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नवगीत:रैली, थैली, भीड़-भड़क्का सजी हुई चौपाल

एक नवगीत 

समीक्षा का हार्दिक स्वागत 

रैली, थैली, भीड़-भड़क्का, 
सजी हुई चौपाल


तंदूरी रोटी के सँग है,
तड़के वाली दाल

गली-गली में तवा गर्म है,
लोग पराँठे सेक रहे 

जन गण के दरवाजे जाकर,
नेता घुटने टेक रहे

पाँच साल के बाद सियासत,
दिखा रही निज चाल

वादों की तस्वीरें धुँधली,
कोई इरादा नेक नहीं 
बिछी हुई शतरंज चुनावी,
कोई पियादा नेक नहीं

सबकी नजरें वहीं गड़ी हैं,
जिधर वोट के थाल

बुधिया की भी लगी उचट के,
भोजन सँग पाया कंबल
मुनिया को भी आज साब जी,
आये हैं देने संबल

झंडों, डंडों की विक्री से,
रामू है खुशहाल

"मौलिक एवं अप्रकाशित"

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Comment by बसंत कुमार शर्मा on December 6, 2018 at 5:41pm

आदरणीय Samar kabeer जी सादर नमस्कार, आपकी हौसला अफजाई का दिल से शुक्रिया 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on December 6, 2018 at 5:40pm

आदरणीय Mohammed Arif जी सादर नमस्कार, आपकी हौसला अफजाई का दिल से शुक्रिया 

Comment by Samar kabeer on December 1, 2018 at 2:41pm

जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब,अच्छा नवगीत लिखा आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Mohammed Arif on November 30, 2018 at 1:20pm

आदरणीय बसंत कुमार जी आदाब,

                  बहुत ही उम्दा गीत । पढ़कर मज़ा आ गया । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

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