Comments - एक ग़ज़ल इस्लाह के लिए - Open Books Online2024-03-29T09:20:46Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A964053&xn_auth=noसमस्त मित्रों को हार्दिक आभार…tag:openbooks.ning.com,2018-12-03:5170231:Comment:9645362018-12-03T03:13:32.053Zमनोज अहसासhttp://openbooks.ning.com/profile/ManojkumarAhsaas
<p>समस्त मित्रों को हार्दिक आभार,सादर</p>
<p>आदरणीय कबीर साहब आपकी बेशकीमती इस्लाह का हार्दिक शुक्रिया</p>
<p>सदैव कृपा बनाये रक्खे</p>
<p>सादर</p>
<p>समस्त मित्रों को हार्दिक आभार,सादर</p>
<p>आदरणीय कबीर साहब आपकी बेशकीमती इस्लाह का हार्दिक शुक्रिया</p>
<p>सदैव कृपा बनाये रक्खे</p>
<p>सादर</p> जनाब मनोज अहसास साहिब आदाब,ग़ज़…tag:openbooks.ning.com,2018-12-01:5170231:Comment:9642832018-12-01T05:59:38.003ZSamar kabeerhttp://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब मनोज अहसास साहिब आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p>' <span>दिल्लगी में शायद तेरी रह गई थी कुछ कमी '</span></p>
<p><span>ये मिसरा लय में नहीं है,इसे यूँ कर सकते हैं:-</span></p>
<p>'दिल्लगी में तेरी शायद रह गई थी कुछ कमी'</p>
<p></p>
<p>' <span>कोई सपना भी नजर में देर तक ठहरा नहीं</span><br></br><span>कुछ छुपाने के लिए थे कुछ बहाने के लिए'</span></p>
<p><span>इस शैर में शुतरगुरबा देखें,ऊला में 'सपना' एक वचन सनी में बहुवचन,ऊला मिसरा यूँ कर सकते…</span></p>
<p>जनाब मनोज अहसास साहिब आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p>' <span>दिल्लगी में शायद तेरी रह गई थी कुछ कमी '</span></p>
<p><span>ये मिसरा लय में नहीं है,इसे यूँ कर सकते हैं:-</span></p>
<p>'दिल्लगी में तेरी शायद रह गई थी कुछ कमी'</p>
<p></p>
<p>' <span>कोई सपना भी नजर में देर तक ठहरा नहीं</span><br/><span>कुछ छुपाने के लिए थे कुछ बहाने के लिए'</span></p>
<p><span>इस शैर में शुतरगुरबा देखें,ऊला में 'सपना' एक वचन सनी में बहुवचन,ऊला मिसरा यूँ कर सकते हैं:-</span></p>
<p><span>'आँख में सपने भी मेरी देर तक ठहरे नहीं'</span></p>
<p></p>
<p></p> आदरणीय मनोज कुमार जी आदाब, ग़ज़…tag:openbooks.ning.com,2018-12-01:5170231:Comment:9642732018-12-01T05:25:52.625Zराज़ नवादवीhttp://openbooks.ning.com/profile/RazNawadwi
<p><span>आदरणीय मनोज कुमार जी आदाब, ग़ज़ल की सुन्दर प्रस्तुति के लिए दाद के साथ मुबारकबाद. सादर. </span></p>
<p><span>आदरणीय मनोज कुमार जी आदाब, ग़ज़ल की सुन्दर प्रस्तुति के लिए दाद के साथ मुबारकबाद. सादर. </span></p> खूब सुंदर रचना tag:openbooks.ning.com,2018-11-30:5170231:Comment:9641792018-11-30T10:41:29.236Znarendrasinh chauhanhttp://openbooks.ning.com/profile/narendrasinhchauhan
<p>खूब सुंदर रचना </p>
<p>खूब सुंदर रचना </p> आदरणीय मनोज कुमार जी आदाब,
…tag:openbooks.ning.com,2018-11-30:5170231:Comment:9640772018-11-30T07:41:54.393ZMohammed Arifhttp://openbooks.ning.com/profile/MohammedArif
<p>आदरणीय मनोज कुमार जी आदाब,</p>
<p> बहुत दिनोंं बाद आपकी कोई ग़ज़ल पढ़ रहा हूँ, पढ़कर अच्छा लगा । शे'र दर शे'र दाल के साथ दिली मुबारकबाद कुबूल करें । बाक़ी उस्ताद शाइर अपनी राय देंगे , इंतज़ार कीजिए ।</p>
<p>आदरणीय मनोज कुमार जी आदाब,</p>
<p> बहुत दिनोंं बाद आपकी कोई ग़ज़ल पढ़ रहा हूँ, पढ़कर अच्छा लगा । शे'र दर शे'र दाल के साथ दिली मुबारकबाद कुबूल करें । बाक़ी उस्ताद शाइर अपनी राय देंगे , इंतज़ार कीजिए ।</p>