Comments - ग़ज़ल-लालफीताशाही-बृजेश कुमार 'ब्रज' - Open Books Online2024-03-28T08:54:12Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A992378&xn_auth=noग़ज़ल पसंदगी के लिए आभार आदरणीय…tag:openbooks.ning.com,2019-10-04:5170231:Comment:9937612019-10-04T15:52:15.075Zबृजेश कुमार 'ब्रज'http://openbooks.ning.com/profile/brijeshkumar
<p>ग़ज़ल पसंदगी के लिए आभार आदरणीय विजय जी..</p>
<p>ग़ज़ल पसंदगी के लिए आभार आदरणीय विजय जी..</p> अच्छी गज़ल कही है। हार्दिक बधा…tag:openbooks.ning.com,2019-10-01:5170231:Comment:9936662019-10-01T10:03:41.792Zvijay nikorehttp://openbooks.ning.com/profile/vijaynikore
<p>अच्छी गज़ल कही है। हार्दिक बधाई, मित्र बृजेश जी।</p>
<p>अच्छी गज़ल कही है। हार्दिक बधाई, मित्र बृजेश जी।</p> आदरणीय दण्डपाणि जी ग़ज़ल पे आपक…tag:openbooks.ning.com,2019-09-28:5170231:Comment:9933552019-09-28T12:44:00.297Zबृजेश कुमार 'ब्रज'http://openbooks.ning.com/profile/brijeshkumar
<p>आदरणीय दण्डपाणि जी ग़ज़ल पे आपकी उपस्थित और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार..</p>
<p>आदरणीय दण्डपाणि जी ग़ज़ल पे आपकी उपस्थित और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार..</p> देर के लिए माफ़ी चाहता हूँ आदर…tag:openbooks.ning.com,2019-09-24:5170231:Comment:9929282019-09-24T05:48:25.010Zबृजेश कुमार 'ब्रज'http://openbooks.ning.com/profile/brijeshkumar
<p>देर के लिए माफ़ी चाहता हूँ आदरणीय समर जी दरअसल हमारे यहाँ नेट की स्थिति आजकल काफी दयनीय है।ग़ज़ल पे आपकी अमूल्य राय के लिए शुक्रिया...आपकी सलहनुसार बदलाव किया जा सकता है लेकिन क्या 'साब' शब्द से दिक्कत है?या कुछ और ही कारण है?सादर</p>
<p>देर के लिए माफ़ी चाहता हूँ आदरणीय समर जी दरअसल हमारे यहाँ नेट की स्थिति आजकल काफी दयनीय है।ग़ज़ल पे आपकी अमूल्य राय के लिए शुक्रिया...आपकी सलहनुसार बदलाव किया जा सकता है लेकिन क्या 'साब' शब्द से दिक्कत है?या कुछ और ही कारण है?सादर</p> ग़ज़ल पे आपकी उपस्थित के लिए आभ…tag:openbooks.ning.com,2019-09-24:5170231:Comment:9928582019-09-24T05:43:31.152Zबृजेश कुमार 'ब्रज'http://openbooks.ning.com/profile/brijeshkumar
<p style="text-align: left;"><em>ग़ज़ल पे आपकी उपस्थित के लिए आभार आदरणीय तेजवीर सिंह जी..</em></p>
<p style="text-align: left;"><em>ग़ज़ल पे आपकी उपस्थित के लिए आभार आदरणीय तेजवीर सिंह जी..</em></p> हार्दिक आभार सतविंद्र जीtag:openbooks.ning.com,2019-09-24:5170231:Comment:9927882019-09-24T05:42:41.682Zबृजेश कुमार 'ब्रज'http://openbooks.ning.com/profile/brijeshkumar
<p>हार्दिक आभार सतविंद्र जी</p>
<p>हार्दिक आभार सतविंद्र जी</p> जनाब बृजेश कुमार 'ब्रज' जी आद…tag:openbooks.ning.com,2019-09-23:5170231:Comment:9928402019-09-23T09:01:46.869ZSamar kabeerhttp://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब बृजेश कुमार 'ब्रज' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p></p>
<p><span>'साब की दरियादिली भी झोपड़ों को खा गई'</span></p>
<p><span>इस मिसरे को यूँ कहना उचित होगा:-</span></p>
<p><span>'उनकी ये दरियादिली सब झोपड़ों को खा गई'</span></p>
<p>जनाब बृजेश कुमार 'ब्रज' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p></p>
<p><span>'साब की दरियादिली भी झोपड़ों को खा गई'</span></p>
<p><span>इस मिसरे को यूँ कहना उचित होगा:-</span></p>
<p><span>'उनकी ये दरियादिली सब झोपड़ों को खा गई'</span></p> हार्दिक बधाई आदरणीय बृजेश कुम…tag:openbooks.ning.com,2019-09-20:5170231:Comment:9924012019-09-20T14:26:45.059ZTEJ VEER SINGHhttp://openbooks.ning.com/profile/TEJVEERSINGH
<p>हार्दिक बधाई आदरणीय <span>बृजेश कुमार 'ब्रज'</span> जी। बेहतरीन गज़ल।</p>
<p><span>ये कहा था साहिबों ने घर नये देंगे बना</span><br/><span>साब की दरियादिली भी झोपड़ों को खा गई</span></p>
<p>हार्दिक बधाई आदरणीय <span>बृजेश कुमार 'ब्रज'</span> जी। बेहतरीन गज़ल।</p>
<p><span>ये कहा था साहिबों ने घर नये देंगे बना</span><br/><span>साब की दरियादिली भी झोपड़ों को खा गई</span></p> उत्तम अति उत्तम!tag:openbooks.ning.com,2019-09-20:5170231:Comment:9926162019-09-20T08:29:23.439Zसतविन्द्र कुमार राणाhttp://openbooks.ning.com/profile/28fn40mg3o5v9
<p>उत्तम अति उत्तम<strong>!</strong></p>
<p>उत्तम अति उत्तम<strong>!</strong></p>