Comments - तम से लड़ी है जिंदगी - Open Books Online2024-03-28T20:24:18Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A782974&xn_auth=noआदरणीय अजय कुमार शर्मा साहब आ…tag:openbooks.ning.com,2016-07-12:5170231:Comment:7836412016-07-12T14:23:53.399ZAshok Kumar Raktalehttp://openbooks.ning.com/profile/AshokKumarRaktale
<p>आदरणीय अजय कुमार शर्मा साहब आपको गजल पसंद आयी जानकर मुझे प्रसन्नता हुई. सादर आभार.</p>
<p>आदरणीय अजय कुमार शर्मा साहब आपको गजल पसंद आयी जानकर मुझे प्रसन्नता हुई. सादर आभार.</p> आदरनीय गिरिराज भंडारी साहब सा…tag:openbooks.ning.com,2016-07-12:5170231:Comment:7834742016-07-12T14:22:48.330ZAshok Kumar Raktalehttp://openbooks.ning.com/profile/AshokKumarRaktale
<p>आदरनीय गिरिराज भंडारी साहब सादर, आपको गजल के अशआर अच्छे लगे मेरा रचना श्रम सार्थक हुआ. हार्दिक आभार. सादर.</p>
<p>आदरनीय गिरिराज भंडारी साहब सादर, आपको गजल के अशआर अच्छे लगे मेरा रचना श्रम सार्थक हुआ. हार्दिक आभार. सादर.</p> आदरणीय श्री सुनील जी सादर, प्…tag:openbooks.ning.com,2016-07-12:5170231:Comment:7834732016-07-12T14:21:41.472ZAshok Kumar Raktalehttp://openbooks.ning.com/profile/AshokKumarRaktale
<p>आदरणीय श्री सुनील जी सादर, प्रस्तुत गजल पर उत्साहवर्धन के लिए आत्मीय आभार. सादर.</p>
<p>आदरणीय श्री सुनील जी सादर, प्रस्तुत गजल पर उत्साहवर्धन के लिए आत्मीय आभार. सादर.</p> Raktale Saab vakai behtareen…tag:openbooks.ning.com,2016-07-12:5170231:Comment:7836212016-07-12T06:05:56.595ZAjay Kumar Sharmahttp://openbooks.ning.com/profile/AjayKumarSharma805
Raktale Saab vakai behtareen ghajal . badhai ho
Raktale Saab vakai behtareen ghajal . badhai ho आदरनीय अशुक भाई , ज़िन्दगी की…tag:openbooks.ning.com,2016-07-12:5170231:Comment:7834492016-07-12T04:25:43.506Zगिरिराज भंडारीhttp://openbooks.ning.com/profile/girirajbhandari
<p>आदरनीय अशुक भाई , ज़िन्दगी की सच्छाइयाँ बयान करती आपकी गज़ल बहुत अच्छी लगी , दिल से बधाइयाँ आपको हरेक शे र के लिये ।</p>
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<p>आदरनीय अशुक भाई , ज़िन्दगी की सच्छाइयाँ बयान करती आपकी गज़ल बहुत अच्छी लगी , दिल से बधाइयाँ आपको हरेक शे र के लिये ।</p>
<p></p> आसमां के पार भी इक आसमां तैया…tag:openbooks.ning.com,2016-07-11:5170231:Comment:7834352016-07-11T15:57:13.813Zshree suneelhttp://openbooks.ning.com/profile/shreesuneel
आसमां के पार भी इक आसमां तैयार है<br />
ख्वाब बुन लो तो चलो कहती रही है जिंदगी... बहुत बढि़या..<br />
अच्छे-अच्छे शे'र कहे हैं आदरणीय अशोक सर जी. हार्दिक बधाई आपको. सादर.
आसमां के पार भी इक आसमां तैयार है<br />
ख्वाब बुन लो तो चलो कहती रही है जिंदगी... बहुत बढि़या..<br />
अच्छे-अच्छे शे'र कहे हैं आदरणीय अशोक सर जी. हार्दिक बधाई आपको. सादर. आदरणीय रामबली गुप्ता साहब साद…tag:openbooks.ning.com,2016-07-11:5170231:Comment:7833612016-07-11T08:04:09.857ZAshok Kumar Raktalehttp://openbooks.ning.com/profile/AshokKumarRaktale
<p>आदरणीय रामबली गुप्ता साहब सादर, प्रस्तुत गजल पर उतासाह्वर्धन के लिए आपका दिल से आभार. सादर.</p>
<p>आदरणीय रामबली गुप्ता साहब सादर, प्रस्तुत गजल पर उतासाह्वर्धन के लिए आपका दिल से आभार. सादर.</p> आदरणीय महेंद्र कुमार साहब. ब…tag:openbooks.ning.com,2016-07-11:5170231:Comment:7831012016-07-11T08:02:58.888ZAshok Kumar Raktalehttp://openbooks.ning.com/profile/AshokKumarRaktale
<p> आदरणीय महेंद्र कुमार साहब. बिलकुल स्पष्ट हुआ. हार्दिक आभार आपका इस बारीकी से परिचित करवाने के लिए. सादर.</p>
<p> आदरणीय महेंद्र कुमार साहब. बिलकुल स्पष्ट हुआ. हार्दिक आभार आपका इस बारीकी से परिचित करवाने के लिए. सादर.</p> आदरणीय अशोक सर, सुझाव का मान…tag:openbooks.ning.com,2016-07-11:5170231:Comment:7833552016-07-11T04:32:32.733ZMahendra Kumarhttp://openbooks.ning.com/profile/Mahendra
आदरणीय अशोक सर, सुझाव का मान रखने के लिए हार्दिक आभार!<br />
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//लोग जीने के लिए हर रोज मरते जा रहे, ये सही है तो कहो क्या अब यही है जिंदगी// इस शेर के सानी में 'अब' के प्रयोग से यह निकल कर आ रहा है कि उला में जिस बात का ज़िक्र किया जा रहा है वह पहले नहीं होती रही होगी लेकिन अब हो रही है। जब हम उला को देखते हैं तो उसमें मनुष्यों को जीने के लिए मरने की बात सामने आ रही है अर्थात् सर्वाइवल की। अब सानी के अनुसार (अब के प्रयोग के कारण) यह चीज पहले नहीं होनी चाहिए किन्तु मानव के इतिहास को देखें तो हमें शुरू…
आदरणीय अशोक सर, सुझाव का मान रखने के लिए हार्दिक आभार!<br />
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//लोग जीने के लिए हर रोज मरते जा रहे, ये सही है तो कहो क्या अब यही है जिंदगी// इस शेर के सानी में 'अब' के प्रयोग से यह निकल कर आ रहा है कि उला में जिस बात का ज़िक्र किया जा रहा है वह पहले नहीं होती रही होगी लेकिन अब हो रही है। जब हम उला को देखते हैं तो उसमें मनुष्यों को जीने के लिए मरने की बात सामने आ रही है अर्थात् सर्वाइवल की। अब सानी के अनुसार (अब के प्रयोग के कारण) यह चीज पहले नहीं होनी चाहिए किन्तु मानव के इतिहास को देखें तो हमें शुरू से ही जीने की जद्दोजहद दिखाई देती है। इसलिए अब का प्रयोग मेरे हिसाब से उचित नहीं है। दूसरी बात, यदि किसी तरह इसका सम्बन्ध इसके पहले वाले शेर से होता अर्थात् मतले में कोई व्यक्ति यह कह रहा होता कि ज़िन्दगी खुशनुमा और हसीन है तो अगले शेर में उसकी बात का जवाब देते हुए 'अब' का प्रयोग किया जा सकता था किन्तु मुझे नहीं लगता कि मतले में ऐसी कोई बात कही जा रही है। इसलिए मैंने आपको उस मिसरे में संशोधन का सुझाव दिया था। सादर! आद0 अशोक जी
आपकी गज़ल अपने आप…tag:openbooks.ning.com,2016-07-11:5170231:Comment:7834072016-07-11T02:48:25.155Zरामबली गुप्ताhttp://openbooks.ning.com/profile/RAMBALIGUPTA
आद0 अशोक जी<br />
आपकी गज़ल अपने आप में एक बेहतरीन और हृदयस्पर्शी प्रस्तुति है। सारे कथ्य उत्तम और संदेशप्रद विचारों को समाहित किये हुए हैं। हृदय से बधाई स्वीकार करें।
आद0 अशोक जी<br />
आपकी गज़ल अपने आप में एक बेहतरीन और हृदयस्पर्शी प्रस्तुति है। सारे कथ्य उत्तम और संदेशप्रद विचारों को समाहित किये हुए हैं। हृदय से बधाई स्वीकार करें।