Comments - त्रिशंकु (लघुकथा) - Open Books Online2024-03-29T01:49:30Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A998736&xn_auth=noहार्दिक आभार आदरणीय डॉ आशुतोष…tag:openbooks.ning.com,2020-01-08:5170231:Comment:9988362020-01-08T15:01:51.079ZTEJ VEER SINGHhttp://openbooks.ning.com/profile/TEJVEERSINGH
<p>हार्दिक आभार आदरणीय डॉ आशुतोष मिश्रा जी।आपको भी नव वर्ष की हार्दिक बधाई एवम शुभकामनायें।</p>
<p>हार्दिक आभार आदरणीय डॉ आशुतोष मिश्रा जी।आपको भी नव वर्ष की हार्दिक बधाई एवम शुभकामनायें।</p> आदरणीय तेजवीर जी आपकी लघु कथा…tag:openbooks.ning.com,2020-01-08:5170231:Comment:9987712020-01-08T11:52:13.898ZDr Ashutosh Mishrahttp://openbooks.ning.com/profile/DrAshutoshMishra
<p>आदरणीय तेजवीर जी आपकी लघु कथाएँ अलहदा अंदाज ही होती हैं और मुझे बेहद पसंद भी आती हैं. इस उत्तम रचना के लिए भी तहे दिल बधाई स्वीकार करें ./ नव बर्ष की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ सादर </p>
<p>आदरणीय तेजवीर जी आपकी लघु कथाएँ अलहदा अंदाज ही होती हैं और मुझे बेहद पसंद भी आती हैं. इस उत्तम रचना के लिए भी तहे दिल बधाई स्वीकार करें ./ नव बर्ष की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ सादर </p> हार्दिक आभार आदरणीय रवि भसीन…tag:openbooks.ning.com,2020-01-06:5170231:Comment:9988072020-01-06T14:22:35.217ZTEJ VEER SINGHhttp://openbooks.ning.com/profile/TEJVEERSINGH
<p>हार्दिक आभार आदरणीय रवि भसीन "शाहिद"जी। मैं भी इस व्यवस्था की खामियों का शिकार हो चुका हूँ।उसी घटना से प्रेरित होकर इस लघुकथा की उत्पत्ति हुई है।</p>
<p>हार्दिक आभार आदरणीय रवि भसीन "शाहिद"जी। मैं भी इस व्यवस्था की खामियों का शिकार हो चुका हूँ।उसी घटना से प्रेरित होकर इस लघुकथा की उत्पत्ति हुई है।</p> आदरणीय तेजवीर सिंह जी, आपको इ…tag:openbooks.ning.com,2020-01-06:5170231:Comment:9986032020-01-06T14:06:10.217Zरवि भसीन 'शाहिद'http://openbooks.ning.com/profile/RaviBhasin
<p>आदरणीय तेजवीर सिंह जी, आपको इस लघु कथा के लिए बहुत बधाई। इतने कम शब्दों में और बहुत सुन्दर भाषा में आपने एक कड़वी सच्चाई को उजागर किया है। मैं जानता हूँ कि आपकी कथा में कितना सच है क्यूंकि इसी तरह का कुछ मेरे और मेरे परिवार के साथ घटित हो चुका है।</p>
<p>आदरणीय तेजवीर सिंह जी, आपको इस लघु कथा के लिए बहुत बधाई। इतने कम शब्दों में और बहुत सुन्दर भाषा में आपने एक कड़वी सच्चाई को उजागर किया है। मैं जानता हूँ कि आपकी कथा में कितना सच है क्यूंकि इसी तरह का कुछ मेरे और मेरे परिवार के साथ घटित हो चुका है।</p> हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण…tag:openbooks.ning.com,2020-01-05:5170231:Comment:9984932020-01-05T06:41:05.412ZTEJ VEER SINGHhttp://openbooks.ning.com/profile/TEJVEERSINGH
<p>हार्दिक आभार आदरणीय <span> </span><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami" class="fn url">लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'</a><span> </span>जी।</p>
<p>हार्दिक आभार आदरणीय <span> </span><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami" class="fn url">लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'</a><span> </span>जी।</p> हार्दिक आभार आदरणीय सुरेन्द्र…tag:openbooks.ning.com,2020-01-05:5170231:Comment:9985922020-01-05T06:40:15.889ZTEJ VEER SINGHhttp://openbooks.ning.com/profile/TEJVEERSINGH
<p>हार्दिक आभार आदरणीय<span> </span><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/SurendraNathSingh" class="fn url">सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप'</a><span> </span> जी।</p>
<p>हार्दिक आभार आदरणीय<span> </span><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/SurendraNathSingh" class="fn url">सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप'</a><span> </span> जी।</p> आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवाद…tag:openbooks.ning.com,2020-01-04:5170231:Comment:9985892020-01-04T23:17:56.900Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन। समसामयिक विषय पर अच्छी लघुकथा हुई है, हार्दिक बधाई स्वीकारें ।</p>
<p>आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन। समसामयिक विषय पर अच्छी लघुकथा हुई है, हार्दिक बधाई स्वीकारें ।</p> आद0 तेजवीर सिंह जी सादर अभिवा…tag:openbooks.ning.com,2020-01-04:5170231:Comment:9985802020-01-04T11:11:34.604Zनाथ सोनांचलीhttp://openbooks.ning.com/profile/SurendraNathSingh
<p>आद0 तेजवीर सिंह जी सादर अभिवादन। बेहतरीन लघुकथा लिखी आपने,, बड़ा कड़वा सच समाज का उजागर किया। अपनेनिहित स्वार्थ के कारण बहुत से लोग मुर्दो से आस लगाए रहते हैं और अर्थ तंत्र के लोभी डॉ लूटने में। बधाई आपको इस लघुकथा पर</p>
<p>आद0 तेजवीर सिंह जी सादर अभिवादन। बेहतरीन लघुकथा लिखी आपने,, बड़ा कड़वा सच समाज का उजागर किया। अपनेनिहित स्वार्थ के कारण बहुत से लोग मुर्दो से आस लगाए रहते हैं और अर्थ तंत्र के लोभी डॉ लूटने में। बधाई आपको इस लघुकथा पर</p>