For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मेरे पिता (लेख)

मेरे पिता

पिता शब्द स्वयं अपने आप में बजनदार होता हैं। हाथ की दसों उंगलियों की तरह हर पिता का व्यक्तित्व अलग होता हैं। पिता को परिभाषित किया जा सकता हैं, उपमानों से अलंकारित किया जा सकता हैं पर रेखांकित नही किया जा सकता।बस,उम्मीद की जा सकती हैं कि हमारे पिता बहुत अच्छे हैं, बस थोड़े-से ऐसे और होते। सभी बच्चों के पिता उनके हीरो होते हैं। ऐसे ही मेरे पिता मेरे किसी सुपरमेन से कम नहीं हैं, हरफनमौला हैं। बचपन से मैंने उनका सख्त चेहरा,कठोर अनुशासनबद्ध,जुझारूपन देखा हैं। मितभाषी हम सब के लिए पर किसी-भी विषय पर बहस छिड़ जाए तो बस सामने वाला चुप ही हो जाये।उनकी इस आदत पर बाबा समझाते तो कहते क्या गलत कहा; और फिर हाथ कंगन को आरसी क्या,पढे-लिखे को फारसी क्या। परिवारोन्मुखी पिता हम बच्चों के साथ-साथ चाचा-बुआ के उज्जवल भविष्य के प्रति चिंतित ही नही रहते थे,बल्कि जो मन में ठान ली ,करवा ही मन लेते थे।जोंक की तरह चिपक जाते थे लक्ष्य हासिल करने के लिए ।नतीजन सभी सफलता-असफलता के पायदान चढ़ते-उतरते हुये सुखद ही नही संतुष्ट भी हैं। जुझारू व्यक्तित्व वाले पिताजी ने हारने नाम की चीज उनके शब्दकोष में ना कल थी और ना आज। हां,उम्र के पढ़ाव पर थोड़े थक जरूर गये पर जुनून यथावत बरकरार हैं। जब मैं पी-एच.डी की रजिस्ट्रेशन के लिए आरडीसी में जा रही थी तो मेरे चेहरे की घबड़ाहट भांप ली; समझाने लगे कि तुम तो इण्टरव्यू देते वक्त ,ध्यान से सवाल सुन जवाब देते वक्त बस इतना याद रखना कि सामने वाले सब अज्ञान हैं, बस तुम सही हो।मुझे इस मुकाम तक पहुँचाने के लिए मेरी कमजोरी आड़े नहीं आने दी,वो मेरे पैर बन हमेशा साथ खड़े रहे।जौहरी की तरह हम सब का व्यक्तित्व निखारा। जुनून के साथ पारखी नजर,दूरदर्शिता की दाद देना पड़ेगी।भाई को पीजी सर्जरी में करनी थी और पापा कहते, मेडिसिन में;कारण बताते औरों में तो उम्र आड़े आती हैं,तामझाम करना होते हैं लेकिन इसमें कुर्सी-टेबल डालकर कही भी बैठ जाओगे,हिलते हाथों से दवाइयां लिखते रहोगे।समय प्रबंधन करना पापा से सीखा।पढ़ाई के साथ-साथ बाबा के साथ दुकान में हाथ बंटाते,घर-गृहस्थी बसने के बाद पीजी की,वकालत का प्रथम वर्ष भी पास किया।जब कारण पूछते तो पापा तो चुप होकर निकल लेते,मम्मी बताती,तुम्हें पालन-पोषण पर ध्यान देना था,इसलिए। अनुभवों का तो पिटारा छिपा हैं,कभी-कभी उनका दिया अनुभव अहम् के कारण उपेक्षित भले ही कर दे,पर बात अधिकांशतः उन्हीं के बताये रास्ते से बनती हैं।आपस में कहते,जब आधी वकालत की तब इतना नियम-कायदों के जानकार,अगर पूरी कर लेते तब तो बात ही अलग होती। हम तीन बहनों के बीच अकेला भाई,लेकिन सभी को एक ऑख से देखा।बस,जब कभी भाई की गलती की सजा माफ हो जाती हैं। सुखसुविधा जुटाने में खुद की कभी चिन्ता नही की।परिवार के प्रति अतिचिन्ता ने ही शंकालू बना दिया।जो कभी-कभी हानिकारक भी होता था पर अधिकांशतः उनकी कही बात सौ फीसदी खरी उतरती।सामाजिकता में महीन-सी कमी हैं, दोस्त-यारी ,अड़ोस-पड़ोस से दो तीन से और सबसे रामजुहार ही काफी।एक वक्त यह आदत बहुत सुकून दी जब पूरा सालभर मैं और दादी अकेले रहे। बादल से गरजते पापा को स्नेहसिल बरसते तब देखा जब मेरा ब्लड टेस्ट लिया गया,जिन ऑखों से दहशत होती थी,उनसे ऑखों से आंसू निकलने लगे।कङकती आदेशात्मक आवाज को खुशी में बदलते तब देखा- दोफुट उछलते पापा ताली बजाकर कह रहे थे कि भाई का एमबीबीएस में सिलेक्शन हो गया। समय के साथ बदलाव आया,सख्त चेहरे पर मुस्कान दौड़ने लगी,दोस्ताना व्यवहार हो गया,उनके प्यार में मां की कमी पूरी होने लगी,नसीहतों की जगह तारीफ करने में पीछे नहीं हटते,अनुशासन में अवहेलना नजर आती।ये सब देख हम भाई-बहन आपस में हंसते हुये कहते, परिवर्तन प्रकृति का नियम हैं और फिर,भई,मूल से सूद प्यारा होता हैं।

हम सभी वट वृक्ष जैसी छत्रछाया में पले-बढें पर उसे गहराई में समाई जड़ों से नरम एहसासों से सिंचित कर स्थिर रखने वाली धरा सी माँ के जाने के पश्चात अब थोड़े डगमगाने जरूर लगते हैं पर पोतियों के कंधे उन्हें संभाल लेते हैं। 

बबीता गुप्ता 

स्वरचित व अप्रकाशित 

Views: 240

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on June 24, 2020 at 2:24pm

मुहतरमा बबीता गुप्ता जी, सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
yesterday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Saturday
PHOOL SINGH added a discussion to the group धार्मिक साहित्य
Thumbnail

महर्षि वाल्मीकि

महर्षि वाल्मीकिमहर्षि वाल्मीकि का जन्ममहर्षि वाल्मीकि के जन्म के बारे में बहुत भ्रांतियाँ मिलती है…See More
Apr 10
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी

२१२२ २१२२ग़मज़दा आँखों का पानीबोलता है बे-ज़बानीमार ही डालेगी हमकोआज उनकी सरगिरानीआपकी हर बात…See More
Apr 10
Chetan Prakash commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"आदाब,  समर कबीर साहब ! ओ.बी.ओ की सालगिरह पर , आपकी ग़ज़ल-प्रस्तुति, आदरणीय ,  मंच के…"
Apr 10
Ashok Kumar Raktale commented on Ashok Kumar Raktale's blog post कैसे खैर मनाएँ
"आदरणीय सुशील सरना साहब सादर, प्रस्तूत रचना पर उत्साहवर्धन के लिये आपका बहुत-बहुत आभार। सादर "
Apr 9

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service