Comments - ग़ज़ल- बलराम धाकड़ (वो मेरे साथ था, मेरा शिकार होने तक) - Open Books Online2024-03-29T11:09:31Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A958688&xn_auth=noग़ज़ल में आपकी शिरक़त और हौसला अ…tag:openbooks.ning.com,2018-11-04:5170231:Comment:9597012018-11-04T12:13:04.630ZBalram Dhakarhttp://openbooks.ning.com/profile/BalramDhakar
<p>ग़ज़ल में आपकी शिरक़त और हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया, आदरणीय विजय निकोर जी।</p>
<p>सादर।</p>
<p>ग़ज़ल में आपकी शिरक़त और हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया, आदरणीय विजय निकोर जी।</p>
<p>सादर।</p> आपका बहुत बहुत शुक्रिया, आदरण…tag:openbooks.ning.com,2018-11-04:5170231:Comment:9597842018-11-04T12:12:11.005ZBalram Dhakarhttp://openbooks.ning.com/profile/BalramDhakar
<p>आपका बहुत बहुत शुक्रिया, आदरणीय अजय तिवारी जी।</p>
<p>सादर।</p>
<p>आपका बहुत बहुत शुक्रिया, आदरणीय अजय तिवारी जी।</p>
<p>सादर।</p> बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय ब्र…tag:openbooks.ning.com,2018-11-04:5170231:Comment:9599162018-11-04T12:11:37.387ZBalram Dhakarhttp://openbooks.ning.com/profile/BalramDhakar
<p>बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय ब्रजेश जी।</p>
<p>सादर।</p>
<p>बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय ब्रजेश जी।</p>
<p>सादर।</p> गज़ल के शिल्प में तो अन्य माहि…tag:openbooks.ning.com,2018-11-04:5170231:Comment:9596942018-11-04T09:51:27.765Zvijay nikorehttp://openbooks.ning.com/profile/vijaynikore
<p>गज़ल के शिल्प में तो अन्य माहिर हैं, गज़ल के भाव मुझको बहुत अच्छे लगे। बधाई, बलराम जी।</p>
<p>गज़ल के शिल्प में तो अन्य माहिर हैं, गज़ल के भाव मुझको बहुत अच्छे लगे। बधाई, बलराम जी।</p> आदरणीय बलराम जी, अच्छी ग़ज़ल हु…tag:openbooks.ning.com,2018-11-03:5170231:Comment:9598132018-11-03T12:16:10.547ZAjay Tiwarihttp://openbooks.ning.com/profile/AjayTiwari
<p>आदरणीय बलराम जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई. </p>
<p>आदरणीय बलराम जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई. </p> वाह बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही ह…tag:openbooks.ning.com,2018-11-03:5170231:Comment:9596642018-11-03T06:41:57.854Zबृजेश कुमार 'ब्रज'http://openbooks.ning.com/profile/brijeshkumar
<p>वाह बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है आदरणीय...</p>
<p>वाह बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है आदरणीय...</p> आदरणीय समर सर, ग़ज़ल में आपकी श…tag:openbooks.ning.com,2018-11-01:5170231:Comment:9594362018-11-01T09:38:00.443ZBalram Dhakarhttp://openbooks.ning.com/profile/BalramDhakar
<p>आदरणीय समर सर, ग़ज़ल में आपकी शिरक़त और हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया।</p>
<p>आपकी समझाइश और सुझावों के मुताबिक़ सुधार कर लूँगा।</p>
<p>आपका बहुत बहुत आभार, सर।</p>
<p>आदरणीय समर सर, ग़ज़ल में आपकी शिरक़त और हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया।</p>
<p>आपकी समझाइश और सुझावों के मुताबिक़ सुधार कर लूँगा।</p>
<p>आपका बहुत बहुत आभार, सर।</p> जनाब बलराम धाकड़ जी आदाब,ग़ज़ल क…tag:openbooks.ning.com,2018-11-01:5170231:Comment:9595232018-11-01T06:21:50.092ZSamar kabeerhttp://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब बलराम धाकड़ जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बहुत बहुत मुबारकबाद ।</p>
<p></p>
<p></p>
<p dir="ltr">अजीब बात है, दुश्मन से यार होने तक,</p>
<p dir="ltr">वो मेरे साथ था, मेरा शिकार होने तक'</p>
<p dir="ltr">जैसा कि जनाब निलेश जी बता चुके हैं कि इस मतले के दोनों मिसरों में ऐब-ए-तनाफ़ुर है, इस मतले को यूँ कर लें तो ये ऐब निकल सकता है:-</p>
<p dir="ltr">'ये वाक़िआ है कि दुश्मन से यार होने तक</p>
<p dir="ltr">वो मेरे सँग था मेरा शिकार होने तक'</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">' <span>ख़िज़ाओं…</span></p>
<p>जनाब बलराम धाकड़ जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बहुत बहुत मुबारकबाद ।</p>
<p></p>
<p></p>
<p dir="ltr">अजीब बात है, दुश्मन से यार होने तक,</p>
<p dir="ltr">वो मेरे साथ था, मेरा शिकार होने तक'</p>
<p dir="ltr">जैसा कि जनाब निलेश जी बता चुके हैं कि इस मतले के दोनों मिसरों में ऐब-ए-तनाफ़ुर है, इस मतले को यूँ कर लें तो ये ऐब निकल सकता है:-</p>
<p dir="ltr">'ये वाक़िआ है कि दुश्मन से यार होने तक</p>
<p dir="ltr">वो मेरे सँग था मेरा शिकार होने तक'</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">' <span>ख़िज़ाओं के ये दरख़्तों से कहो, ज़ब्त करें,</span><br/><span>बचा रखें ये पत्तियाँ बहार होने तक'</span></p>
<p dir="ltr"><span>सानी मिसरे में सहीह वाक्य है 'बहार आने तक'और सानी मिसरा जनाब निलेश जी बता चुके हैं कि बह्र में नहीं है,इस शैर को यूँ कर सकते हैं:-</span></p>
<p dir="ltr"><span>'खिज़ां रसीदा दरख़्तो अभी तो ज़ब्त करो</span></p>
<p dir="ltr"><span>बचा के रक्खो ये पत्ते बहार होने तक'</span></p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr"><span>बाक़ी शुभ शुभ ।</span></p> Honourable Zid Saheb, Thanks…tag:openbooks.ning.com,2018-10-31:5170231:Comment:9594162018-10-31T17:04:01.169ZBalram Dhakarhttp://openbooks.ning.com/profile/BalramDhakar
<p>Honourable Zid Saheb, Thanks a million for your complement.</p>
<p>Yes, Shikaar is used twice as Kaafiya but there is no boundation, as I think, to use a Kaafiya twice.</p>
<p>With due respect...</p>
<p>Honourable Zid Saheb, Thanks a million for your complement.</p>
<p>Yes, Shikaar is used twice as Kaafiya but there is no boundation, as I think, to use a Kaafiya twice.</p>
<p>With due respect...</p> आदरणीय छोटेलाल जी, प्रोत्साहन…tag:openbooks.ning.com,2018-10-31:5170231:Comment:9593492018-10-31T16:58:36.125ZBalram Dhakarhttp://openbooks.ning.com/profile/BalramDhakar
<p>आदरणीय छोटेलाल जी, प्रोत्साहन के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद।</p>
<p>सादर।</p>
<p>आदरणीय छोटेलाल जी, प्रोत्साहन के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद।</p>
<p>सादर।</p>