For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल- पक्की अभी ज़ुबान नहीं है

22 22 22 22

जिंदा क्या अरमान नहीं है ।
तुझमें शायद जान नहीं है ।।

कतरा कतरा अम्न जला है ।
अब वो हिंदुस्तान नहीं है ।।

एक फरेबी के वादों से ।
ये जनता अनजान नहीं है ।।

कौन सुनेगा तेरी बातें ।
सच की अब पहचान नहीं है।।

जरा भरम से निकलें भाई ।
टैक्स तेरा आसान नहीं है ।।

रोज कमाई गाढ़ी लुटती ।
मत समझो अनुमान नहीं है ।।

पढलिख कर वो बना निठल्ला।
क्या तुमको संज्ञान नहीं है ।।

कुर्सी पाकर ऐंठ रहे हो ।
कहते हो अभिमान नहीं है ।।

जख्म सभी जिंदा हैं अबतक ।
दिल मेरा नादान नहीं है ।।

जात पात की लीक से हटना ।
अंदर से फरमान नहीं है ।।

समझ रहे हैं हम भी साहब ।
पक्की अभी जुबान नहीं है ।।

--नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

Views: 540

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 2, 2017 at 7:53pm

बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है दिल से दाद हाजिर है आद० नवीन मणि जी समर भाई जी की बात संज्ञान में लें 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 1, 2017 at 1:33pm
बेहतरीन
Comment by Ramkunwar Choudhary on December 1, 2017 at 9:41am
बहुत अच्छा लिखा है आदरणीय
Comment by Naveen Mani Tripathi on November 29, 2017 at 5:28pm
आ0 राम अवध विश्वकर्मा जी सप्रेम आभार। ठीक करता हूँ ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on November 29, 2017 at 5:26pm
आ0 कबीर सर सादर आभार के साथ नमन ।
Comment by Ram Awadh VIshwakarma on November 29, 2017 at 4:36pm
आदरणीय त्रिपाठी जी खूबसूरत ग़ज़ल कहने के लिये बधाई लेकिन
जरा भरम से निकलो भाई
यहाँ भाई के साथ 'तेरा' नहीं आयेगा।
टैक्स तेरा आसान नहीं है।
जरा भरम से निकले तू भी
टैक्स तेरा आसान नहीं है।
ऐसा कुछ होना चाहिये मेरे विचार से।
एक बार पुन:बधाई शानदार ग़ज़ल कहने के लिये।
Comment by Samar kabeer on November 28, 2017 at 5:27pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है,बधाई स्वीकार करें ।
'चन्द फरेबी के वादों से'
इस मिसरे में 'चन्द'शब्द बहुवचन के लिए है, और 'फ़रेबी'एक वचन है,इसलिये इस मिसरे को चाहें तो यूँ कर सकते हैं:-
'एक फ़रेबी के वादों से'

आख़री शैर का सानी मिसरा लय में नहीं है ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"अच्छी ग़ज़ल हुई आ बधाई स्वीकार करें सातवाँ थोड़ा मरम्मत चाहता है"
1 minute ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत ख़ूब। समझदार को इशारा काफ़ी। आप अच्छा लिखते हैं और जल्दी सीखते हैं। शुभकामनाएँ"
2 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जी बहुत बहुत शुक्रिया आ ज़र्रा-नवाज़ी का"
10 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जी बहुत बहुत शुक्रिया आ ज़र्रा-नवाज़ी का"
10 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जी बहुत बहुत शुक्रिया आ ज़र्रा-नवाज़ी का"
11 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बारीकी से इस्लाह व ज़र्रा-नवाज़ी का बहुत बहुत शुक्रिया आ इक नज़र ही काफी है आतिश-ए-महब्बत…"
12 minutes ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी अच्छी ग़ज़ल हुई। बधाई स्वीकार करें"
27 minutes ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय महेंद्र जी अच्छी ग़ज़ल हुई। बधाई स्वीकार करें"
29 minutes ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय आज़ी जी अच्छी ग़ज़ल हुई। बधाई स्वीकार करें"
30 minutes ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी अच्छी ग़ज़ल हुई। बधाई स्वीकार करें"
31 minutes ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय चेतन जी अच्छी ग़ज़ल हुई। बधाई स्वीकार करें"
32 minutes ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण जी अच्छी ग़ज़ल हुई। बधाई स्वीकार करें"
33 minutes ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service