाने की गाथा को एकालाप शैली में लिखने का अच्छा प्रयास किया है आ० कनक हरलालका जीl एक ही संवाद को कई-कई इनवर्टेड कॉमास में लिखने से सम्प्रेष्ण कमज़ोर हुआ हैl बहरहाल इस प्रदत्त विषयानुकूल लघुकथा पर मेरी हांर्दिक बधाई स्वीकार करेंl   

आ0 योग राज सर कथा पर समय देने के लिए हार्दिक आभार। दरअसल एकालाप तरीके में लिखने के लिए वार्तालाप में समय के अन्तराल को दर्शाने के लिए ही बार बार इन्वर्टेड कॉमा का प्रयोग किया है।क्योंकि बातें एक साथ नहीं बल्कि काफी समय के पश्चात ही कही गई है ।कृपया अपना मनतव्य व सही क्या हो सकता है अवश्य बतलाएं..।

बहुत बढ़िया रचना प्रदत्त विषय पर लेकिन अन्य गुणीजनों की बात पर गौर कीजिये. बहरहाल बधाई इस बढ़िया रचना के लिए आ कनक हरलालका जी

मार्मिक लघुकथा  साँसों के अंतिम  सफ़र पर . बधाई आदरणीया कनक जी 

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