Comments - कौन बुरा लगता है - Open Books Online2024-03-29T08:00:37Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A804575&xn_auth=noआदरणीया दीपू जी बहुत ही सुन्द…tag:openbooks.ning.com,2016-10-04:5170231:Comment:8055762016-10-04T07:02:27.400Zसुरेश कुमार 'कल्याण'http://openbooks.ning.com/profile/SureshKumarKalyan
आदरणीया दीपू जी बहुत ही सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें । आशियाँ के टंकण को ठीक करें । सादर ।
आदरणीया दीपू जी बहुत ही सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें । आशियाँ के टंकण को ठीक करें । सादर । आ० शिज्जू भाई की सम्मति काबिल…tag:openbooks.ning.com,2016-10-02:5170231:Comment:8054292016-10-02T06:11:27.064Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttp://openbooks.ning.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>आ० शिज्जू भाई की सम्मति काबिले गौर है . सादर</p>
<p>आ० शिज्जू भाई की सम्मति काबिले गौर है . सादर</p> मोहतरमा दीपू जी आदाब,बढ़िया कव…tag:openbooks.ning.com,2016-10-01:5170231:Comment:8053262016-10-01T09:10:24.243ZSamar kabeerhttp://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
मोहतरमा दीपू जी आदाब,बढ़िया कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
मोहतरमा दीपू जी आदाब,बढ़िया कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें । ///कौन यहाँ बिखरा गयाफूल और प…tag:openbooks.ning.com,2016-10-01:5170231:Comment:8053152016-10-01T07:53:07.420Zशिज्जु "शकूर"http://openbooks.ning.com/profile/ShijjuS
<p><span>///कौन यहाँ बिखरा गया</span><br></br><span>फूल और <em><strong>पत्तियों</strong></em> को,</span><br></br><span>पेड़ हर तरफ यहाँ ,</span><br></br><span><em><strong>टूटे हुए लगते हैं</strong></em>/// </span></p>
<p><span><span>///सब कुछ तो है घर की</span><br></br><span>दीवारों में सजा हुआ</span><br></br><span><strong><em>आशियाँ</em></strong> मेरा फिर भी</span><br></br><span>बिखरा हुआ लगता है/// आ. दीपू जी अच्छी रचना हुई है, टंकण त्रुटि पाठकों का ध्यान भटका देती है, यहाँ रचनाकार की सजगता अपेक्षित…</span></span></p>
<p><span>///कौन यहाँ बिखरा गया</span><br/><span>फूल और <em><strong>पत्तियों</strong></em> को,</span><br/><span>पेड़ हर तरफ यहाँ ,</span><br/><span><em><strong>टूटे हुए लगते हैं</strong></em>/// </span></p>
<p><span><span>///सब कुछ तो है घर की</span><br/><span>दीवारों में सजा हुआ</span><br/><span><strong><em>आशियाँ</em></strong> मेरा फिर भी</span><br/><span>बिखरा हुआ लगता है/// आ. दीपू जी अच्छी रचना हुई है, टंकण त्रुटि पाठकों का ध्यान भटका देती है, यहाँ रचनाकार की सजगता अपेक्षित है</span></span></p>