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नगर खिन्न हो देखता, खुश होता देहात
हरियाली  उपहार  में,  देती  है ब रसात।१।
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हलधर सोया खेत में, तन पर ओढ़े धूल
रूठी बदली देखिए, जा बैठी किस कूल।२।
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धरती के  दुख  से  हुई, अँधियारी  हर भोर
बादल बिजली चीखते, मत आना इस ओर।३।
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जब से आयी गाँव में, फिर रिमझिम बरसात
सौंधी मिट्टी  की  महक, उठती  है  दिन-रात।४।
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वसन धरा के जो सुना, तपन ले गयी चोर
बौराए घन  नापते, पलपल  नभ का छोर।५।
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मेंढक जी तो हैं सदा, बरखा के मनमीत
बजा बोलता मोर नित, झींगुर को संगीत।६।
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पहली बारिश की भले, धीमी रही फुहार
लेकिन उससे कट गयी, हर कच्ची दीवार।७।
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पहली बारिश याद कर, फिर से भीगी आँख
पर विरहन  कैसे  उड़े, मिले  नहीं  जब पाँख।८।
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भीगी मिट्टी की महक, नित्य बढ़ाये प्यास 
सावन सूखा रह गया, क्या भादौ से आस।९।
**
भीगे जो बरसात में, विविध कह रहे बोल
हम सूखे  घर  में  रहे, द्वार  न  पाये खोल।१०।
//
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 12, 2020 at 8:52pm

आ. भाई सुरेंद्र नाथ जी, सादर अभिवादन । दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार ।

Comment by नाथ सोनांचली on July 11, 2020 at 12:49pm

आद0 लक्ष्मण धामी जी सादर अभिवादन। बरसात को विषय बनाकर बहुत बेहतरीन दोहे रचे हैं।बधाई स्वीकार कीजिये

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 7, 2020 at 9:19am

आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन । दोहों पर उपस्थिति और सराहना के लिए आभार ।

Comment by TEJ VEER SINGH on July 7, 2020 at 8:30am

हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी। बेहतरीन दोहे।

भीगी मिट्टी की महक, नित्य बढ़ाये प्यास 
सावन सूखा रह गया, क्या भादौ से आस।९।
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