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घुटनें एवं छड़ी(कहानी )

रामदीन |” अख़बार एक तरफ रखते हुए और चाय का घूंट भरते  हुए पासवान बाबू ने आवाज़ लगाई
“जी बाबू जी |”
“मन बहुत भारी हो रहा है |दीपावली गुजरे भी छह महीने हो गए | सोचता हूँ दोनों बेटे बहुओं से मिल लिया जाए|---- ज़िन्दगी का क्या भरोसा !”

“ऐसा क्यों कहते हैं बाबूजी !हम तो रोज़ रामजी से यही प्रार्थना करते हैं की बाबूजी को लंबा और सुखी जीवन दे |”

“ये दुआ नहीं मुसीबत है |बुढ़ापा ---अकेलापन----तेरे माई जिंदा थी तब अलग बात थी पर अब ---“ वो गहरी साँस भरते हुए कहते हैं

“हम क्या इस घर में नहीं रहते –“ रामदीन ने नाराज होते हुए कहा
“अरे !मेरा  वो मतलब नहीं था |-----ला मेरी छड़ी कहाँ है ?-“ उन्होंने घुटनों को सहलाते हुए कहा

“टहलने जा रहे हैं क्या ?रुकिए मैं घुटनों पर तेल मल देता दूँ |” रामदीन ने छड़ी बढ़ाते हुए कहा और वो वापस कुर्सी पर बैठ गए

“डाक्टर कह रहा था कि अब घुटने बदलवाने में देर नहीं करनी चाहिए |कम से कम पन्द्रह दिन अस्पताल में रहना पड़ेगा |बिना किसी अपने के आपरेशन कैसे करवा लूँ  ?------ना हुआ तो बड़कू या छोटकू के यहाँ से ही करवा लूँगा |”

“जैसा बाबूजी सही समझें |” रामदीन ने तेल मलते हुए कहा

उसी शाम की ट्रेन पकड़ कर वह बड़े बेटे के पास लखनऊ पहुँच जाते हैं |

“यूँ बाबूजी अचानक ! ” पायलगी करके बड़ी बहू ने पूछा

“तुम लोगों से मिलने को दिल कर आया तो चला आया  |”

“बहुत अच्छा किए |आने में कोई तकलीफ तो नहीं हुई |”

“बोगी में ऊपर वाला बर्थ मिला था |कोई बदलने को तैयार ही नहीं हुआ |घुटना पहले ही जवाब दे चुका है |” उन्होंने घुटनों को सहलाते हुए कहा

“समय बहुत बदल गया है |अब बड़े-बूढ़ों का लिहाज़ कौन करता है ?आप फ़िक्र ना करें | दर्द का मलहम रखा हुआ है------ लगा लीजिएगा |” कहती हुई वह रसोईघर में नौकर को ताकीद करने चली जाती है

शाम के वक्त

“क्या हुआ पिताजी आप की हेल्थ इतनी डाउन ! “ दफ्तर से लौटे बेटे दिनेश ने पूछा

“शुगर बढ़ गया |” उन्होंने धीमे से उत्तर दिया

“आप जरुर मनमानी करते होंगे |जिद्दी तो शुरु से हैं ही |अब अम्मा नहीं हैं तो कौन लगाए आप पे लगाम |”

“मैं तो वही खाता हूँ जो डाक्टर कहता है ----पर बुढ़ापा भी तो एक रोग ही है |”

“क्या आप दुनियाँ के अकेले बूढ़े हैं !”

“नहीं मेरा वो मतलब नही था |”

“फिर क्या मतलब था ---मैं आज ही एक सीनयर सिटीजन होम में बतौर गेस्ट गया था ---वहाँ पर भी बूढ़े थे पर कोई भी नाखुश नहीं था |

“जाने वो सब|  ----अच्छा सुन डाक्टर कह रहा था कि घुटनों का ऑपरेशन करवा लेना चाहिए |”

“क्यों दिक्कत क्या है ? अच्छे खासे तो हैं |डाक्टरों का तो ये पेशा है |मैं तो यही कहूँगा की जब तक काम चले छड़ी से ही काम चलाएँ |कल मैं पेन-किलर ले आऊँगा ” कहता हुआ दिनेश कमरे से बाहर निकल जाता है

एक सप्ताह बाद

“पिताजी,राजू का फ़ोन आया था |”

“क्या बात हुई ?”

“मैंने बता दिया की आप यहाँ हैं तो कहने लगा कि बाबूजी को मेरे यहाँ भी भेज दो |”

“यहाँ के फ़ोन पे मुझसे  बात नहीं की उसने !”

“वो कनाडा गया है ,किसी ऑफिस-टूर पर | इन्टरनेट कॉल की थी---परसों लौट आएगा |”

“तो फिर परसों की ही टिकट कराना और देख नीचे की ही बर्थ बुक कराना |ऊपर की बर्थ बड़ी तकलीफ देती है |अब घुटने भी तो साथ नहीं दे रहे |”अपनी छड़ी पकड़कर उठने की कोशिश करते हैं |

तीन दिन बाद छोटे बेटे राजू के शहर पूणे के पहुँच जाते हैं |स्टेशन से बाहर निकलने पर |

“पासवान अंकल  |”

“हाँ,तुम कौन ?”

“मैं रामदीन का बेटा अजय ,यहीं ऑटो चलाता हूँ |पापा ने कल फ़ोन किया था कि आप पूणे आ रहे हैं तो चला आया |”

“बहुत अच्छा किया |अब मुझे इस पते पर ले चलों |”

ऑटो से उतरकर वह उसकी तरफ दो सौ का नोट बढ़ाते हैं

“क्या पोता कभी दादा से किराया लेता है ?”

“पर दादा पोते को आशीष तो दे सकता है |”

“अगर आप की जिद्द है तो सौ दे दीजिए |वैसे भी इतना ही किराया बनता है |”

“भीतर चलों |”

“माफ़ करें दादाजी,अभी एक बुकिंग उठानी है ---आप मेरा नम्बर लिख लीजिए अगर कभी जरूरत हो तो बेहिचक याद कीजिए |”

वह ऑटो स्टार्ट करके चला जाता है और वे सोसाईटी के गेट पर अपनी एंट्री दर्ज करते हैं |

अपार्टमेंट के गेट के भीतर से आवाज़ आती है –कौन |

“मैं जमुना पासवान,राजू का पिता |”

“माफ़ कीजिए साहब,साहब दफ्तर गए हैं और मैडम किसी पार्टी में और बिना प्रूफ के दरवाज़ा खोलने की मनाही है |”

“मैं उसका बाप हूँ |” उन्होंने झल्लाते हुए कहा

“अच्छा,आप पाँच मिनट वेट कीजिए,मैं मैडम या सर से फ़ोन पर कन्फर्म करता हूँ |”

लगभग दस मिनट बाद मोतियों सा चमकते फ़्लैट का दरवाज़ा खुलता है और उनकी आँखे विस्मित हो जाती है |खून का घूँट भर वे अंदर प्रवेश करते हैं |

“माफ़ कीजिए साहब,मैं नौकर आदमी,पहले मालूम होता तो आपकों सोसाइटी के गेट पर लेने आ जाता |” तभी भीतर कमरे से गुर्राता झबरीले बालों वाला कुत्ता आ जाता है और भौकना शुरु कर देता है |

“नहीं टॉमी,ये अंकल जी हैं |इन्हें नमस्ते करो |” और कुत्ता अपने दोनों पंजे उठाकर उनका अभिवादन करता है

और वे उसका माथा सहलाने लगते हैं

“अंकल जी ,क्या खाइएगा,मैसिकन,चायनीज,कंटीनेंटल,या साऊथ इन्डियन |”

“खिचड़ी बना सकते हो |”

“ठीक है आप इंतजार कीजिए |”  वह किचन में चला जाता है

देर शाम को छोटी बहू शाम को आती है तो वे एल.ई.डी स्क्रीन पर समाचार देख रहे होते हैं

“सॉरी डेडीजी,इम्पोर्टेन्ट पार्टी थी और नौकर को कहना भूल गई थी---राजू तो मुझे कल ही बता के गया था |”

“बेटी तुमने दारू पी है ---“

“नहीं डेडी,ये तो सोस्लाईट कर्टसी के चलते लेनी पड़ती है |अच्छा आपने खाना खाया |बंटी तो चला गया होगा |बहुत महंगाई है शहर में 6 घंटे रहता है और पूरे पन्द्रह हज़ार देने पड़ते हैं |”कहती हुई वह बेडरूम में चली जाती है और वहाँ का टी.वी. ऑन हो जाता है |

“बाबूजी ये क्या बोरिंग खबरें लगा कर बैठें हैं आज दिल्ली-पूणे का आई.पी.एल आ रहा है |” राजू ने सोफे पे बैठते ही चैनल चेंज करते हुए कहा

वे छोटे बेटे की और देखते रह जाते हैं

“पूनम बहुत जिद्दी है |वही सास-बहू का ड्रामा देखना है |इसीलिए तो मजबूरन ये दूसरा टी.बी. लेना पड़ा |पूरे नब्बे हज़ार का पड़ा है |”

“अच्छा,आने में कोई तकलीफ तो नहीं हुई |घर में दो ही कर हैं |एक मैं ऑफिस लेकर चला जाता हूँ और दूसरी पूनम ड्राईव करती है |”

“नहीं बेटा,स्टेशन के बाहर आसानी से ऑटो मिल गया था |”

“क्या खाएँगे आप ? बाहर से मँगवा देता हूँ |हम दोनों तो शाम को केवल कुछ फ्रूट खाते हैं |”

“शाम को खाया था |भूख नहीं है |”

“जैसी आपकी मर्ज़ी ----पर देख लीजिए किसी बात के लिए झिझकियेगा मत –आप के बेटे का घर है |”

“डाक्टर ने घुटनों का ऑपरेशन कराने को कहा है----अब लेट्रिंग-पेशाब भी करने में तकलीफ़ होती है |”

“कितने पैसे चाहिएँ ?अभी थोड़ी तंगी चल रही है  |”

“पैसों का इंतजाम तो है पर कोई अपना ----“

“सॉरी पिताजी,कम्पनी का मनेजिंग डारेक्टर मतलब बड़ी जिम्मेदारी आप तो सरकारी मास्टर रहें हैं आप नहीं समझेंगे कि कॉरपरेट में जितना बड़ा हाथी उस पर उतनी ही ज़्यादा जोंक |”

“अच्छा पिताजी ,पटना वाले प्लाट का क्या कर रहे हैं |अब तो करोड़ों का हो गया होगा !”

“सोच रहा हूँ जीते जी उसे निकाल दूँ |”

“बहुत अच्छा,कब जाएँगे ?मैं फ्लाईट की टिकट निकाल दूँगा |उसमें लोअर या अपर का चक्कर ही नहीं होता |”

“सोच रहा हूँ कल ही निकल जाऊँ |”

“ठीक है |मैं फ्लाईट चैक कर लेता हूँ |”


आज का दिन  एक रिश्तेदार की शादी में

पासवान बाबू एक टेबल पर छड़ी टिकाए आराम से बैठे थे |

“लीजिए बाबूजी |” रामदीन ने उनकी पसंद का गाजर का हलवा और टिक्की रखते हुए कहा

“तुमनें कुछ खाया ?”

“जा रहा हूँ |मुझें क्या मैं औरों की तरह खड़ा होकर खा सकता हूँ |”

“नहीं तू भी अपनी प्लेट भरकर यहीं ले आ ---अकेले अच्छा नहीं लगता |”

“हमारे रहते हुए आपको नौकर के साथ बैठेंगे “ राजू और दिनेश उनकी बगल की खाली कुर्सियों पर बैठते हुए बोले

वो चुप्प बैठे रहे |

“ये जाहिल तो आपकों मार ही डालेगा !---भला शूगर के मरीज को ये सब खाना चाहिए |”

दिनेश ने उनके सामने से प्लेट उठाते हुए कहा

“रहने दो ---मैंने ही जिद्द की थी---मेरी इच्छा थी खाने की | ”

“मत खाइए बाबूजी,आपको कुछ हो जाएगा तो हमारा क्या होगा ?ये नौकर,जरा हमारे खाने के लिए भी कुछ ले आ |” राजू ने बगल में किंकर्तव्यविमूढ़ खड़े रामदीन को देखकर कहा

“उसे नौकर मत कहो |वो मेरे लिए बेटे जैसा है |”

“पिताजी आप बड़े भावुक हैं ---पर खून के रिश्तों से बढ़कर कोई रिश्ता नहीं होता----रामदीन का पुलिस वैरिफिकेशन करवाया की नहीं----आजकल अकेले रहने वाले बुजुर्गों को इन असमाजिक तत्वों से बहुत खतरा है-----विल तो करवा ही ली होगी आपने ---अच्छा आपने घुटनों का इलाज करवाया की नहीं |” दिनेश बोलता रहता है

वो दूसरी तरफ मुँह फेर लेते हैं |

“पिताजी हाथ थोड़े तंग चल रहे हैं |एक विला खरीदा है |---पटना वाल प्लाट तो अच्छी कीमत में बिका होगा ----हम हमें हमारे हिस्से के पैसे दे दीजिए |”

“अच्छा तो तुम हिस्सा माँगने आए हो !पर पटना का प्लाट मेरी और तुम्हारी माँ की पहली निशानी है |मैं उसे नहीं बेचने वाला |”

“पर आपके बाद कौन सा हम वहाँ रहने आएँगे |वैसे भी जो आपका है वो हमारा ही तो है |” राजू ने बेहयाई से कहा

तब तक रामदीन खाने की दो प्लेटे सजा कर ले आया था

“छड़ी गिर गई है |” उन्होंने धीरे से कहा |

रामदीन छड़ी उठाकर देता है |वो दोनों एक-दूसरे का मुँह ताकते बैठे रहते हैं 

“बेटा मुझे घर ले चलों |” उन्होंने रामदीन की तरफ देखते हुए कहा

रामदीन ने बढ़कर उन्हें सहारा दिया

“पिताजी आप क्या चाहते हैं की आपके बाद हम दोनों भाईयों में उस अदना से प्लाट को लेकर सिर फूट्टौवल होता रहे |”

उन्होंने एक हाथ रामदीन के कंधे पर रखा और दूसरे हाथ में पकड़ी छड़ी को लहराते हुए ज़ोर से बोले  –“मेरे घुटनों से अब मेरा बोझ नहीं उठता |अब ये छड़ी ही मेरा सहारा है |मैं जमुना पासवान पुत्र स्वर्गीय कामता पासवान पूरे होशों-हवास में यह घोषणा करता हूँ कि रामदीन आज से मेरा तीसरा बेटा है |मेरी मृत्यु के बाद  पटना वाली जमीन का मालिकाना  हक इसी का होगा और मेरे खाते में जितने पैसे हैं उनसे मेरा क्रियाकर्म करने के बाद जो भी पैसे बचें उसे गोधूलि आश्रम को दे दिए जाएँ |मेरे इस घोषणा  को ही मेरी वसीयत समझा जाए | “

इतना कहते-कहते उनका सिर रामदीन के कंधे पर लुढ़क जाता है |

सोमेश कुमार(मौलिक एवं मुद्रित )

सोमेश कुमार(मौलिक एवं अमुद्रित )

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Comment by somesh kumar on March 20, 2018 at 8:40pm

आदरणीय भाई जी 

    ये आपका प्रेम है जो आप पुनः रचना पर आए |आपके सुझावों को ध्यान रखते हुए अंतिम कड़ी में बदलाव किए हैं |उसे विस्तार दिया है |परन्तु शीर्षक पर विचार करने में असमर्थ हूँ |समझता हूँ कि शीर्षक का साधारीकरण उसके आकषर्ण को कम करता है |परन्तु इस कथा का उद्देश्य चमत्कार पैदा करना नहीं अपितु आत्म-केन्द्रित और स्वार्थी हो रही पीढ़ी को चेतावनी देना है |जो केवल हक की बात करती है और कर्तव्यों पर पैर पीछे कर लेती है |

कृपया इसी तरह अपने स्नेह,अनुभवों और मार्गदर्शन से लाभान्वित करते रहें 

आपका अनुज 

Comment by somesh kumar on March 20, 2018 at 8:32pm

अज्ञानतावश अगर मंच के नियम तोड़े हों तो क्षमाप्रार्थी हूँ |रोमन में टिप्पणी देने का कारण केवल मोबाइल पर टाईपिंग की सहूलियत और समय का आभाव है |मेरे विचार से लेखक होने के कारण सामायिक मूल्यों और प्रवृत्तियों को ग्रहण करना भी होता है |भागते जीवन में जहाँ हम पांच दिवसीय मैंचों से 20 20 के फ़ॉरमेट में फिट होने की कोशिश कर रहे हैं और जहाँ लम्बी कविताओं और लम्बी कहानियों को दरकिनार कर हमारी सारी उर्जा लघु रचनाओं पर केन्द्रित हो रही है |ऐसे में अगर मेरी पीढ़ी के लोग  सहूलियत से काम करें तो कृपया उनकी विवशता और आवश्यकताओं को भी समझें |उन्हें उसी फोर्मेट में स्वीकार करें 

आग्रह सहित

आपका अनुज 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 20, 2018 at 6:42pm
  • अनुमोदन और हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया। आदरणीय सोमेश कुमार जी, सहमत हूं आपकी टिप्पणी से।  फिर भी मैं यह कहना चाहता था कि शीर्षक में ये शब्द (घुटने/छड़ी)  न आयें तो सरप्राइज एलीमेंट बनाये रखने में मदद मिलेगी। एक और शीर्षक सुझाव - "हक़ीक़तों के धरातल पर"
Comment by Samar kabeer on March 19, 2018 at 6:15pm

भाई सोमेश जी आदाब,सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।

एक निवेदन ये है कि कृपया अपनी प्रतिक्रयाएँ रोमन लिपि की बजाय हिन्दी में दिया करें,ये इस मंच का नियम भी है ।

Comment by somesh kumar on March 19, 2018 at 8:25am

bhai g aap jis trh rchana pr apna vicha dete hain usse aapki ghan vichar drishti evm sahity ki smjh ka prichay milta hai. jhan tk shirshk ki baat hai mujhe lgta hai ki aam jn ki ktha hone k kaarn shirshk bhi aam hona chahie.ghutne hume naturally shrir ka bojh uthane ko mile hain jaise ki hum beto se umid krte hain pr jb ghutne kmzor ho jate hain to hum chhdi ki jrurat hoti hai usi trh jb apni sntaan kmzor aur budha hone pr bebsi me hum chhdi pr nirbhr ho jate hain.agr aur koi sarthk shirshk lge to avshy sujhaen.

aapka anuj

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 19, 2018 at 6:01am

शीर्षक पर पुनर्विचार कीजिए। इस शीर्षक से ही सब कुछ पहले से ही बयान हो जाता है। शीर्षक सुझाव - पटाक्षेप/ तिनके/ घुटन/फ़ैसले/अंजाम .....।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 19, 2018 at 5:56am

 आजकल के तथाकथित आधुनिक व्यस्त पश्चिमी शैली की जीवन शैली में बुज़ुर्ग मां/बाप/मां--बाप दोनों की  दुर्दशा का एक रूप चित्रित करती, कुसंस्कृति के दुष्प्रभाव और दुष्परिणाम बताती विचारोत्तेजक रचना।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 19, 2018 at 5:51am

 बहुत ही गंभीर भावपूर्ण/मार्मिक रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय सोमेश कुमार जी। बहुत ही प्रवाहमय। आगे क्या होगा, यह मालूम होते हुए भी रुचिकर प्रस्तुति जिज्ञासा बढ़ाती जाती है। अंत दुखांत है, लेकिन सर्वथा न्यायपूर्ण। बढ़िया चित्रण और अभिव्यक्ति का बढ़िया प्रयास। हार्दिक बधाई आदरणीय सोमेश कुमार जी। मेरे विचार से यह नाटक शैली में लिखी कहानी है। जिसे दूसरी शैली में और अधिक प्रवाहमय बनाया जा सकता है। अंत के संवाद बेहतर हो सकते थे। कुछ संवाद बढ़ाये भी जा सकते थे, क्योंकि अभी ऐसा लग रहा है कि जैसे एक झटके में कहानी का अंत किया गया है। सादर।

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