Comments - गज़ल- कैसे कहूँ मै आप से मुझको गिला नहीं - Open Books Online2024-03-29T10:38:37Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A863257&xn_auth=noआपको भी ईद की मुबारकबाद ।tag:openbooks.ning.com,2017-06-27:5170231:Comment:8636432017-06-27T12:28:50.922ZSamar kabeerhttp://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
आपको भी ईद की मुबारकबाद ।
आपको भी ईद की मुबारकबाद । आ0 कबीर सर को नमन । आपके आये…tag:openbooks.ning.com,2017-06-27:5170231:Comment:8637292017-06-27T11:17:02.312ZNaveen Mani Tripathihttp://openbooks.ning.com/profile/NaveenManiTripathi
आ0 कबीर सर को नमन । आपके आये तो मुझे बहुत खुशी मिली । आपकी प्रतीक्षा कर रहा था । बिना गुरु जग सूना लग रहा था । ईद पर हार्दिक मुबारकवाद ।
आ0 कबीर सर को नमन । आपके आये तो मुझे बहुत खुशी मिली । आपकी प्रतीक्षा कर रहा था । बिना गुरु जग सूना लग रहा था । ईद पर हार्दिक मुबारकवाद । जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदा…tag:openbooks.ning.com,2017-06-27:5170231:Comment:8638182017-06-27T09:59:10.617ZSamar kabeerhttp://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास बहुत उम्दा हुआ है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।<br />
<br />
दूसरा शैर देखिये :-<br />
'भूखा किसान शाख़ से लटका हुआ मिला<br />
शायद था उसके पास कोई रास्ता नहीं'<br />
<br />
इस शैर में मफ़हूम साफ़ नहीं हो रहा है,और रदीफ़ से इंसाफ़ भी नहीं हुआ,इसे इस तरह किया जा सकता है :-<br />
"भूखे किसान करते हैं ये कह के ख़ुदकुशी<br />
इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं"<br />
तीसरे शैर में "ज़ात"स्त्रीलिंग है ।<br />
4थे शैर का सानी मिसरा यूँ कर स्करे हैं :-<br />
'तेरे दियार में क्या कोई रहनुमा नहीं'<br />
सही शब्द 'दियार' है ।<br />
7वें शैर…
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास बहुत उम्दा हुआ है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।<br />
<br />
दूसरा शैर देखिये :-<br />
'भूखा किसान शाख़ से लटका हुआ मिला<br />
शायद था उसके पास कोई रास्ता नहीं'<br />
<br />
इस शैर में मफ़हूम साफ़ नहीं हो रहा है,और रदीफ़ से इंसाफ़ भी नहीं हुआ,इसे इस तरह किया जा सकता है :-<br />
"भूखे किसान करते हैं ये कह के ख़ुदकुशी<br />
इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं"<br />
तीसरे शैर में "ज़ात"स्त्रीलिंग है ।<br />
4थे शैर का सानी मिसरा यूँ कर स्करे हैं :-<br />
'तेरे दियार में क्या कोई रहनुमा नहीं'<br />
सही शब्द 'दियार' है ।<br />
7वें शैर में मफ़हूम स्पष्ट नहीं हो रहा है ।<br />
8वें शैर में भी मफ़हूम साफ़ नहीं,ऊला मिसरा यूँ किया जा सकता है:-<br />
'उलझा दिया चमन को सियासत के नाम पर'<br />
आख़री शैर में भी मफ़हूम स्पष्ट नहीं,देखियेगा ।<br />
बाक़ी शुभ शुभ । बेहतरीन ग़ज़ल tag:openbooks.ning.com,2017-06-25:5170231:Comment:8632832017-06-25T16:08:35.778Zबसंत कुमार शर्माhttp://openbooks.ning.com/profile/37vrpfxgzfdi8
<p>बेहतरीन ग़ज़ल </p>
<p>बेहतरीन ग़ज़ल </p> आ0 अनिता मौर्या जी शुक्रिया ।tag:openbooks.ning.com,2017-06-25:5170231:Comment:8630952017-06-25T15:56:58.937ZNaveen Mani Tripathihttp://openbooks.ning.com/profile/NaveenManiTripathi
आ0 अनिता मौर्या जी शुक्रिया ।
आ0 अनिता मौर्या जी शुक्रिया । आ0 जयनित मेहता जी सादर आभार ।tag:openbooks.ning.com,2017-06-25:5170231:Comment:8632822017-06-25T15:56:23.703ZNaveen Mani Tripathihttp://openbooks.ning.com/profile/NaveenManiTripathi
आ0 जयनित मेहता जी सादर आभार ।
आ0 जयनित मेहता जी सादर आभार । wah.. tag:openbooks.ning.com,2017-06-25:5170231:Comment:8630832017-06-25T12:31:00.264ZAnita Mauryahttp://openbooks.ning.com/profile/AnitaMaurya
<p>wah.. </p>
<p>wah.. </p> मुझसे मेरा ज़मीर नहीं माँगिये…tag:openbooks.ning.com,2017-06-25:5170231:Comment:8630032017-06-25T10:01:22.244Zजयनित कुमार मेहताhttp://openbooks.ning.com/profile/JaynitKumarMehta
मुझसे मेरा ज़मीर नहीं माँगिये हुजूर ।<br />
इसकी ही वज़ह से मैं अभी तक मरा नहीं ।।<br />
<br />
हालात आजमा के गए मुझको बार बार ।<br />
रहमत खुदा की थी कि नज़र से गिरा नहीं ।।<br />
<br />
बेहद खूबसूरत हक़ीक़ी ग़ज़ल हेतु हार्दिक बधाई आपको।।
मुझसे मेरा ज़मीर नहीं माँगिये हुजूर ।<br />
इसकी ही वज़ह से मैं अभी तक मरा नहीं ।।<br />
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हालात आजमा के गए मुझको बार बार ।<br />
रहमत खुदा की थी कि नज़र से गिरा नहीं ।।<br />
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बेहद खूबसूरत हक़ीक़ी ग़ज़ल हेतु हार्दिक बधाई आपको।। आ0 आरिफ साहब शुक्रिया ।tag:openbooks.ning.com,2017-06-24:5170231:Comment:8629932017-06-24T18:15:32.130ZNaveen Mani Tripathihttp://openbooks.ning.com/profile/NaveenManiTripathi
आ0 आरिफ साहब शुक्रिया ।
आ0 आरिफ साहब शुक्रिया । आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी आ…tag:openbooks.ning.com,2017-06-24:5170231:Comment:8631612017-06-24T17:18:41.951ZMohammed Arifhttp://openbooks.ning.com/profile/MohammedArif
आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब, हर शे'र मारक क्षमता वाला । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।
आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब, हर शे'र मारक क्षमता वाला । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।