Comments - लेकिन आगे कैसे बढ़ लें? - (गीत) - मिथिलेश वामनकर - Open Books Online2024-03-29T08:19:09Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A823419&xn_auth=noआदरणीया राजेश दीदी, आपकी सराह…tag:openbooks.ning.com,2017-01-18:5170231:Comment:8293022017-01-18T09:11:35.511Zमिथिलेश वामनकरhttp://openbooks.ning.com/profile/mw
<p>आदरणीया राजेश दीदी, आपकी सराहना और उत्साहवर्धक पाकर दिल खुश हो जाता है. प्रयास सार्थक लगने लगता है. आपका हार्दिक आभार. नमन </p>
<p>आदरणीया राजेश दीदी, आपकी सराहना और उत्साहवर्धक पाकर दिल खुश हो जाता है. प्रयास सार्थक लगने लगता है. आपका हार्दिक आभार. नमन </p> मातृभूमि के प्रति श्रद्धा हो,…tag:openbooks.ning.com,2017-01-17:5170231:Comment:8294222017-01-17T17:13:30.707Zrajesh kumarihttp://openbooks.ning.com/profile/rajeshkumari
<p>मातृभूमि के प्रति श्रद्धा हो, यह परिभाषा है अतीत की।</p>
<p>महिमामंडन, मौन समर्थन परिभाषा है नई रीत की।</p>
<p>अनुचित, दूषित जैसे भी हों निर्णय, बस सम्मान करें सब।</p>
<p>हम भारत के धीर-पुरुष हैं, कष्ट सहें, यशगान करें सब।</p>
<p>चित्र वीभत्स मिले जो कोई,</p>
<p>स्वर्ण फ्रेम उस पर भी मढ़ लें।</p>
<p> ----वाह्ह्ह्ह क्या जबरदस्त कटाक्ष किया है आज के हालात पर भारत का इंसान तो धीरज करना ही सीखा है दिन को रात कहलायेंगे तो रात ही कहने लगेगा मात्रभूमि की श्रद्धा तो बाद में आती है पहले अपनी…</p>
<p>मातृभूमि के प्रति श्रद्धा हो, यह परिभाषा है अतीत की।</p>
<p>महिमामंडन, मौन समर्थन परिभाषा है नई रीत की।</p>
<p>अनुचित, दूषित जैसे भी हों निर्णय, बस सम्मान करें सब।</p>
<p>हम भारत के धीर-पुरुष हैं, कष्ट सहें, यशगान करें सब।</p>
<p>चित्र वीभत्स मिले जो कोई,</p>
<p>स्वर्ण फ्रेम उस पर भी मढ़ लें।</p>
<p> ----वाह्ह्ह्ह क्या जबरदस्त कटाक्ष किया है आज के हालात पर भारत का इंसान तो धीरज करना ही सीखा है दिन को रात कहलायेंगे तो रात ही कहने लगेगा मात्रभूमि की श्रद्धा तो बाद में आती है पहले अपनी तिजौरियों की श्रद्धा आती है | बहुत सुंदर गीत लिखा है मिथिलेश भैया बहुत बहुत बधाई </p> आदरणीय डॉ. विजय शंकर सर, आपने…tag:openbooks.ning.com,2017-01-07:5170231:Comment:8266272017-01-07T17:19:05.122Zमिथिलेश वामनकरhttp://openbooks.ning.com/profile/mw
<p>आदरणीय डॉ. विजय शंकर सर, आपने प्रस्तुति के मूल को बहुत सूक्ष्मता से पकड़ा है. आपने बिलकुल सही कहा कि जो समस्या का समाधान करने का दायित्व निभाने आते हैं फिर स्वयं ही समस्याएं दे जाते हैं और अंततः दोष जनता का और सजा भी. आपको प्रस्तुति पसंद आई, जानकार आश्वस्त हूँ. <span>इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद. सादर</span></p>
<p>आदरणीय डॉ. विजय शंकर सर, आपने प्रस्तुति के मूल को बहुत सूक्ष्मता से पकड़ा है. आपने बिलकुल सही कहा कि जो समस्या का समाधान करने का दायित्व निभाने आते हैं फिर स्वयं ही समस्याएं दे जाते हैं और अंततः दोष जनता का और सजा भी. आपको प्रस्तुति पसंद आई, जानकार आश्वस्त हूँ. <span>इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद. सादर</span></p> प्रिय मिथिलेश वामनकर जी, कुछ…tag:openbooks.ning.com,2017-01-07:5170231:Comment:8264812017-01-07T16:18:53.735ZDr. Vijai Shankerhttp://openbooks.ning.com/profile/DrVijaiShanker
प्रिय मिथिलेश वामनकर जी, कुछ जटिल प्रश्नों को उठाया है आपने , ऐसे प्रश्न जो स्वयं अनेक प्रश्न उठाये खड़े हैं , समस्याएं हैं , वैसे इतिहास में जाएँ तो इस भूखंड पर बसने वालों का जीवन कब समस्यायों से भरा नहीं था ? जो समस्या-समाधान का दायित्व उठाये घूमते हैं , और समस्याएं दे जाते हैं और जनता को घुमाते पाए जाते हैं। हर समस्या के लिए जनता को दोषी बताते और जनता से समाधान निकालने की , त्याग करने और कष्ट सहने की मांग करते हैं , बात चाहे सफाई की हो या आतंकवाद से निपटने या उसे सहने की। रास्ते वे उलझाते हैं…
प्रिय मिथिलेश वामनकर जी, कुछ जटिल प्रश्नों को उठाया है आपने , ऐसे प्रश्न जो स्वयं अनेक प्रश्न उठाये खड़े हैं , समस्याएं हैं , वैसे इतिहास में जाएँ तो इस भूखंड पर बसने वालों का जीवन कब समस्यायों से भरा नहीं था ? जो समस्या-समाधान का दायित्व उठाये घूमते हैं , और समस्याएं दे जाते हैं और जनता को घुमाते पाए जाते हैं। हर समस्या के लिए जनता को दोषी बताते और जनता से समाधान निकालने की , त्याग करने और कष्ट सहने की मांग करते हैं , बात चाहे सफाई की हो या आतंकवाद से निपटने या उसे सहने की। रास्ते वे उलझाते हैं , सुगम मार्ग हमसे तलाशने को कहते हैं। नेतृत्व ही परिभाषित नहीं है परिणामतः जनता भ्रमित रहती है , और नित वही दुःख सहती है , शिक्षा के अभाव में हम राजनीति से समाधान की उम्मीद करते हैं , इससे अधिक दुखद , त्रासद और भ्रामक स्थिति और क्या होगी।<br />
आपने चित्रांकन अच्छा किया है , बधाई , सादर। आदरणीय बृजेश जी, इस प्रयास की…tag:openbooks.ning.com,2017-01-04:5170231:Comment:8262112017-01-04T16:46:39.392Zमिथिलेश वामनकरhttp://openbooks.ning.com/profile/mw
<p>आदरणीय बृजेश जी, <span>इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।</span></p>
<p>आदरणीय बृजेश जी, <span>इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।</span></p> वाह क्या खूब लिखा... बेहतरीनtag:openbooks.ning.com,2017-01-04:5170231:Comment:8262072017-01-04T16:31:12.579Zबृजेश कुमार 'ब्रज'http://openbooks.ning.com/profile/brijeshkumar
वाह क्या खूब लिखा... बेहतरीन
वाह क्या खूब लिखा... बेहतरीन आदरणीय विजय निकोर सर, आपको यह…tag:openbooks.ning.com,2017-01-03:5170231:Comment:8260132017-01-03T08:32:38.324Zमिथिलेश वामनकरhttp://openbooks.ning.com/profile/mw
<p>आदरणीय विजय निकोर सर, आपको यह प्रयास पसंद आया जानकार मुग्ध हूँ. <span> इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।</span></p>
<p>आदरणीय विजय निकोर सर, आपको यह प्रयास पसंद आया जानकार मुग्ध हूँ. <span> इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।</span></p> आदरणीय गिरिराज सर, इस प्रयास…tag:openbooks.ning.com,2017-01-03:5170231:Comment:8258252017-01-03T08:31:51.817Zमिथिलेश वामनकरhttp://openbooks.ning.com/profile/mw
<p>आदरणीय गिरिराज सर, <span> इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।</span></p>
<p>आदरणीय गिरिराज सर, <span> इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।</span></p> // मातृभूमि के प्रति श्रद्धा…tag:openbooks.ning.com,2017-01-03:5170231:Comment:8255882017-01-03T05:56:03.549Zvijay nikorehttp://openbooks.ning.com/profile/vijaynikore
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<p>// मातृभूमि के प्रति श्रद्धा हो, यह परिभाषा है अतीत की।</p>
<p>महिमामंडन, मौन समर्थन परिभाषा है नई रीत की।</p>
<p>अनुचित, दूषित जैसे भी हों निर्णय, बस सम्मान करें सब।</p>
<p>हम भारत के धीर-पुरुष हैं, कष्ट सहें, यशगान करें सब।//</p>
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<p>क्या शब्द चुने हैं, कितने सुंदर भाव ! आपके गीत ने मन मोह लिया, आदरणीय मिथिलेश भाई।</p>
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<p>// मातृभूमि के प्रति श्रद्धा हो, यह परिभाषा है अतीत की।</p>
<p>महिमामंडन, मौन समर्थन परिभाषा है नई रीत की।</p>
<p>अनुचित, दूषित जैसे भी हों निर्णय, बस सम्मान करें सब।</p>
<p>हम भारत के धीर-पुरुष हैं, कष्ट सहें, यशगान करें सब।//</p>
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<p>क्या शब्द चुने हैं, कितने सुंदर भाव ! आपके गीत ने मन मोह लिया, आदरणीय मिथिलेश भाई।</p> चित्र वीभत्स मिले जो कोई,
स्व…tag:openbooks.ning.com,2017-01-03:5170231:Comment:8254812017-01-03T04:43:28.892Zगिरिराज भंडारीhttp://openbooks.ning.com/profile/girirajbhandari
<p>चित्र वीभत्स मिले जो कोई,</p>
<p>स्वर्ण फ्रेम उस पर भी मढ़ लें। -- क्या बात है , आदरनीय मिथिलेश भाई , बहुत सुंदर गीत रचा है आपने , हार्दिक बधाइयाँ ।</p>
<p>चित्र वीभत्स मिले जो कोई,</p>
<p>स्वर्ण फ्रेम उस पर भी मढ़ लें। -- क्या बात है , आदरनीय मिथिलेश भाई , बहुत सुंदर गीत रचा है आपने , हार्दिक बधाइयाँ ।</p>