Comments - कारसाज - लघुकथा - Open Books Online2024-03-29T06:36:56Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A892735&xn_auth=noआदरणीय वीरेंद्र कुमार जी आदाब…tag:openbooks.ning.com,2017-10-29:5170231:Comment:8927882017-10-29T02:05:27.135ZMohammed Arifhttp://openbooks.ning.com/profile/MohammedArif
आदरणीय वीरेंद्र कुमार जी आदाब, आजकल यह प्रचलन में हो गया है कि व्यक्ति कैसा भी क्यों न हो उससे अपना स्वार्थ सिद्ध करना । वैसे भी धन का ज़ियादा ही बोलबाला है । आप धन के बल पर कुछ भी करवा सकते हैं । अच्छा कथानक मगर और बेहतर हो सकता था । कथा कम कलेवर भी हो सकती थी । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय वीरेंद्र कुमार जी आदाब, आजकल यह प्रचलन में हो गया है कि व्यक्ति कैसा भी क्यों न हो उससे अपना स्वार्थ सिद्ध करना । वैसे भी धन का ज़ियादा ही बोलबाला है । आप धन के बल पर कुछ भी करवा सकते हैं । अच्छा कथानक मगर और बेहतर हो सकता था । कथा कम कलेवर भी हो सकती थी । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।