Comments - इस्लाह की गुज़ारिश के साथ एक ग़ज़ल पेश है (गुरप्रीत सिंह ) - Open Books Online2024-03-29T12:12:23Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A867807&xn_auth=noआदरणीय रवि सर जी,,, रचना की स…tag:openbooks.ning.com,2017-07-25:5170231:Comment:8686512017-07-25T04:14:27.859ZGurpreet Singh jammuhttp://openbooks.ning.com/profile/GurpreetSingh624
<p>आदरणीय रवि सर जी,,, रचना की सराहना और आपके बहुमूल्य सुझावों के लिए बहुत धन्यवाद.. <br/>अब मेरा दिल यहॉं नहीं होता,,,इस मिसरे को दुरुस्त करने की कोशिश कर रहा हूँ लेकिन हो नहीं पा रहा किसी तरह</p>
<p>आदरणीय रवि सर जी,,, रचना की सराहना और आपके बहुमूल्य सुझावों के लिए बहुत धन्यवाद.. <br/>अब मेरा दिल यहॉं नहीं होता,,,इस मिसरे को दुरुस्त करने की कोशिश कर रहा हूँ लेकिन हो नहीं पा रहा किसी तरह</p> आदरणीय गुरप्रीत जी क्या कहन…tag:openbooks.ning.com,2017-07-24:5170231:Comment:8685062017-07-24T07:41:57.794ZRavi Shuklahttp://openbooks.ning.com/profile/RaviShukla
<p>आदरणीय गुरप्रीत जी क्या कहने बहुत अच्छे अशआर खास तौर पर ये दो अश्आर हमें बहुत पसंद आए</p>
<p></p>
<p>बोलने वाले कब ये समझेंगे <br></br>चुप है जो बेज़ुबां नहीं होता। वाह वाह</p>
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<p>चाहे कितना उठे धुआँ ऊपर <br></br>वो कभी आसमाँ नहीं होता। बहुत खूब गुरप्रीत जी</p>
<p></p>
<p>अब बात करे मतले की तो विद्वत जन की राय आ चुकी है फिर भी एक नजरिया है देखने का मतले को ऐसे कर के देखे</p>
<p></p>
<p>तू अगर महरबां नहीं होता</p>
<p>मै तेरा कद्रदां नहीं होता</p>
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<p>अब मेरा दिल यहॉं नहीं होता इस…</p>
<p>आदरणीय गुरप्रीत जी क्या कहने बहुत अच्छे अशआर खास तौर पर ये दो अश्आर हमें बहुत पसंद आए</p>
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<p>बोलने वाले कब ये समझेंगे <br/>चुप है जो बेज़ुबां नहीं होता। वाह वाह</p>
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<p>चाहे कितना उठे धुआँ ऊपर <br/>वो कभी आसमाँ नहीं होता। बहुत खूब गुरप्रीत जी</p>
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<p>अब बात करे मतले की तो विद्वत जन की राय आ चुकी है फिर भी एक नजरिया है देखने का मतले को ऐसे कर के देखे</p>
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<p>तू अगर महरबां नहीं होता</p>
<p>मै तेरा कद्रदां नहीं होता</p>
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<p>अब मेरा दिल यहॉं नहीं होता इस के वाक्य विन्यास में कुछ कमी लग रही है । धुआं चाहे जितना उपर उठ ले वो आकाश नहीं बन सकता यो धुआं चाहे कितना उपर उठ ले वो आकाश नहीं बन सकता । इन दो वाक्यों के अनुसार आप <strong>जितना</strong> और <strong>कितना</strong> के अंतर और अपने भाव के अनुसार उसके प्रयोग को समझ सकते है । सादर</p> भाव बहुत ही दिलकश हैं ... रचन…tag:openbooks.ning.com,2017-07-23:5170231:Comment:8685702017-07-23T18:37:16.021Zvijay nikorehttp://openbooks.ning.com/profile/vijaynikore
<p>भाव बहुत ही दिलकश हैं ... रचना अच्छी लगी। बधाई।</p>
<p>भाव बहुत ही दिलकश हैं ... रचना अच्छी लगी। बधाई।</p> बहुत खूब
tag:openbooks.ning.com,2017-07-23:5170231:Comment:8684732017-07-23T07:37:17.326Zबसंत कुमार शर्माhttp://openbooks.ning.com/profile/37vrpfxgzfdi8
<p>बहुत खूब </p>
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<p>बहुत खूब </p>
<p></p> खूब सुन्दर रचना tag:openbooks.ning.com,2017-07-21:5170231:Comment:8681602017-07-21T07:38:51.630Znarendrasinh chauhanhttp://openbooks.ning.com/profile/narendrasinhchauhan
<p>खूब सुन्दर रचना </p>
<p>खूब सुन्दर रचना </p> 'ख़्वाहिशो मत टटोलो सीने में'…tag:openbooks.ning.com,2017-07-21:5170231:Comment:8678432017-07-21T05:12:30.107ZSamar kabeerhttp://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
'ख़्वाहिशो मत टटोलो सीने में'<br />
ये ऊला मिसरा तो सही हो गया,इसी तरह सानी मिसरा भी बदलने की कोशिश करें ।
'ख़्वाहिशो मत टटोलो सीने में'<br />
ये ऊला मिसरा तो सही हो गया,इसी तरह सानी मिसरा भी बदलने की कोशिश करें । शुक्रिया आदरणीय मोहम्मद आरिफ…tag:openbooks.ning.com,2017-07-21:5170231:Comment:8678382017-07-21T03:46:14.279ZGurpreet Singh jammuhttp://openbooks.ning.com/profile/GurpreetSingh624
<p>शुक्रिया आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी,,, जी सहमत हूँ उस्तादों से सीखने की कोशिश है और रहेगी </p>
<p>शुक्रिया आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी,,, जी सहमत हूँ उस्तादों से सीखने की कोशिश है और रहेगी </p> शुक्रिया आदरणीय गिरिराज जी tag:openbooks.ning.com,2017-07-21:5170231:Comment:8679482017-07-21T03:45:01.512ZGurpreet Singh jammuhttp://openbooks.ning.com/profile/GurpreetSingh624
<p>शुक्रिया आदरणीय गिरिराज जी </p>
<p>शुक्रिया आदरणीय गिरिराज जी </p> शुक्रिया आदरणीय लक्ष्मण धामी…tag:openbooks.ning.com,2017-07-21:5170231:Comment:8678372017-07-21T03:44:38.784ZGurpreet Singh jammuhttp://openbooks.ning.com/profile/GurpreetSingh624
<p>शुक्रिया आदरणीय लक्ष्मण धामी जी </p>
<p>शुक्रिया आदरणीय लक्ष्मण धामी जी </p> शुक्रगुज़ार हूँ आदरणीय समर कबी…tag:openbooks.ning.com,2017-07-21:5170231:Comment:8680462017-07-21T03:44:06.329ZGurpreet Singh jammuhttp://openbooks.ning.com/profile/GurpreetSingh624
<p>शुक्रगुज़ार हूँ आदरणीय समर कबीर जी,, इस मंच पर अपनी रचना लेकर आने का यही मकसद होता है की अपनी कमियों को जान सकें,, और उन में सुधर की कोशिश करें,,चौथे शेर में रदीफ़ काम करेगा,, इस के बारे में मुझे सन्देह तो था,, लेकिन कन्फर्म नहीं था, अब बात स्पष्ट हो गई,, <br/>सर जी अगर इस शेर के सानी मिसरे के दोष को एक पल के लिए नज़रअंदाज़ करते हुए केवल ऊला मिसरे की बात हो तो क्या ऐसा कुछ कहना उचित होगा,,<br/>"ख्वाहिशो मत टटोलो सीने में" या "ख्वाहिशो मत टटोलो सीने को"</p>
<p>शुक्रगुज़ार हूँ आदरणीय समर कबीर जी,, इस मंच पर अपनी रचना लेकर आने का यही मकसद होता है की अपनी कमियों को जान सकें,, और उन में सुधर की कोशिश करें,,चौथे शेर में रदीफ़ काम करेगा,, इस के बारे में मुझे सन्देह तो था,, लेकिन कन्फर्म नहीं था, अब बात स्पष्ट हो गई,, <br/>सर जी अगर इस शेर के सानी मिसरे के दोष को एक पल के लिए नज़रअंदाज़ करते हुए केवल ऊला मिसरे की बात हो तो क्या ऐसा कुछ कहना उचित होगा,,<br/>"ख्वाहिशो मत टटोलो सीने में" या "ख्वाहिशो मत टटोलो सीने को"</p>