Comments - ग़ज़ल नूर की-रोज़ जो मुझ को नया चाहती है - Open Books Online2024-03-28T21:19:34Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A854158&xn_auth=noशुक्रिया आ. विजय जी tag:openbooks.ning.com,2018-04-25:5170231:Comment:9263262018-04-25T02:36:40.743ZNilesh Shevgaonkarhttp://openbooks.ning.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>शुक्रिया आ. विजय जी </p>
<p>शुक्रिया आ. विजय जी </p> गज़ल बहुत ही अच्छी लगी। मुबारक…tag:openbooks.ning.com,2017-06-24:5170231:Comment:8632342017-06-24T05:54:34.965Zvijay nikorehttp://openbooks.ning.com/profile/vijaynikore
<p>गज़ल बहुत ही अच्छी लगी। मुबारकबाद।</p>
<p>गज़ल बहुत ही अच्छी लगी। मुबारकबाद।</p> शुक्रिया आ. अनुराग जी आभार tag:openbooks.ning.com,2017-05-05:5170231:Comment:8547442017-05-05T15:55:35.294ZNilesh Shevgaonkarhttp://openbooks.ning.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>शुक्रिया आ. अनुराग जी <br/>आभार </p>
<p>शुक्रिया आ. अनुराग जी <br/>आभार </p> शुक्रिया आ. सुरेन्द्रनाथ सिंह…tag:openbooks.ning.com,2017-05-05:5170231:Comment:8543972017-05-05T03:03:02.872ZNilesh Shevgaonkarhttp://openbooks.ning.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>शुक्रिया आ. सुरेन्द्रनाथ सिंह साहब </p>
<p>शुक्रिया आ. सुरेन्द्रनाथ सिंह साहब </p> एक बार फिर शुक्रिया आ. समर सर tag:openbooks.ning.com,2017-05-05:5170231:Comment:8543962017-05-05T03:02:46.298ZNilesh Shevgaonkarhttp://openbooks.ning.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>एक बार फिर शुक्रिया आ. समर सर </p>
<p>एक बार फिर शुक्रिया आ. समर सर </p> शुक्रिया आ. महेंद्र कुमार जी tag:openbooks.ning.com,2017-05-05:5170231:Comment:8543952017-05-05T03:02:22.192ZNilesh Shevgaonkarhttp://openbooks.ning.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>शुक्रिया आ. महेंद्र कुमार जी </p>
<p>शुक्रिया आ. महेंद्र कुमार जी </p> आद0 भाई नीलेश जी सादर अभिवादन…tag:openbooks.ning.com,2017-05-04:5170231:Comment:8543052017-05-04T22:21:20.103Zनाथ सोनांचलीhttp://openbooks.ning.com/profile/SurendraNathSingh
आद0 भाई नीलेश जी सादर अभिवादन, बेहद उम्दा गजल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
आद0 भाई नीलेश जी सादर अभिवादन, बेहद उम्दा गजल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें। जनाब हफ़ीज़ मेरठी साहिब का शैर…tag:openbooks.ning.com,2017-05-04:5170231:Comment:8543752017-05-04T14:53:20.374ZSamar kabeerhttp://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
जनाब हफ़ीज़ मेरठी साहिब का शैर दिखिये:-<br />
<br />
'ये मश्विरा मुझे ख़ुशहाल लोग देते हैं<br />
ज़मीर बेच दे अपना ख़ुदी का सौदा कर'<br />
<br />
नाचीज़ का शैर :-<br />
'मश्विरा बाज़ मश्विरा देंगे<br />
तू फ़क़्त दिल की मान मुश्किल में'<br />
<br />
अब और क्या बाक़ी रहा कहने को,बृजेश जी ?
जनाब हफ़ीज़ मेरठी साहिब का शैर दिखिये:-<br />
<br />
'ये मश्विरा मुझे ख़ुशहाल लोग देते हैं<br />
ज़मीर बेच दे अपना ख़ुदी का सौदा कर'<br />
<br />
नाचीज़ का शैर :-<br />
'मश्विरा बाज़ मश्विरा देंगे<br />
तू फ़क़्त दिल की मान मुश्किल में'<br />
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अब और क्या बाक़ी रहा कहने को,बृजेश जी ? आ. निलेश जी, ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई…tag:openbooks.ning.com,2017-05-04:5170231:Comment:8544262017-05-04T14:08:10.505ZMahendra Kumarhttp://openbooks.ning.com/profile/Mahendra
<p>आ. निलेश जी, ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई है<span>। अना को आपने बहुत सही पकड़ा है<span>। सच है कि यह भला करने की अपेक्षा नुकसान ही कराती है<span>। इस उम्दा प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए<span>। सादर<span>। </span> </span> </span> </span><br/></span></p>
<p>आ. निलेश जी, ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई है<span>। अना को आपने बहुत सही पकड़ा है<span>। सच है कि यह भला करने की अपेक्षा नुकसान ही कराती है<span>। इस उम्दा प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए<span>। सादर<span>। </span> </span> </span> </span><br/></span></p> शुक्रिया अ. बृजेश जी ...अगर …tag:openbooks.ning.com,2017-05-04:5170231:Comment:8543672017-05-04T13:33:34.352ZNilesh Shevgaonkarhttp://openbooks.ning.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>शुक्रिया अ. बृजेश जी ...<br/>अगर हाफ़िज़ जालंधरी और फ़राज़ जैसे शाइरों ने मशवरा दिया जाने पर बाँधा है तो हमें ही आपत्ति क्यूँ हो ...<br/>सादर </p>
<p>शुक्रिया अ. बृजेश जी ...<br/>अगर हाफ़िज़ जालंधरी और फ़राज़ जैसे शाइरों ने मशवरा दिया जाने पर बाँधा है तो हमें ही आपत्ति क्यूँ हो ...<br/>सादर </p>