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इश्क इससे क्यूँ दुबारा हो गया (ग़ज़ल 'राज')

२१२२ २१२२ २१२

थोड़े  थोड़े में गुजारा हो गया 
मुश्तभर किस्सा हमारा हो गया 


कहकशाँ में ढूँढती बेबस नज़र    

ख़्वाब  अपना  इक सितारा हो गया

 

चाँद की चाहत कभी हमने न की 
एक जुगनू ही सहारा हो गया 

 

छटपटाती देख बेघर सीपियाँ 

दिल समन्दर का किनारा हो गया

 

बेवफा इस जिन्दगी ने फिर ठगा        

इश्क इससे क्यूँ दुबारा हो गया

 

 बातों बातों हार बैठे दिल को हम  

 बेखुदी में बस  ख़सारा हो गया

 

सब गुलों को है खटकता वो गुलाब

जो सुखन में इस्तआरा हो गया 

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by rajesh kumari on November 21, 2017 at 11:36am

मोहतरम जनाब  तस्दीक जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका बहुत बहुत शुक्रिया | तकाबुले रदीफैन जुज्वी है जो एक आध शेर में मान्य होता है | इससे में  तनाफुर का कुछ नहीं हो सकता इससे ,जिससे किससे  में स और से को अलग कर  ही नहीं सकते और ये शब्द मिसरे की डीमांड है |


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Comment by rajesh kumari on November 21, 2017 at 11:32am

आद० सुरेन्द्र नाथ भैया  ,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका बहुत बहुत शुक्रिया मेरा लिखना सार्थक हो गया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 21, 2017 at 11:31am

आद० अजय तिवारी जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका बहुत बहुत शुक्रिया 



सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 21, 2017 at 11:30am

आद० बृजेश कुमार जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका बहुत बहुत शुक्रिया 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on November 16, 2017 at 11:15am
मुह्तरमाराजेश कुमारी साहिबा , उम्दा ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ
शेर 5 एब-तक़ाबुले -रदिफेन और एब -तनाफुर ( इस से ) हो रहा है , देख लीजिएगा
Comment by नाथ सोनांचली on November 16, 2017 at 4:15am
कहकशाँ में ढूँढती बेबस नज़र
ख़्वाब अपना इक सितारा हो गया
वआह वाह
आद0 बहन राजेश कुमारी जी सादर अभिवादन, बहुत बढ़िया ख्यालों को बुनती ग़ज़ल कही आपने, बहुत बहुत बधाई आपको।
Comment by Ajay Tiwari on November 15, 2017 at 1:45pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी,

बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई है.हार्दिक शुभकामनाएं.

सादर  

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 14, 2017 at 12:57pm
बहुत सुन्दर आदरणीया बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल कही..सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 14, 2017 at 12:04pm

आद० तेजवीर सिंह जी, ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से बहुत बहुत आभार . 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 14, 2017 at 12:03pm

आद० डॉ० आसुतोष मिश्रा जी,आद० मोहम्मद आरिफ जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से बहुत बहुत आभार .ख़सारा- नुक्सान/हानि   इस्तआरा -उपमा/ रूपक

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