Comments - गज़ल - Open Books Online2024-03-29T09:27:32Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A993747&xn_auth=noवाह खूब ग़ज़ल कही है..बधाईtag:openbooks.ning.com,2019-10-12:5170231:Comment:9942542019-10-12T04:20:10.663Zबृजेश कुमार 'ब्रज'http://openbooks.ning.com/profile/brijeshkumar
<p>वाह खूब ग़ज़ल कही है..बधाई</p>
<p>वाह खूब ग़ज़ल कही है..बधाई</p> बहुत ही खूबसूरत गज़ल के लिए बध…tag:openbooks.ning.com,2019-10-08:5170231:Comment:9939992019-10-08T08:16:53.167Zvijay nikorehttp://openbooks.ning.com/profile/vijaynikore
<p>बहुत ही खूबसूरत गज़ल के लिए बधाई, मित्र अशोक कुमार जी।</p>
<p>बहुत ही खूबसूरत गज़ल के लिए बधाई, मित्र अशोक कुमार जी।</p> बहुत सारी शिकायतों का गज़ल में…tag:openbooks.ning.com,2019-10-07:5170231:Comment:9941142019-10-07T12:01:25.705Zप्रदीप देवीशरण भट्टhttp://openbooks.ning.com/profile/PradeepDevisharanBhatt
<p><span style="font-size: 14pt;">बहुत सारी शिकायतों का गज़ल में सुंदर समावेष किया है अशोक जी बधाई</span></p>
<p><span style="font-size: 14pt;">बहुत सारी शिकायतों का गज़ल में सुंदर समावेष किया है अशोक जी बधाई</span></p> आदरणीय सुशील सरना साहब सादर न…tag:openbooks.ning.com,2019-10-06:5170231:Comment:9938852019-10-06T05:25:23.427ZAshok Kumar Raktalehttp://openbooks.ning.com/profile/AshokKumarRaktale
<p>आदरणीय सुशील सरना साहब सादर नमस्कार, गज़ल पर हुए मेरे प्रयास को सराहने के लिए आपका हृदय से आभार ।सादर ।</p>
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<p>आदरणीय सुशील सरना साहब सादर नमस्कार, गज़ल पर हुए मेरे प्रयास को सराहने के लिए आपका हृदय से आभार ।सादर ।</p>
<p></p> आदरणीय समर कबीर साहब सादर नमस…tag:openbooks.ning.com,2019-10-06:5170231:Comment:9938832019-10-06T05:23:19.549ZAshok Kumar Raktalehttp://openbooks.ning.com/profile/AshokKumarRaktale
<p>आदरणीय समर कबीर साहब सादर नमस्कार , आपसे मिली दाद ने मेरे रचना कर्म को सार्थक किया है । हार्दिक आभार । सादर .</p>
<p>आदरणीय समर कबीर साहब सादर नमस्कार , आपसे मिली दाद ने मेरे रचना कर्म को सार्थक किया है । हार्दिक आभार । सादर .</p> बिछा हर तरफ सिर्फ कंक्रीट है…tag:openbooks.ning.com,2019-10-04:5170231:Comment:9936942019-10-04T08:30:26.693ZSushil Sarnahttp://openbooks.ning.com/profile/SushilSarna
<p>बिछा हर तरफ सिर्फ कंक्रीट है</p>
<p>झुलसने लगे अब शजर देख लो ।<br/>वाह आदरणीय <span>अशोक कुमार रक्ताले </span>जी बहुत सुंदर और यथार्थ का चित्रण करती बेहतरीन ग़ज़ल। दिल से बधाई सर।</p>
<p>बिछा हर तरफ सिर्फ कंक्रीट है</p>
<p>झुलसने लगे अब शजर देख लो ।<br/>वाह आदरणीय <span>अशोक कुमार रक्ताले </span>जी बहुत सुंदर और यथार्थ का चित्रण करती बेहतरीन ग़ज़ल। दिल से बधाई सर।</p> जनाब अशोक कुमार रक्ताले जी आद…tag:openbooks.ning.com,2019-10-04:5170231:Comment:9938712019-10-04T06:15:59.078ZSamar kabeerhttp://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब अशोक कुमार रक्ताले जी आदाब,बहुत उम्द: ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।</p>
<p>जनाब अशोक कुमार रक्ताले जी आदाब,बहुत उम्द: ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।</p>