Comments - हाल-ए-दिल पूछने चले आये (ग़ज़ल) - Open Books Online2024-03-28T18:17:15Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A779921&xn_auth=noआदरणीय शिज्जु जी, आपको ग़ज़ल अच…tag:openbooks.ning.com,2016-07-04:5170231:Comment:7818852016-07-04T13:35:00.272Zजयनित कुमार मेहताhttp://openbooks.ning.com/profile/JaynitKumarMehta
आदरणीय शिज्जु जी, आपको ग़ज़ल अच्छी लगी,ये जानकर बहुत ख़ुशी हुई।<br />
हार्दिक धन्यवाद आपको।
आदरणीय शिज्जु जी, आपको ग़ज़ल अच्छी लगी,ये जानकर बहुत ख़ुशी हुई।<br />
हार्दिक धन्यवाद आपको। हाँ, आदरणीय सौरभ जी, कभी-कभी…tag:openbooks.ning.com,2016-07-04:5170231:Comment:7818842016-07-04T13:30:29.626Zजयनित कुमार मेहताhttp://openbooks.ning.com/profile/JaynitKumarMehta
हाँ, आदरणीय सौरभ जी, कभी-कभी ऐसी भूल कर बैठता हूँ।<br />
मैं कोशिश करता हूँ कि इस तरह अर्थ का अनर्थ न हो कभी, मगर मुझे बाद में पता चलता है कि क्या लिख गया।<br />
आप भाव समझ गए, यह बहुत है मेरे लिए।<br />
<br />
इस बार क्षमा करें, अब से और सतर्कता बरतूँगा शब्दों के चयन में। सादर!
हाँ, आदरणीय सौरभ जी, कभी-कभी ऐसी भूल कर बैठता हूँ।<br />
मैं कोशिश करता हूँ कि इस तरह अर्थ का अनर्थ न हो कभी, मगर मुझे बाद में पता चलता है कि क्या लिख गया।<br />
आप भाव समझ गए, यह बहुत है मेरे लिए।<br />
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इस बार क्षमा करें, अब से और सतर्कता बरतूँगा शब्दों के चयन में। सादर! भाई जयनित जी कमाल कर दिया आपन…tag:openbooks.ning.com,2016-07-03:5170231:Comment:7817222016-07-03T00:43:25.543Zशिज्जु "शकूर"http://openbooks.ning.com/profile/ShijjuS
भाई जयनित जी कमाल कर दिया आपने वाह। बहुत बहुत बधाई मतला ही इस ग़ज़ल की जान है
भाई जयनित जी कमाल कर दिया आपने वाह। बहुत बहुत बधाई मतला ही इस ग़ज़ल की जान है आपकी ग़ज़ल पर आ. केवल प्रसाद जी…tag:openbooks.ning.com,2016-07-03:5170231:Comment:7818112016-07-03T00:42:35.061Zशिज्जु "शकूर"http://openbooks.ning.com/profile/ShijjuS
आपकी ग़ज़ल पर आ. केवल प्रसाद जी ने सवाल उठाया था उस पर काफ़ी विस्तार से बातें हुई है, आ. सौरभ पाण्डेय जी की विसतृत टिप्पणी सारी बातें साफ़ हो गईं।
आपकी ग़ज़ल पर आ. केवल प्रसाद जी ने सवाल उठाया था उस पर काफ़ी विस्तार से बातें हुई है, आ. सौरभ पाण्डेय जी की विसतृत टिप्पणी सारी बातें साफ़ हो गईं। भाई जयनित जी कमाल कर दिया आपन…tag:openbooks.ning.com,2016-07-03:5170231:Comment:7816872016-07-03T00:38:58.095Zशिज्जु "शकूर"http://openbooks.ning.com/profile/ShijjuS
भाई जयनित जी कमाल कर दिया आपने वाह। बहुत बहुत बधाई मतला ही इस ग़थ़ल की जान है
भाई जयनित जी कमाल कर दिया आपने वाह। बहुत बहुत बधाई मतला ही इस ग़थ़ल की जान है भाई जयनित जी ..
//इस मंच पर…tag:openbooks.ning.com,2016-07-02:5170231:Comment:7819132016-07-02T18:03:14.981ZSaurabh Pandeyhttp://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>भाई जयनित जी .. </p>
<p></p>
<p>//इस मंच पर गुरु-शिष्य की भावना का अभाव रहा है हमेशा से, सभी सदस्य समान भाव से एक दूसरे से/को सिखने-सिखाते हैं //</p>
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<p>इस मंच पर गुरु-शिष्य की भावना का कभी अभाव नहीं रहा है. बल्कि यहाँ हर जानकार गुरु तथा हर जानने और सीखने वाला शिष्य हुआ करता है. चाहे उसकी अवस्था कुछ भी हो. उस हिसाब से मुख्य ’गुरु जी’ की भूमिका में यह मंच ही है. अतः आपका यह सोचना की ऐसी किसी पारस्परिक भावना का ’अभाव’ (?) रहा है, पूरी तरह से गलत है. बल्कि, सही समझिये तो, यही…</p>
<p>भाई जयनित जी .. </p>
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<p>//इस मंच पर गुरु-शिष्य की भावना का अभाव रहा है हमेशा से, सभी सदस्य समान भाव से एक दूसरे से/को सिखने-सिखाते हैं //</p>
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<p>इस मंच पर गुरु-शिष्य की भावना का कभी अभाव नहीं रहा है. बल्कि यहाँ हर जानकार गुरु तथा हर जानने और सीखने वाला शिष्य हुआ करता है. चाहे उसकी अवस्था कुछ भी हो. उस हिसाब से मुख्य ’गुरु जी’ की भूमिका में यह मंच ही है. अतः आपका यह सोचना की ऐसी किसी पारस्परिक भावना का ’अभाव’ (?) रहा है, पूरी तरह से गलत है. बल्कि, सही समझिये तो, यही ’गुरु-शिष्य’ की भावना मूल रूप से व्यापक है. यह अवश्य है, कि इसका स्थावर, पारम्परिक और रूढ़ रूप नहीं दिखता, न ही उसे प्रश्रय दिया जाता.</p>
<p>जो अपनी टिप्पणियों में अधिक ’गुरुदेव-गुरुदेव’ करते हुए दिखते हैं, उन सदस्यों के प्रति प्रभावी वरिष्ठजन भी तिर्यक का भाव रखते हैं, मज़ा लेते हुए. </p>
<p></p>
<p>अच्छी भली सोच से उपजी पंक्तियाँ यदि सही ढंग से अभिव्यक्त न हो पायें, तो असंप्रेषणीयता का कैसा शिकार हो जाती हैं, आपकी उक्त पंक्ति है. आपकी अच्छी-भली सोच कायदे से अभिव्यक्त न हुई और आपने न चाहते हुए अनर्थ लिख दिया. और तो और अभाव जैसे शब्द का प्रयोग कर अनर्थ की डिग्री तक बढ़ा दी. </p>
<p>विश्वास है, मेरे कहे का आप अर्थ समझ गये होंगे.</p>
<p>शुभेच्छाएँ</p>
<p> </p> भाई केवल प्रसाद जी, अभी-अभी प…tag:openbooks.ning.com,2016-07-02:5170231:Comment:7816812016-07-02T17:35:27.807ZSaurabh Pandeyhttp://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>भाई केवल प्रसाद जी, अभी-अभी पटल पर आ रहा हूँ और् पहला पोस्ट आपका ही दिखा है. अतः आपके कहे पर सबसे पहले आना हुआ है. लेकिन उससे पहले कि हम संवाद बनायें, मंच पर के एक स्पष्ट निर्देश का पालन हम अवश्य करें. जिसका अनुपालन हर सदस्य से अपेक्षित है. वह है, अपनी भाषा और अभिव्यक्ति में समरसता बरतते हुए नम्रता बनाये रखना. ऐसा नहीं हुआ तो फिर सीखना-सिखाना छोड़िये, परस्पर संवाद में दिक्कत आ जायेगी.</p>
<p>आप मंच के पुराने सदस्य हैं. आपने तो इतने समय में कई धुरंधरों को बहकते और वाहीतबाही बकते देखा है. और…</p>
<p>भाई केवल प्रसाद जी, अभी-अभी पटल पर आ रहा हूँ और् पहला पोस्ट आपका ही दिखा है. अतः आपके कहे पर सबसे पहले आना हुआ है. लेकिन उससे पहले कि हम संवाद बनायें, मंच पर के एक स्पष्ट निर्देश का पालन हम अवश्य करें. जिसका अनुपालन हर सदस्य से अपेक्षित है. वह है, अपनी भाषा और अभिव्यक्ति में समरसता बरतते हुए नम्रता बनाये रखना. ऐसा नहीं हुआ तो फिर सीखना-सिखाना छोड़िये, परस्पर संवाद में दिक्कत आ जायेगी.</p>
<p>आप मंच के पुराने सदस्य हैं. आपने तो इतने समय में कई धुरंधरों को बहकते और वाहीतबाही बकते देखा है. और उनका हश्र भी देखा है. अनुशासन अनुपालन करवाने के क्रम में कई बार प्रबन्धन के सदस्यों को कड़ी भाषा में कड़े संदेश देने होते हैं. यह एक अपरिहार्य कदम हुआ करता है. इसका अर्थ यह नहीं कि सभी सदस्य अनायास बिना कारण वैसे आपत्कालीन बर्ताव की नकल करने लगें. हमें भी भाई जी, वैसा कड़ा बोलते कम कष्ट नहीं होता. लेकिन कई बार मज़बूरी हुआ करती है. खैर.. </p>
<p></p>
<p>मैं आपकी जिज्ञासा को संतुष्ट करूँ, उससे पहले यह पूछना लाजिमी हो जाता है, कि <strong>क्या आपने मेरी टिप्पणी पढ़ ली है ?</strong> <strong>यदि नहीं तो उसे कायदे से पढ़ लें.</strong> अन्यथा बहुत कुछ का भ्रम बना रहेगा.</p>
<p></p>
<p>अब आता हूँ आपकी टिप्पणी और उससे निस्सृत जिज्ञासा पर. </p>
<p></p>
<p>आपने वीनस जी की लिखी किताब का उल्लेख कर मेरी राह ही आसान कर दी. क्यों कि उसके उद्धरण से आपने स्वयं ही उत्तर भी दे दिया है. अब मुझे कुछ कहने की आवश्यकता ही नहीं है. लेकिन यह अवश्य पूछना चाहूँगा कि आपने स्वयं वीनस भाई के लिखे-कहे को समझा है ? मुझे तो संशय है.</p>
<p></p>
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<p>//<span>'हवा' और 'दवा' के मध्य इक्वा दोष बताया गया है.// </span></p>
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<p>क्या बात कर रहे हैं. फिर से पढ़ जाइये कि उस पुस्तक का वह पॉरा क्या कहता है. </p>
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<p><span>//<span>.देता...और ...नेता को यदि गज़ल में काफिया के लिये प्रयोग करते हैं तो हम बाध्य हो जाते हैं कि आ की मात्रा के साथ ही 'त' को भी हर काफिया में निभाया जाए. मगर इसके साथ हमें 'त' के पहले आए दीर्घ स्वर को भी निभाना होता है, अर्थात देता, नेता के पहले के कवाफी में जो दीर्घ स्वर ...ए...है उसे भी हर काफिया में निभाना होगा." मेरी समझ में द+ए, न+ए और ग+ए से ही है //</span></span></p>
<p></p>
<p>पहली बात कि जयनित भाई की प्रस्तुत ग़ज़ल के काफ़िये से उपर्युक्त उद्धरण के काफ़िये के उदाहरण में कोई साम्य नहीं है. अतः आपका कुछ कहना इस संदर्भ में ही दोषपूर्ण हो गया. </p>
<p></p>
<p>जयनित भाई के मतले से काफ़िया हुआ - ’चले’ और ’बड़े’. यहाँ ’ल’ और ’ड़’ समान वर्ण नहीं हैं. कि ए की मात्रा के साथ उनका बना होना आवश्यक हो. यहाँ मात्र और मात्र ’ए’ की मात्रा ही काफ़िया के तौर पर प्रयुक्त होगा. अतः ’गये’ शब्द के ’ए’ की मात्रा पूरी तरह स्वीकार्य होगी. </p>
<p></p>
<p></p>
<p>//<span>मैंने माना झुंझलाहट में शब्दों के आकार में अवांछ्नीय आवरण हो सकते हैं //</span></p>
<p></p>
<p><span>आइंदा ऐसी झुंझालहट से स्वयं को पूरी तरह से बचा कर रखिये भाई केवल प्रसाद जी. यह उचित नहीं है. और आपकी सीखने की क्षमता ही नहीं, सीखने की प्रवृति को भी नकारात्मक ढंग से प्रभावित करेगी. </span></p>
<p></p>
<p></p>
<p><strong>एक शुभकारी सलाह - </strong></p>
<p><span>आप इक्वा दोष, सिनाद दोष को एक बार और पूरी गंभीरता से समझने का प्रयास करें. हो सके तो भाई वीनस जी के संपर्क बना कर स्पष्ट होलें. </span></p>
<p></p>
<p><span>शुभेच्छाएँ. </span></p>
<p></p> आ० सौरभ सर जी, मैंने माना झु…tag:openbooks.ning.com,2016-07-02:5170231:Comment:7816062016-07-02T16:53:20.150Zकेवल प्रसाद 'सत्यम'http://openbooks.ning.com/profile/kewalprasad
<p><span>आ० सौरभ सर जी, मैंने माना झुंझलाहट में शब्दों के आकार में अवांछ्नीय आवरण हो सकते हैं. किंतु आ० वीनस केसरी भाई जी की पुस्तक ''गज़ल की बावत'' का पृष्ठ २०२ को प्रारम्भ से देख जाईये. दूसरे प्रस्तर में---- 'हवा' और 'दवा' के मध्य इक्वा दोष बताया गया है.....आगे बिंदु-३ के अंतर्गत....."काफिया में तुकांत व्यंजन के पूर्व दीर्घ स्वर का विरोध होने पर सिनाद दोष पैदा हो जाता है." उदाहरण ...देता...और ...नेता को यदि गज़ल में काफिया के लिये प्रयोग करते हैं तो हम बाध्य हो जाते हैं कि आ की मात्रा के साथ…</span></p>
<p><span>आ० सौरभ सर जी, मैंने माना झुंझलाहट में शब्दों के आकार में अवांछ्नीय आवरण हो सकते हैं. किंतु आ० वीनस केसरी भाई जी की पुस्तक ''गज़ल की बावत'' का पृष्ठ २०२ को प्रारम्भ से देख जाईये. दूसरे प्रस्तर में---- 'हवा' और 'दवा' के मध्य इक्वा दोष बताया गया है.....आगे बिंदु-३ के अंतर्गत....."काफिया में तुकांत व्यंजन के पूर्व दीर्घ स्वर का विरोध होने पर सिनाद दोष पैदा हो जाता है." उदाहरण ...देता...और ...नेता को यदि गज़ल में काफिया के लिये प्रयोग करते हैं तो हम बाध्य हो जाते हैं कि आ की मात्रा के साथ ही 'त' को भी हर काफिया में निभाया जाए. मगर इसके साथ हमें 'त' के पहले आए दीर्घ स्वर को भी निभाना होता है, अर्थात देता, नेता के पहले के कवाफी में जो दीर्घ स्वर ...ए...है उसे भी हर काफिया में निभाना होगा." मेरी समझ में द+ए, न+ए और ग+ए से ही है...</span></p>
<p></p>
<p><span>इस प्रकार हम कहें कि '</span><span>जाने कितने चले गए, आये।' वाले शे'र में सिनाद का दोष है तो...क्या गलत है.// मेरा दृष्टिकोण गलत नही है....पर आप मर्मज्ञ है...फिर भी यदि मै गलत हूं....तो मुझे भी समझना ही होगा कि सही क्या है?....इसे पहले की तरह अन्यथा न लें. सादर</span></p> भाषा के व्याकरण से सम्बंधित ज…tag:openbooks.ning.com,2016-07-02:5170231:Comment:7814662016-07-02T03:44:08.112Zजयनित कुमार मेहताhttp://openbooks.ning.com/profile/JaynitKumarMehta
भाषा के व्याकरण से सम्बंधित जो तथ्य आपने प्रस्तुत किये है आपने, उनसे कुछ-कुछ परिचित हूँ, आदरणीय।<br />
दरअसल मैं 'गये' ही लिखना चाहता था, किन्तु 'gaye' टाइप करने पर यही शब्द लिख गया, और मैं ध्यान नहीं दे पाया।
भाषा के व्याकरण से सम्बंधित जो तथ्य आपने प्रस्तुत किये है आपने, उनसे कुछ-कुछ परिचित हूँ, आदरणीय।<br />
दरअसल मैं 'गये' ही लिखना चाहता था, किन्तु 'gaye' टाइप करने पर यही शब्द लिख गया, और मैं ध्यान नहीं दे पाया। आदरणीय सौरभ जी, सादर प्रणाम।…tag:openbooks.ning.com,2016-07-02:5170231:Comment:7814582016-07-02T02:53:28.470Zजयनित कुमार मेहताhttp://openbooks.ning.com/profile/JaynitKumarMehta
<p>आदरणीय सौरभ जी, सादर प्रणाम।<br></br> आप मेरी इस यात्रा के साक्षी रहे हैं, और मेरे परिवेश से भी थोड़ा-बहुत परिचित हैं आप।<br></br> मैंने ओबीओ पर उपलब्ध ग़ज़ल सम्बंधित आलेखों का मोटा मोटी अध्ययन करके ही ग़ज़ल कहने का प्रयास आरम्भ किया, तब कुछ सज्जनों, (जिसमें आप विशेष रूप से शामिल हैं)..ने मेरी रचनाओं को दोषमुक्त और प्रभावशाली बनाने हेतु उचित सुझाव देने और मार्गदर्शन देने का काम किया है, जो अब भी जारी है।</p>
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<p>यह तो समझ ही चुका हूँ, कि इस मंच पर गुरु-शिष्य की भावना का अभाव रहा है हमेशा से, सभी…</p>
<p>आदरणीय सौरभ जी, सादर प्रणाम।<br/> आप मेरी इस यात्रा के साक्षी रहे हैं, और मेरे परिवेश से भी थोड़ा-बहुत परिचित हैं आप।<br/> मैंने ओबीओ पर उपलब्ध ग़ज़ल सम्बंधित आलेखों का मोटा मोटी अध्ययन करके ही ग़ज़ल कहने का प्रयास आरम्भ किया, तब कुछ सज्जनों, (जिसमें आप विशेष रूप से शामिल हैं)..ने मेरी रचनाओं को दोषमुक्त और प्रभावशाली बनाने हेतु उचित सुझाव देने और मार्गदर्शन देने का काम किया है, जो अब भी जारी है।</p>
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<p>यह तो समझ ही चुका हूँ, कि इस मंच पर गुरु-शिष्य की भावना का अभाव रहा है हमेशा से, सभी सदस्य समान भाव से एक दूसरे से/को सिखने-सिखाते हैं।<br/> फिर,जिस व्यक्ति ने आपकी कला को निखारने का काम किया हो,जो निरंतर अपने मार्गदर्शन से आपकी रचनाओं को संवारने का कार्य कर रहा हो, उसी के मुख से स्वयं के लिए ऐसे उद्गार निकलें, तो आप स्वयं अनुभव कर सकते हैं कि इस समय मुझे कैसे आत्म-संतोष की अनुभूति हो रही होगी। :-)</p>
<p><br/> जब कोई अबोध बालक दिग्भ्रमित होने लगे, तो बड़े-बूढ़े ही उसे सही दिशा दिखाते हैं। अपने उस निर्णय पर ग्लानि हुई मुझे, और मैंने आपको बताया भी था कि मुझे अपनी ग़लती का एहसास होने पर मैं उस 'नाव' से समय रहते उतर गया।</p>
<p></p>