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Albela Khatri's Comments

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At 6:29pm on July 4, 2012, कुमार गौरव अजीतेन्दु said…
अलबेला भैया, सक्रिय सदस्य चुने जाने की बधाई, आपको भी और आपके बाबाजी को भी।
At 7:57am on July 3, 2012, Abhinav Arun said…
समकालीन हास्य व्यंग्य के शिखर कलमकार - अदाकार श्री अलबेला जी को महीने का सक्रिय सदस्य चुने जाने पर बहुत बहुत बधाइयाँ !! 
At 8:23pm on July 2, 2012,
सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey
said…

अद्भुत मास आषाढ़ में भाई अलबेला खत्री जी की सकारात्मक सक्रियता अभिभूतकारी है.  आपको हृदय की गहराइयों से बधाइयाँ तथा साहित्यिक सकर्मण्यता हेतु सादर शुभकामनाएँ.

भाई अलबेला खत्री जी से प्रति मास इसी सक्रियता, लगन और उत्साह की अपेक्षा है. 

सादर

At 7:45pm on July 2, 2012,
मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi"
said…

आदरणीय अलबेला खत्री जी
सादर अभिवादन,
यह बताते हुए मुझे बहुत ख़ुशी हो रही है कि ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार में आपकी सक्रियता को देखते हुए OBO प्रबंधन ने आपको "महीने का सक्रिय सदस्य" (Active Member of the Month) घोषित किया है, बधाई स्वीकार करे | कृपया अपना पता और नाम(जिस नाम से ड्राफ्ट/चेक निर्गत होगा) एडमिन ओ बी ओ को उनके इ मेल admin@openbooksonline.com पर उपलब्ध करा दें | 
हम सभी उम्मीद करते है कि आपका प्यार इसी तरह से पूरे OBO परिवार को सदैव मिलता रहेगा |
आपका
गणेश जी "बागी"

संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक 
ओपन बुक्स ऑनलाइन

At 7:31pm on July 2, 2012,
सदस्य कार्यकारिणी
rajesh kumari
said…

महीने का सर्व श्रेष्ठ सक्रिय सदस्य चुने जाने के लिए बहुत बहुत बधाई अलबेला जी 

At 1:00am on June 27, 2012, राज़ नवादवी said…

हाहहाहा, बहुत खूब!

खामख्वाह खुद को अकेला समझ बैठा

सामने मेरा आइना है ये मालूम न था

 - राज़ 

At 12:30am on June 27, 2012, राज़ नवादवी said…

अलबेला जी, दरअसल आप सबों से पहली मुलाक़ात है, बहुत अच्छा लगा, बुक्स ऑनलाइन पे भी पहला सक्रिय दिन. इस बिरादरी में कुछ तो नया है.   शुक्रिया आपके दिली इस्तकबाल का, मिठास ताउम्र बनी रहेगी! - राज़ 

At 12:20am on June 27, 2012, राज़ नवादवी said…

बहुत खूब अलबेला साहेब-, क्या कहा है- 

दामिनी सी चंचल मैं,
फूल जैसी कोमल मैं,
मेरी ओजस्वी आँखों से आँख तो मिलाइए.

फरमाया है- 

'ना करो कोई तफरका लड़के और लड़की में 
तुख्मेखल्क बराबर है औरत और आदमी में 

जो तुम मार डालोगे अपनीही कोखका जना
तोफिर क्या फर्क रहेगा इंसान और वहशीमें

बेटियाँ तो गुलपाश हैं गुलिस्ताने कुनबा की
फैलतीहैं ये बनके मुश्केबू हज़ार ज़िन्दगी में

बेटेतो बड़े होके बसा लेते हैं अपना घोंसला 
बेटियाँ पोछतीहैं आपके आंसूं खुशीओगमीमें 

न होती मरियम तो कहाँ होते इब्नेमरियम
गरचे कि जीससका पिदर नहीं पैदाइशी में' 

- राज़ नवादवी 

At 8:58pm on June 15, 2012, PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA said…

बाबा अलबेला ओ.बी.ओ. पर मेरे संग

बाबा जी को पेटेन्ट करा लो 

घर पीछे  एक  टेंट  लगा लो 

महंगायी बन छा जायेंगे 

ओ.बी.ओ. सहित आ जायेंगे 

सब को फिर कमी न लगेगी 

कविताओं की कली  खिलेगी 

इनकी  नक़ल करने लगा हूँ 

अकड के  मैं चलने   लगा हूँ 

अलबेला जो  हैं मेरे संग 

देख रह गए लोग दंग

कहते हैं परिचय करवा दो 

हम सब को भी मिलवा दो 

मैं बोला कवि बन जाओ 

बढ़िया कविता उन्हें सुनाओ 

मिलने   की  आ जायेगी बेला 

सुन्दर सहज है अलबेला

At 1:23pm on May 26, 2012, Mohd Nayab said…

GOT IT.... SORRY

At 1:15pm on May 26, 2012, Admin said…

Face Book se copy kar apney naam sey OBO par chhap diya. Esey sahityik chori kahtey hai. Mohd Nayab jee, OBO par eski anumati nahi hai, yah FB nahi hai. 

At 1:09pm on May 26, 2012, Mohd Nayab said…

maine wo poem fb se copy ki the jo ki niche di gayi link se li hai.. 

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