Comments - निकलेगा आफ़ताब इसी आसमान से (ग़ज़ल) - Open Books Online2024-03-29T10:45:27Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A946115&xn_auth=noबहुत ही बढ़िया ग़ज़ल ....हार्दि…tag:openbooks.ning.com,2018-08-27:5170231:Comment:9464082018-08-27T06:24:52.644ZShyam Narain Vermahttp://openbooks.ning.com/profile/ShyamNarainVerma
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<tbody><tr><td width="576">बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल ....हार्दिक बधाई ! </td>
</tr>
</tbody>
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<tbody><tr><td width="576">बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल ....हार्दिक बधाई ! </td>
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</table> आदरणीय जयनीत कुमार मेहता जी स…tag:openbooks.ning.com,2018-08-26:5170231:Comment:9461012018-08-26T08:37:27.845Zडॉ छोटेलाल सिंहhttp://openbooks.ning.com/profile/20ch7d01r75yx
<p>आदरणीय जयनीत कुमार मेहता जी सुंदर गजल लिखने के लिए बहुत बहुत बधाई</p>
<p>आदरणीय जयनीत कुमार मेहता जी सुंदर गजल लिखने के लिए बहुत बहुत बधाई</p> भाई जयनित जी, सुंदर गजल हुयी…tag:openbooks.ning.com,2018-08-26:5170231:Comment:9462362018-08-26T06:00:39.059Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>भाई जयनित जी, सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई .</p>
<p>भाई जयनित जी, सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई .</p> यहाँ भी ऐडिट कर दीजिये ।tag:openbooks.ning.com,2018-08-25:5170231:Comment:9461682018-08-25T17:20:25.462ZSamar kabeerhttp://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p>यहाँ भी ऐडिट कर दीजिये ।</p>
<p>यहाँ भी ऐडिट कर दीजिये ।</p> आदरणीय समर कबीर जी, सादर प्रण…tag:openbooks.ning.com,2018-08-25:5170231:Comment:9459952018-08-25T17:17:30.356Zजयनित कुमार मेहताhttp://openbooks.ning.com/profile/JaynitKumarMehta
<p>आदरणीय समर कबीर जी, सादर प्रणाम।</p>
<p>ओबीओ से दूर रहने के दौरान जो कमी खलती रही, वो आज पूरी होती-सी लग रही है। मैं बता नहीं सकता एक लंबे समय से ग़ज़ल का अभ्यास छूटने के बाद किसी नई रचना पर आपकी ऐसी प्रतिक्रिया प्राप्त होना मेरे लिए कितनी ख़ुशी की बात है। आपके सुझाव के अनुसार मैंने मूल प्रति में संशोधन कर लिया है। निरंतर मार्गदर्शन के लिए पुनः कोटि-कोटि धन्यवाद आपको। आपका आशीर्वाद बना रहे, यही कामना करता हूँ।</p>
<p>आदरणीय समर कबीर जी, सादर प्रणाम।</p>
<p>ओबीओ से दूर रहने के दौरान जो कमी खलती रही, वो आज पूरी होती-सी लग रही है। मैं बता नहीं सकता एक लंबे समय से ग़ज़ल का अभ्यास छूटने के बाद किसी नई रचना पर आपकी ऐसी प्रतिक्रिया प्राप्त होना मेरे लिए कितनी ख़ुशी की बात है। आपके सुझाव के अनुसार मैंने मूल प्रति में संशोधन कर लिया है। निरंतर मार्गदर्शन के लिए पुनः कोटि-कोटि धन्यवाद आपको। आपका आशीर्वाद बना रहे, यही कामना करता हूँ।</p> आदरणीय सुशील सरना जी, ग़ज़ल को…tag:openbooks.ning.com,2018-08-25:5170231:Comment:9462312018-08-25T17:12:20.447Zजयनित कुमार मेहताhttp://openbooks.ning.com/profile/JaynitKumarMehta
आदरणीय सुशील सरना जी, ग़ज़ल को पढ़ने व प्रतिक्रिया देने हेतु हार्दिक आभारी हूँ आपका।
आदरणीय सुशील सरना जी, ग़ज़ल को पढ़ने व प्रतिक्रिया देने हेतु हार्दिक आभारी हूँ आपका। जनाब जयनित कुमार मेहता जी आदा…tag:openbooks.ning.com,2018-08-25:5170231:Comment:9459912018-08-25T17:03:02.692ZSamar kabeerhttp://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब जयनित कुमार मेहता जी आदाब, बहुत समय बाद ओबीओ पर आपकी ग़ज़ल पढ़ने का मौक़ा मिला है ।</p>
<p>बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।</p>
<p>कुछ बारीक बातें आपके संज्ञान में लाना चाहूँगा ।</p>
<p></p>
<p>'<span>मुकरे हैं सारे अब्र अब अपनी ज़बान से'</span></p>
<p><span>इस मिसरे को अगर यूँ कर लें तो लय की दृष्टि से उचित होगा :-</span></p>
<p><span>'मुकरे हैं सारे अब्र जो अपनी ज़बान से'</span></p>
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<p><span>'क्या-क्या न हमसे छीन गयी ये…</span></p>
<p>जनाब जयनित कुमार मेहता जी आदाब, बहुत समय बाद ओबीओ पर आपकी ग़ज़ल पढ़ने का मौक़ा मिला है ।</p>
<p>बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।</p>
<p>कुछ बारीक बातें आपके संज्ञान में लाना चाहूँगा ।</p>
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<p>'<span>मुकरे हैं सारे अब्र अब अपनी ज़बान से'</span></p>
<p><span>इस मिसरे को अगर यूँ कर लें तो लय की दृष्टि से उचित होगा :-</span></p>
<p><span>'मुकरे हैं सारे अब्र जो अपनी ज़बान से'</span></p>
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<p><span>'क्या-क्या न हमसे छीन गयी ये तरक्कियाँ'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में 'गयी' को " गईं" कर लें ।</span></p>
<p></p>
<p><span>'छू ली बुलंदियाँ तो ये एहसास "जय" हुआ'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में 'छू ली' को "छू लीं" कर लें ।</span></p> आदरणीय जयनित जी इस सुंदर ग़ज़ल…tag:openbooks.ning.com,2018-08-25:5170231:Comment:9461552018-08-25T12:36:51.684ZSushil Sarnahttp://openbooks.ning.com/profile/SushilSarna
<p>आदरणीय जयनित जी इस सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई।</p>
<p>आदरणीय जयनित जी इस सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई।</p>