Comments - तू यार बसा मन में ///गजल - Open Books Online2024-03-28T15:12:16Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A796464&xn_auth=noआ० निगम जी , आवेश भरी विद्युत…tag:openbooks.ning.com,2016-09-03:5170231:Comment:7974702016-09-03T06:47:37.205Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttp://openbooks.ning.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>आ० निगम जी , आवेश भरी विद्युत ही सही है सादर</p>
<p>आ० निगम जी , आवेश भरी विद्युत ही सही है सादर</p> आदरणीय गोपाल नारायन जी, अति उ…tag:openbooks.ning.com,2016-09-02:5170231:Comment:7974572016-09-02T17:29:48.378Zअरुण कुमार निगमhttp://openbooks.ning.com/profile/arunkumarnigam
<p>आदरणीय गोपाल नारायन जी, अति उत्तम गजल ने मुग्ध कर दिया. बधाइयाँ </p>
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<p><span>आवेश <span style="text-decoration: underline;"><strong>भरा</strong></span> विद्युत इस पंक्ति में मुझे शंका है कि <strong><span style="text-decoration: underline;">भरी</span> </strong>होना चाहिए, कृपया समाधान करने का कष्ट करेंगे </span></p>
<p>आदरणीय गोपाल नारायन जी, अति उत्तम गजल ने मुग्ध कर दिया. बधाइयाँ </p>
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<p><span>आवेश <span style="text-decoration: underline;"><strong>भरा</strong></span> विद्युत इस पंक्ति में मुझे शंका है कि <strong><span style="text-decoration: underline;">भरी</span> </strong>होना चाहिए, कृपया समाधान करने का कष्ट करेंगे </span></p> आ. बड़े भाई गोपाल जी , सलाह का…tag:openbooks.ning.com,2016-09-02:5170231:Comment:7973582016-09-02T04:13:54.312Zगिरिराज भंडारीhttp://openbooks.ning.com/profile/girirajbhandari
<p>आ. बड़े भाई गोपाल जी , सलाह का मान रखने के लिये आपका आभार ।</p>
<p>आ. बड़े भाई गोपाल जी , सलाह का मान रखने के लिये आपका आभार ।</p> आ० अनुज , बहुत सही मार्ग दिखा…tag:openbooks.ning.com,2016-09-02:5170231:Comment:7974352016-09-02T03:22:44.098Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttp://openbooks.ning.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>आ० अनुज , बहुत सही मार्ग दिखाया आपने . मैं इसका संशोधन अवश्य करूंगा . सादर .</p>
<p>आ० अनुज , बहुत सही मार्ग दिखाया आपने . मैं इसका संशोधन अवश्य करूंगा . सादर .</p> आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , बहु…tag:openbooks.ning.com,2016-09-01:5170231:Comment:7976122016-09-01T16:52:08.332Zगिरिराज भंडारीhttp://openbooks.ning.com/profile/girirajbhandari
<p>आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , बहुत अच्छी गज़ल हुई है , दिल से बधाइयाँ स्वीकार करें ।</p>
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<p>सौदामिनि को आपनी = 22 11 लिया है मेरे खयाल से ये ग़लत है , 222 लिया जाना सही रहेगा । सोच के देखियेगा ।</p>
<p>आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , बहुत अच्छी गज़ल हुई है , दिल से बधाइयाँ स्वीकार करें ।</p>
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<p>सौदामिनि को आपनी = 22 11 लिया है मेरे खयाल से ये ग़लत है , 222 लिया जाना सही रहेगा । सोच के देखियेगा ।</p> वाह वाह और सिर्फ वाह हर शेर अ…tag:openbooks.ning.com,2016-09-01:5170231:Comment:7971902016-09-01T13:03:05.824Zरामबली गुप्ताhttp://openbooks.ning.com/profile/RAMBALIGUPTA
वाह वाह और सिर्फ वाह हर शेर अपने में उम्दा भावों को लिए हुए है। आकाश भर बधाई लीजिये।सादर
वाह वाह और सिर्फ वाह हर शेर अपने में उम्दा भावों को लिए हुए है। आकाश भर बधाई लीजिये।सादर इस भावपूर्ण गज़ल के लिए हार्दि…tag:openbooks.ning.com,2016-09-01:5170231:Comment:7971862016-09-01T11:43:08.718ZKALPANA BHATT ('रौनक़')http://openbooks.ning.com/profile/KALPANABHATT832
इस भावपूर्ण गज़ल के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय ।
इस भावपूर्ण गज़ल के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय । जनाब डॉ,.गोपाल नारायण श्रीवास…tag:openbooks.ning.com,2016-08-31:5170231:Comment:7966712016-08-31T12:23:27.679ZSamar kabeerhttp://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
जनाब डॉ,.गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी आदाब,बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
जनाब डॉ,.गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी आदाब,बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं । रस सोम पिला तूने सब लूट लिया…tag:openbooks.ning.com,2016-08-31:5170231:Comment:7968182016-08-31T08:32:15.891ZSushil Sarnahttp://openbooks.ning.com/profile/SushilSarna
<p>रस सोम पिला तूने सब लूट लिया मेरा<br/>‘शृंगार’ कहाँ अब है ‘निर्वेद’ धँसा मन में</p>
<p>वाह आदरणीय डॉ. गोपाल जी भाई साहिब ... मन मोहते भावों की अप्रतिम प्रस्तुति। इस अद्भुत शाब्दिक सौंदर्य को निखरती ग़ज़ल के लिए दिल से बधाई स्वीकार करें।</p>
<p>रस सोम पिला तूने सब लूट लिया मेरा<br/>‘शृंगार’ कहाँ अब है ‘निर्वेद’ धँसा मन में</p>
<p>वाह आदरणीय डॉ. गोपाल जी भाई साहिब ... मन मोहते भावों की अप्रतिम प्रस्तुति। इस अद्भुत शाब्दिक सौंदर्य को निखरती ग़ज़ल के लिए दिल से बधाई स्वीकार करें।</p> वाह वाह आदरणीय डॉ गोपाल नाराय…tag:openbooks.ning.com,2016-08-31:5170231:Comment:7967092016-08-31T06:22:38.092Zशिज्जु "शकूर"http://openbooks.ning.com/profile/ShijjuS
<p>वाह वाह आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव सर बहुत खूब, बेमिसाल ग़ज़ल कही है आपने बहुत बहुत बधाई आपको</p>
<p>वाह वाह आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव सर बहुत खूब, बेमिसाल ग़ज़ल कही है आपने बहुत बहुत बधाई आपको</p>