Comments - गैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल..मेरे दीदा ए नम में तू ही तू-बृजेश कुमार 'ब्रज' - Open Books Online2024-03-28T19:58:20Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A879300&xn_auth=noआदरणीय समर जी नमन स्वीकार करे…tag:openbooks.ning.com,2017-09-09:5170231:Comment:8799612017-09-09T13:07:30.088Zबृजेश कुमार 'ब्रज'http://openbooks.ning.com/profile/brijeshkumar
आदरणीय समर जी नमन स्वीकार करें..आपकी इंगित की हुईं कमियों में सुधार किया है।एब ए तनाफुर है लेकिन कोई बेहतर विकल्प सूझ नहीं रहा।साथ ही आदरणीय मतले के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है ये मेरी समझ नहीं आ रहा।दोनों मिसरों में किसी एक शख्स की और दोनों की आँखों की बात की गई है।हालाँकि उला में 'में' की कमी है लेकिन फिर बहर से खारिज होगी।आगे आपकी सलाह सर आँखों पे।सादर
आदरणीय समर जी नमन स्वीकार करें..आपकी इंगित की हुईं कमियों में सुधार किया है।एब ए तनाफुर है लेकिन कोई बेहतर विकल्प सूझ नहीं रहा।साथ ही आदरणीय मतले के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है ये मेरी समझ नहीं आ रहा।दोनों मिसरों में किसी एक शख्स की और दोनों की आँखों की बात की गई है।हालाँकि उला में 'में' की कमी है लेकिन फिर बहर से खारिज होगी।आगे आपकी सलाह सर आँखों पे।सादर जनाब बृजेश कुमार'ब्रज'साहिब आ…tag:openbooks.ning.com,2017-09-07:5170231:Comment:8794762017-09-07T17:53:07.446ZSamar kabeerhttp://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
जनाब बृजेश कुमार'ब्रज'साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।<br />
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"तेरी आँखें ज़हान की खुशबू<br />
मेरी दीदा ए नम में तू ही तू"<br />
मतले के दोनों मिसरों में रब्त नही है,और दूसरी बात ये कि सानी मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर है,'नम में'और ख़ास बात ये कि 'दीदा'पुल्लिंग है ।<br />
दूसरे शैर के ऊला मिसरे में 'नुमाया' को "नुमायाँ" कर लें, सानी मिसरे में भी ऐब-ए-तनाफ़ुर है'नज़्म में'देखें ।<br />
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"याद किसकी है शुरुर किसका<br />
किसलिये आँखों में रवां आँसू"<br />
इस शैर का ऊला मिसरा लय में नहीं और 'शुरुर'शब्द भी गलत है,ऊला मिसरा यूँ कर…
जनाब बृजेश कुमार'ब्रज'साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।<br />
<br />
"तेरी आँखें ज़हान की खुशबू<br />
मेरी दीदा ए नम में तू ही तू"<br />
मतले के दोनों मिसरों में रब्त नही है,और दूसरी बात ये कि सानी मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर है,'नम में'और ख़ास बात ये कि 'दीदा'पुल्लिंग है ।<br />
दूसरे शैर के ऊला मिसरे में 'नुमाया' को "नुमायाँ" कर लें, सानी मिसरे में भी ऐब-ए-तनाफ़ुर है'नज़्म में'देखें ।<br />
<br />
"याद किसकी है शुरुर किसका<br />
किसलिये आँखों में रवां आँसू"<br />
इस शैर का ऊला मिसरा लय में नहीं और 'शुरुर'शब्द भी गलत है,ऊला मिसरा यूँ कर सकते हैं :-<br />
'याद किसकी सुरूर है किसका'<br />
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और सानी मिसरे में 'में'की जगह "से" कर लें ।<br />
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"तेरी जुल्फों से खुशबुएँ लेकर<br />
कोई झोंका सबा का जाये छू"<br />
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इस शैर में भाव स्पष्ट नहीं हैं ।