Comments - प्रेम पचीसी --भाग 2 (प्रीत-पगे दोहे) - Open Books Online2024-03-29T15:26:45Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A878751&xn_auth=noबहुत ही सुन्दर दोहे।tag:openbooks.ning.com,2017-09-06:5170231:Comment:8792002017-09-06T01:30:16.514Zvijay nikorehttp://openbooks.ning.com/profile/vijaynikore
<p>बहुत ही सुन्दर दोहे।</p>
<p>बहुत ही सुन्दर दोहे।</p> प्रवणता के जिस विन्दु पर इन भ…tag:openbooks.ning.com,2017-09-05:5170231:Comment:8792312017-09-05T09:42:52.486ZSaurabh Pandeyhttp://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>प्रवणता के जिस विन्दु पर इन भावों का शब्दांकन हुआ है, वह बहुत कुछ कहने के लिए प्रेरित कर रहा है. कई ऐसे दोहे हैं जिनके कथ्य रोचक तो हैं ही, अभिनव भी हैं. पहला दोहा ही इस कड़ी का सर्वोत्तम दोहा बन पड़ा है. </p>
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<p>लेकिन जिस तथ्य की ओर मेरी दृष्टि विशेष रूप से केन्द्रित हुई है, वे हैं दोहा संख्या 11, 13 और 18.</p>
<p>जोगी या फ़कीर के साथ मन आना कई विन्दु समेटे हुए है. भाव निवेदन के क्रम में देह मन सोच सबकी दशा शाब्दिक हुई है. लेकिन उपर्युक्त दोहे हठात उस दौर तक ले जाते हैं जब वज्रयान की…</p>
<p>प्रवणता के जिस विन्दु पर इन भावों का शब्दांकन हुआ है, वह बहुत कुछ कहने के लिए प्रेरित कर रहा है. कई ऐसे दोहे हैं जिनके कथ्य रोचक तो हैं ही, अभिनव भी हैं. पहला दोहा ही इस कड़ी का सर्वोत्तम दोहा बन पड़ा है. </p>
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<p>लेकिन जिस तथ्य की ओर मेरी दृष्टि विशेष रूप से केन्द्रित हुई है, वे हैं दोहा संख्या 11, 13 और 18.</p>
<p>जोगी या फ़कीर के साथ मन आना कई विन्दु समेटे हुए है. भाव निवेदन के क्रम में देह मन सोच सबकी दशा शाब्दिक हुई है. लेकिन उपर्युक्त दोहे हठात उस दौर तक ले जाते हैं जब वज्रयान की शाखा-उपशाखाओं का घोरतम प्रभाव समाज पर था और तंत्र-मंत्र की सिद्धियाँ अपने क्रूरतम स्वरूप में हुआ करती थीं. नाथपंथियों, सिद्धों और सूफ़ियों का बोलबाला होने लगा था जो कई बार तो स्वयं वज्रयानियों के प्रभाव के कारण अत्यंत विकृत रूप में जब-तब समाज के सामने आया जाया करते थे. लेकिन नाथपंथी जो जोगी कहलाते थे, अपने दोहों और पदों के गायन से तबके समाज को उन घृणित व्यवहार आचरण से सचेत करते थे.</p>
<p>लेकिन इन सिद्धों और जोगियों में अनुसंधानकर्ताओं का बहुत बड़ा वर्ग ’पंचमकार’ का अनुयायी हुआ करता था. और समाज की कई अकुलीन स्त्रियाँ इनके पीछे उद्वेग में हुआ करती थीं. यहीं से जोगी और जोगिन का स्वरूप आम होना शुरु हुआ. </p>
<p>प्रेम के इस स्वरूप को उद्धृत कर आपने संकेत में ही सही बहुत कुछा उड़ेल डाला है.</p>
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<p>इस प्रस्तुति हेतु साधुवाद.. </p>
<p>शुभेच्छाएँ </p>
<p></p> खूबसूरत दोहे हार्दिक बधाई ।tag:openbooks.ning.com,2017-09-03:5170231:Comment:8790232017-09-03T13:14:54.301Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
खूबसूरत दोहे हार्दिक बधाई ।
खूबसूरत दोहे हार्दिक बधाई । जनाब ख़ुर्शीद खैराड़ी साहिब आदा…tag:openbooks.ning.com,2017-09-02:5170231:Comment:8788382017-09-02T12:40:11.608ZSamar kabeerhttp://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
जनाब ख़ुर्शीद खैराड़ी साहिब आदाब,सभी दोहे अच्छे लगे,बधाई स्वीकार करें ।
जनाब ख़ुर्शीद खैराड़ी साहिब आदाब,सभी दोहे अच्छे लगे,बधाई स्वीकार करें । बहुत अच्छे दोहे रचे हैँ आदरणी…tag:openbooks.ning.com,2017-09-02:5170231:Comment:8786542017-09-02T08:06:23.449ZGajendra shrotriyahttp://openbooks.ning.com/profile/Gajendrashrotriya
बहुत अच्छे दोहे रचे हैँ आदरणीय आपने। प्रेम की अनुभूति हर शब्द से झलक रही है। ये दोहे कुछ खास पसंद आए।<br />
//एक सरीखा हो गया, तेरा-मेरा हाल ।<br />
रोगी दोनों हो गए, कैसे करें सँभाल //<br />
<br />
//बैर करूँ किस से भला, किस से ठानूँ रार ।<br />
प्यार हुआ जब से मुझे, आवे सब पर प्यार //<br />
<br />
//तन की सुध-बुध खो गई, मन का गया करार ।<br />
डोलूँ बनकर बावरी, पाकर तेरा प्यार //<br />
<br />
//खेल अनोखा हो गई, जोगी तेरी प्रीत ।<br />
जीतूँ तो हारूँ पिया, हारूँ तो हो जीत //<br />
<br />
//चलते-चलते एक दिन, मुड़ जायेंगे पाँव ।<br />
परदेसी की बाट में, नैन बिछाए गाँव//<br />
<br />
बहुत…
बहुत अच्छे दोहे रचे हैँ आदरणीय आपने। प्रेम की अनुभूति हर शब्द से झलक रही है। ये दोहे कुछ खास पसंद आए।<br />
//एक सरीखा हो गया, तेरा-मेरा हाल ।<br />
रोगी दोनों हो गए, कैसे करें सँभाल //<br />
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//बैर करूँ किस से भला, किस से ठानूँ रार ।<br />
प्यार हुआ जब से मुझे, आवे सब पर प्यार //<br />
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//तन की सुध-बुध खो गई, मन का गया करार ।<br />
डोलूँ बनकर बावरी, पाकर तेरा प्यार //<br />
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//खेल अनोखा हो गई, जोगी तेरी प्रीत ।<br />
जीतूँ तो हारूँ पिया, हारूँ तो हो जीत //<br />
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//चलते-चलते एक दिन, मुड़ जायेंगे पाँव ।<br />
परदेसी की बाट में, नैन बिछाए गाँव//<br />
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बहुत बधाई और शुभकामनाएँ आपको। आदरणीय खुर्शीद खैराड़ी जी आदाब…tag:openbooks.ning.com,2017-09-02:5170231:Comment:8786492017-09-02T06:09:54.694ZMohammed Arifhttp://openbooks.ning.com/profile/MohammedArif
आदरणीय खुर्शीद खैराड़ी जी आदाब, बहुत ख़ूब!लाजवाब, बेजोड़ प्रेम के साग़र में गोते लगाते दोहे । जितनी प्रशंसा की जाय कम है । ढाई आखर प्रेम का सर्वश्रेष्ठ बखान । दिली मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए ।
आदरणीय खुर्शीद खैराड़ी जी आदाब, बहुत ख़ूब!लाजवाब, बेजोड़ प्रेम के साग़र में गोते लगाते दोहे । जितनी प्रशंसा की जाय कम है । ढाई आखर प्रेम का सर्वश्रेष्ठ बखान । दिली मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए ।