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(प्रति चरण 8+8+8+7 वर्णों की रचना)

देखा अजब तमाशा, छायी दिल में निराशा,
चार गीदड़ ले गये, मूँछ तेरी नोच के।
सोये हुए शेर तुम, भूतकाल में हो गुम,
पुरखों पे नाचते हो, नाक नीची सोच के।।

पूर्वजों ने घी था खाया, नाम तूने वो गमाया,
सूंघाने से हाथ अब, कोई नहीं फायदा।
ताव झूठे दिखलाते, गाल खूब हो बजाते,
मुँह से काम हाथ का, होने का ना कायदा।।

हाथ धरे बैठे रहो, आँख मीच सब सहो,
पानी पार सर से हो, मुँह तब फाड़ते।
देश में है लोकतन्त्र, फैला पर भ्रष्टतन्त्र,
दोष एक दूसरे को, दे के हाथ झाड़ते।।

ग़ुलामी की ठण्ड शख्त, जमा गयी तेरा रक्त,
आज़ादी की कड़ी धूप, पिघला न पायी है।
चाहे देश प्रतिशोध, कोई न बर्दाश्त रोध,
जागो भाग्य विधाताओं, मर्यादा लजायी है।।

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on February 21, 2019 at 5:23pm

आदरणीय बासुदेव शरण अग्रवाल जी बहुत अच्छी रचना के लिए हार्दिक शुभकामनाएं

Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on February 20, 2019 at 8:33pm

आदरणीय समर साहिब बहुत आभार।

Comment by Samar kabeer on February 19, 2019 at 2:19pm

जनाब बासुदेव जी आदाब,सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।

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