Comments - ग़ज़ल - Open Books Online2024-03-29T15:11:00Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A843564&xn_auth=noआदरणीय भंडारी साहब सादर नमन अ…tag:openbooks.ning.com,2017-03-23:5170231:Comment:8439552017-03-23T11:09:46.929ZNaveen Mani Tripathihttp://openbooks.ning.com/profile/NaveenManiTripathi
आदरणीय भंडारी साहब सादर नमन अत्यंत महत्वपूर्ण इस्लाह के लिए ह्रदय से आभारी हूँ ।
आदरणीय भंडारी साहब सादर नमन अत्यंत महत्वपूर्ण इस्लाह के लिए ह्रदय से आभारी हूँ । आदरनीय नवीन भाई , खूबसूरत गज़ल…tag:openbooks.ning.com,2017-03-23:5170231:Comment:8440302017-03-23T03:50:42.834Zगिरिराज भंडारीhttp://openbooks.ning.com/profile/girirajbhandari
<p>आदरनीय नवीन भाई , खूबसूरत गज़ल के लिये बधाइयाँ आपको । आ,रवि भाई की बातों का ख्याल कीजियेगा । -- कुछ सलाह है .. सही लगे तो स्वीकार करें ...<br/>इक जख़्म पुराना था फिर जख़्म नया दोगे ---- इक जख़्म पुराना <strong>है इक और नया दोगे</strong></p>
<p>इक आग बुझाने में इक आग लगा दोगे ।<strong>। - इक आग बुझाओगे इक आग लगा दोगे ।।<br/></strong></p>
<p>अश्कों की इमारत को लहजों में छुपा दोगे । -- अश्कों की <strong>इबारत को लहजों में छुपा दोगे ।</strong></p>
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<p>आदरनीय नवीन भाई , खूबसूरत गज़ल के लिये बधाइयाँ आपको । आ,रवि भाई की बातों का ख्याल कीजियेगा । -- कुछ सलाह है .. सही लगे तो स्वीकार करें ...<br/>इक जख़्म पुराना था फिर जख़्म नया दोगे ---- इक जख़्म पुराना <strong>है इक और नया दोगे</strong></p>
<p>इक आग बुझाने में इक आग लगा दोगे ।<strong>। - इक आग बुझाओगे इक आग लगा दोगे ।।<br/></strong></p>
<p>अश्कों की इमारत को लहजों में छुपा दोगे । -- अश्कों की <strong>इबारत को लहजों में छुपा दोगे ।</strong></p>
<p></p> जनांब मुहम्मद आरिफ साहब शुक्र…tag:openbooks.ning.com,2017-03-22:5170231:Comment:8438522017-03-22T06:59:09.060ZNaveen Mani Tripathihttp://openbooks.ning.com/profile/NaveenManiTripathi
जनांब मुहम्मद आरिफ साहब शुक्रिया ।
जनांब मुहम्मद आरिफ साहब शुक्रिया । आ0 मोहित मुक्त जी सादर आभार ।tag:openbooks.ning.com,2017-03-22:5170231:Comment:8440202017-03-22T06:58:28.771ZNaveen Mani Tripathihttp://openbooks.ning.com/profile/NaveenManiTripathi
आ0 मोहित मुक्त जी सादर आभार ।
आ0 मोहित मुक्त जी सादर आभार । आदरणीय रवि शुक्ल जी सादर आभार…tag:openbooks.ning.com,2017-03-22:5170231:Comment:8438502017-03-22T06:57:49.845ZNaveen Mani Tripathihttp://openbooks.ning.com/profile/NaveenManiTripathi
आदरणीय रवि शुक्ल जी सादर आभार ।
आदरणीय रवि शुक्ल जी सादर आभार । आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी …tag:openbooks.ning.com,2017-03-21:5170231:Comment:8438202017-03-21T06:31:42.254ZRavi Shuklahttp://openbooks.ning.com/profile/RaviShukla
<p>आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी बहुत ख़ूब ग़ज़ल कही है आपने । बधाई स्वीकार करें</p>
<p>चौथे श्ोर मे तकाबुले रदीफ हो गया है और छठे शेर में शायद मजमून की जगह मजबून टाईप हो गया है देख लीजियेगा ।सादर</p>
<p>आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी बहुत ख़ूब ग़ज़ल कही है आपने । बधाई स्वीकार करें</p>
<p>चौथे श्ोर मे तकाबुले रदीफ हो गया है और छठे शेर में शायद मजमून की जगह मजबून टाईप हो गया है देख लीजियेगा ।सादर</p> आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी आ…tag:openbooks.ning.com,2017-03-19:5170231:Comment:8436772017-03-19T17:08:30.724ZMohammed Arifhttp://openbooks.ning.com/profile/MohammedArif
आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब, बहुत ख़ूब ग़ज़ल कही है आपने । शेर दर शेर दाद के साथ मुबारक़बाद क़ुबूल कीजिए ।
आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब, बहुत ख़ूब ग़ज़ल कही है आपने । शेर दर शेर दाद के साथ मुबारक़बाद क़ुबूल कीजिए ।