Comments - ग़ज़ल -- ज़रा सा भी मेरे जैसा नहीं वो ( दिनेश कुमार ) - Open Books Online2024-03-28T09:55:08Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A835261&xn_auth=noइस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए हार्दिक…tag:openbooks.ning.com,2017-02-12:5170231:Comment:8365522017-02-12T04:08:56.155Zबृजेश कुमार 'ब्रज'http://openbooks.ning.com/profile/brijeshkumar
इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें आदरणीय
इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें आदरणीय जी नहीं ।tag:openbooks.ning.com,2017-02-10:5170231:Comment:8356802017-02-10T15:23:47.374ZSamar kabeerhttp://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
जी नहीं ।
जी नहीं । आ. मोहम्मद आरिफ़ साहब। हौसला अ…tag:openbooks.ning.com,2017-02-10:5170231:Comment:8354782017-02-10T13:11:08.087Zदिनेश कुमारhttp://openbooks.ning.com/profile/0bbsmwu5qzvln
आ. मोहम्मद आरिफ़ साहब। हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया।
आ. मोहम्मद आरिफ़ साहब। हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया। आदरणीय दिनेश जी आदाब, बहुत बढ़…tag:openbooks.ning.com,2017-02-10:5170231:Comment:8354012017-02-10T13:08:42.942ZMohammed Arifhttp://openbooks.ning.com/profile/MohammedArif
आदरणीय दिनेश जी आदाब, बहुत बढ़िया ग़ज़ल के लिए बधाई कुबूल करें । जनाब समर साहब ने अपनी सटीक इस्लाह से अवगत करवा दिया है ।
आदरणीय दिनेश जी आदाब, बहुत बढ़िया ग़ज़ल के लिए बधाई कुबूल करें । जनाब समर साहब ने अपनी सटीक इस्लाह से अवगत करवा दिया है । आदरणीय समर साहब। आपकी मुहब्बत…tag:openbooks.ning.com,2017-02-10:5170231:Comment:8353992017-02-10T13:04:43.429Zदिनेश कुमारhttp://openbooks.ning.com/profile/0bbsmwu5qzvln
आदरणीय समर साहब। आपकी मुहब्बतों को दिल से सलाम। तहे दिल से शुक्रिया।<br />
कभी मिलते नहीं दोनों किनारे.... बहुत उम्दा मिसरा सुझाया है सर वाह।<br />
क्या यह मिसरा भी ठीक रहेगा सर...<br />
<br />
हमारे दरमियाँ ये फ़ासला... उफ़् !!<br />
फ़लक का चाँद हूँ मैं औ'र ज़मीं वो<br />
<br />
सादर।
आदरणीय समर साहब। आपकी मुहब्बतों को दिल से सलाम। तहे दिल से शुक्रिया।<br />
कभी मिलते नहीं दोनों किनारे.... बहुत उम्दा मिसरा सुझाया है सर वाह।<br />
क्या यह मिसरा भी ठीक रहेगा सर...<br />
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हमारे दरमियाँ ये फ़ासला... उफ़् !!<br />
फ़लक का चाँद हूँ मैं औ'र ज़मीं वो<br />
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सादर। आ. आशुतोष जी। हौसला अफ़ज़ाई के…tag:openbooks.ning.com,2017-02-10:5170231:Comment:8353982017-02-10T13:00:34.145Zदिनेश कुमारhttp://openbooks.ning.com/profile/0bbsmwu5qzvln
आ. आशुतोष जी। हौसला अफ़ज़ाई के लिय हार्दिक आभार।<br />
शायद आप ठीक कह रहे हैं। पहले आसमाँ रख कर ही मिसरा कहा था। लेकिन कोई अन्य दोष आ गया था। फिर बदल दिया।
आ. आशुतोष जी। हौसला अफ़ज़ाई के लिय हार्दिक आभार।<br />
शायद आप ठीक कह रहे हैं। पहले आसमाँ रख कर ही मिसरा कहा था। लेकिन कोई अन्य दोष आ गया था। फिर बदल दिया। कभी मिलते नहीं दोनों किनारे'tag:openbooks.ning.com,2017-02-10:5170231:Comment:8353642017-02-10T10:11:40.678ZSamar kabeerhttp://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
कभी मिलते नहीं दोनों किनारे'
कभी मिलते नहीं दोनों किनारे' जनाब दिनेश कुमार'दानिश'साहिब…tag:openbooks.ning.com,2017-02-10:5170231:Comment:8353622017-02-10T10:10:33.321ZSamar kabeerhttp://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
जनाब दिनेश कुमार'दानिश'साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।<br />
<br />
'नदी के दो किनारे क़ब मिले हैं<br />
फलक का चाँद हूँ में और ज़मीं वो'<br />
<br />
इस शैर के ऊला मिसरे में 'नदी'इसलिये नहीं कह सकते कि सानी मिसरे में 'फलक','चाँद',और ज़मीं की बात है,ऊला मिसरा यूँ ख़ सकते हैं :-<br />
"कभी मिलते नहीं हैं दोनों किनारे<br />
फलक का चाँद हूँ मैं और ज़मीं वो"
जनाब दिनेश कुमार'दानिश'साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।<br />
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'नदी के दो किनारे क़ब मिले हैं<br />
फलक का चाँद हूँ में और ज़मीं वो'<br />
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इस शैर के ऊला मिसरे में 'नदी'इसलिये नहीं कह सकते कि सानी मिसरे में 'फलक','चाँद',और ज़मीं की बात है,ऊला मिसरा यूँ ख़ सकते हैं :-<br />
"कभी मिलते नहीं हैं दोनों किनारे<br />
फलक का चाँद हूँ मैं और ज़मीं वो" आदरणीय भाई दिनेश जी इस सुंदर…tag:openbooks.ning.com,2017-02-10:5170231:Comment:8355142017-02-10T04:12:20.583ZDr Ashutosh Mishrahttp://openbooks.ning.com/profile/DrAshutoshMishra
<p>आदरणीय भाई दिनेश जी इस सुंदर ग़ज़ल के लिए ढेर सारी बधायी सादर </p>
<p><span>नदी के दो किनारे कब मिले हैं</span><br></br><span>फ़लक का चाँद हूँ मैं औ'र ज़मीं वो.................इन पंक्तियों पर मैं यह सोच रहा हूँ कि नदी के दोनों किनारे एक जैसे होते है और दूर रहते है फलक और जमी की तुलना भी की जा सकती है चाँद और जमी को दो किनारों जैसा...प्रश्न मेरे मन में था इसलिए आप से साझा कर रहा हूँ ..अन्यथा मत लीजियेगा ..</span></p>
<p><span><span>मैं जिसकी आँख का तारा रहा हूँ</span><br></br><span>कहाँ गुम हो गई है…</span></span></p>
<p>आदरणीय भाई दिनेश जी इस सुंदर ग़ज़ल के लिए ढेर सारी बधायी सादर </p>
<p><span>नदी के दो किनारे कब मिले हैं</span><br/><span>फ़लक का चाँद हूँ मैं औ'र ज़मीं वो.................इन पंक्तियों पर मैं यह सोच रहा हूँ कि नदी के दोनों किनारे एक जैसे होते है और दूर रहते है फलक और जमी की तुलना भी की जा सकती है चाँद और जमी को दो किनारों जैसा...प्रश्न मेरे मन में था इसलिए आप से साझा कर रहा हूँ ..अन्यथा मत लीजियेगा ..</span></p>
<p><span><span>मैं जिसकी आँख का तारा रहा हूँ</span><br/><span>कहाँ गुम हो गई है दूर-बीं वो..............इस शेर के लिए बिशेस रूप से बधाई स्वीकार करें सादर </span></span></p> ज़र्रानवाज़ी का बहुत बहुत शुक्र…tag:openbooks.ning.com,2017-02-10:5170231:Comment:8354142017-02-10T03:54:52.885Zदिनेश कुमारhttp://openbooks.ning.com/profile/0bbsmwu5qzvln
ज़र्रानवाज़ी का बहुत बहुत शुक्रिया आ. गुरप्रीत सिंह जी।<br />
मकीं = मकान में रहने वाला।
ज़र्रानवाज़ी का बहुत बहुत शुक्रिया आ. गुरप्रीत सिंह जी।<br />
मकीं = मकान में रहने वाला।