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Vindu Babu's Comments

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At 2:49pm on April 6, 2013, ram shiromani pathak said…

haradik aabhar adrneeya

At 12:57pm on April 6, 2013, coontee mukerji said…

प्रेम ही तो जगत का सृजनहार है. कविता का सारा निचोड़ इस पंक्ति समाहित है. वंदना जी .अति सुंदर

At 10:59pm on March 31, 2013, Ajay Kumar Jha said…

JI dhanayabad 

At 6:40pm on March 31, 2013, vijay nikore said…

आपने मुझको मित्र मान कर मान दिया है।

 

सादर और सस्नेह,

विजय निकोर

At 7:20pm on March 13, 2013, बृजेश नीरज said…

//मैं श्रमित
जिन्दगी की जद्दोजहद से व्यथित
चली जा रही थी//

 //सुनकर हृदय मेरा मचला और बोला-//

भाई केवल प्रसाद की बात पर ध्यान दें और रचना में यथोचित संशोधन कर दे तो कविता में और निखार आ जाएगा।

At 11:16am on March 12, 2013, केवल प्रसाद 'सत्यम' said…

वन्दना जी, नमस्कार! आपकी ‘सुखद छाॅव‘ कविता बहुत अच्छी है! किन्तु लिंग भेद होने से  ऐसा लगरहा रै कि दो कविताएं जोड़ दी गई हैं! फिर से पढ़ लें!

At 11:38pm on February 27, 2013, Savitri Rathore said…

अतिसुन्दर वंदना जी ! वैसे तो माँ की महत्ता को शब्दों में बांध पाना असंभव है किन्तु आपका प्रयास सराहनीय है।

At 8:19pm on February 22, 2013, बृजेश नीरज said…

आपने मुझे मित्रता योग्य समझा इसके लिए आपका आभार!

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