Comments - ग़ज़ल - फूल भी बदतमीज़ होने लगे // - सौरभ - Open Books Online2024-03-28T11:39:21Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A762370&xn_auth=noआ. Saurabh Pandey सर,एक बार फ…tag:openbooks.ning.com,2024-01-02:5170231:Comment:11144912024-01-02T07:38:30.097ZNilesh Shevgaonkarhttp://openbooks.ning.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>आ. <a href="https://www.openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey" class="fn url">Saurabh Pandey</a> सर,<br/><br/>एक बार फिर हड़प्पा की खुदाई से आपका एक रत्न बरामद किया है.<br/>एक बार फिर ढेरों दाद स्वीकार करें ..<br/>//<strong>रात होंठों से नज़्म लिखती रही // यह मिसरा उधार ले रहा हूँ...<br/>पहले इस ज़मीन में ग़ज़ल कह चुका हूँ लेकिन अब ऊला मिसरे को ग़ज़ल बना के आप को समर्पित करने का प्रयास रहेगा .<br/><br/></strong>नमन </p>
<p>आ. <a href="https://www.openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey" class="fn url">Saurabh Pandey</a> सर,<br/><br/>एक बार फिर हड़प्पा की खुदाई से आपका एक रत्न बरामद किया है.<br/>एक बार फिर ढेरों दाद स्वीकार करें ..<br/>//<strong>रात होंठों से नज़्म लिखती रही // यह मिसरा उधार ले रहा हूँ...<br/>पहले इस ज़मीन में ग़ज़ल कह चुका हूँ लेकिन अब ऊला मिसरे को ग़ज़ल बना के आप को समर्पित करने का प्रयास रहेगा .<br/><br/></strong>नमन </p> आज विलम्ब के साथ अपनी ही रचना…tag:openbooks.ning.com,2016-06-22:5170231:Comment:7778832016-06-22T18:27:20.741ZSaurabh Pandeyhttp://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आज विलम्ब के साथ अपनी ही रचना पर आरहा हूँ. </p>
<p>भाई शिज्जू शकूर जी, आत्मीय नादिर भाई, आदरणीय गोपाल नारायण जी, भाई रामबली गुप्ताजी, आदरणीय राजेश कुमारी जी, आप सबों की हौसलाअफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया. </p>
<p>यह ग़ज़ल बताती है कि कैसे यह मंच तिल-तिलकर ग़ज़लग़ोई में सहयोग करता है. </p>
<p>शुभ-शुभ</p>
<p></p>
<p>आज विलम्ब के साथ अपनी ही रचना पर आरहा हूँ. </p>
<p>भाई शिज्जू शकूर जी, आत्मीय नादिर भाई, आदरणीय गोपाल नारायण जी, भाई रामबली गुप्ताजी, आदरणीय राजेश कुमारी जी, आप सबों की हौसलाअफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया. </p>
<p>यह ग़ज़ल बताती है कि कैसे यह मंच तिल-तिलकर ग़ज़लग़ोई में सहयोग करता है. </p>
<p>शुभ-शुभ</p>
<p></p> आज मई माह की रचनाओं को खंगालत…tag:openbooks.ning.com,2016-06-11:5170231:Comment:7753512016-06-11T12:33:50.870Zrajesh kumarihttp://openbooks.ning.com/profile/rajeshkumari
<p>आज मई माह की रचनाओं को खंगालते हुए आपकी इस ग़ज़ल पर नजरें टिकी रह गई। पूरे मई बाहर थी नेट पर अनुपस्थित रही। जिस वजह से ये ग़ज़ल हम से शायद रूठी रही ..खैर अब मना लिया है एक एक शब्द को छू छू कर पढ़े। मतले से मकते तक बिलकुल नए अंदाज के अशआरों से सामना होता गया | बस क्या कहूँ तारीफ के लिए भी शब्द नहीं मिल रहे दिल से ढेरों दाद कबूल कीजिये आ० शायर सौरभ जी </p>
<p></p>
<p>आज मई माह की रचनाओं को खंगालते हुए आपकी इस ग़ज़ल पर नजरें टिकी रह गई। पूरे मई बाहर थी नेट पर अनुपस्थित रही। जिस वजह से ये ग़ज़ल हम से शायद रूठी रही ..खैर अब मना लिया है एक एक शब्द को छू छू कर पढ़े। मतले से मकते तक बिलकुल नए अंदाज के अशआरों से सामना होता गया | बस क्या कहूँ तारीफ के लिए भी शब्द नहीं मिल रहे दिल से ढेरों दाद कबूल कीजिये आ० शायर सौरभ जी </p>
<p></p> आदरणीय सौरभ जी शेर-दर-शेर लाज़…tag:openbooks.ning.com,2016-05-05:5170231:Comment:7631552016-05-05T23:36:13.124Zरामबली गुप्ताhttp://openbooks.ning.com/profile/RAMBALIGUPTA
आदरणीय सौरभ जी शेर-दर-शेर लाज़वाब। बहुत बहुत बधाई आपको इस शानदार गज़ल के लिए
आदरणीय सौरभ जी शेर-दर-शेर लाज़वाब। बहुत बहुत बधाई आपको इस शानदार गज़ल के लिए आदरणीय सौरभ जी . तगज्जुल की न…tag:openbooks.ning.com,2016-05-05:5170231:Comment:7630662016-05-05T10:46:44.832Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttp://openbooks.ning.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
आदरणीय सौरभ जी . तगज्जुल की नवीनता बेमिसाल है. बेहतरीन . सादर .
आदरणीय सौरभ जी . तगज्जुल की नवीनता बेमिसाल है. बेहतरीन . सादर . रात होंठों से नज़्म लिखती रही …tag:openbooks.ning.com,2016-05-05:5170231:Comment:7631322016-05-05T06:52:04.528Zनादिर ख़ानhttp://openbooks.ning.com/profile/Nadir
<p><span>रात होंठों से नज़्म लिखती रही </span><br></br><span>चाँद औंधा पड़ा घुला जाये .. </span></p>
<p>आदरणीय सौरभ सर ग़ज़ल तो पहले से ही शानदार थी इस शेर ने चार चाँद लगा दिए। .. बहुत मुलायम शेर है सर बहुत सीखना बचा है। . <br></br>//आपकी सदाशयता के हम सदा से काइल रहे हैं. प्रस्तुति पर आपकी अहम मज़ूदग़ी के लिए हार्दिक धन्यवाद//<br></br>ज़र्रानवाज़ी का बहुत शुक्रिया जनाब वगर्ना हम तो अपनी कम इल्मी पर खुद शर्मसार रहते हैं शायद यही घुटन सीखने की ललक बनाये हुए है कल जब नीलेश नूर साहब से सुना के उन्होंने ३०० ग़ज़ल फेंकी…</p>
<p><span>रात होंठों से नज़्म लिखती रही </span><br/><span>चाँद औंधा पड़ा घुला जाये .. </span></p>
<p>आदरणीय सौरभ सर ग़ज़ल तो पहले से ही शानदार थी इस शेर ने चार चाँद लगा दिए। .. बहुत मुलायम शेर है सर बहुत सीखना बचा है। . <br/>//आपकी सदाशयता के हम सदा से काइल रहे हैं. प्रस्तुति पर आपकी अहम मज़ूदग़ी के लिए हार्दिक धन्यवाद//<br/>ज़र्रानवाज़ी का बहुत शुक्रिया जनाब वगर्ना हम तो अपनी कम इल्मी पर खुद शर्मसार रहते हैं शायद यही घुटन सीखने की ललक बनाये हुए है कल जब नीलेश नूर साहब से सुना के उन्होंने ३०० ग़ज़ल फेंकी है, हमारे तो हाथ पाँव फूलने लगे दिल में ख्याल आया ये कहाँ आ गए हम शौक़ शौक़ में, मगर फिर ये भी ख़याल आया वीनस जी ने कहीं लिखा था जो वज़्न की गिनती करना सीख गया देर सवेर ग़ज़ल कहना भी सीख जायेगा बस इसी उम्मीद पे चल रहे हैं फिर सुधीजनों का साथ और ईश्वर (अल्लाह ) की मर्जी साथ है तो घबराना कैसा आदरणीय मैं आपसे खुलकर बातें कर पाता हूँ आपने कुछ ज्यादा ही छूट दे रखी है मुझे....</p>
<p>शुभ शुभ </p>
<p></p> आदरणीय सौरभ सर मेरे जेह्न में…tag:openbooks.ning.com,2016-05-05:5170231:Comment:7629912016-05-05T01:56:13.681Zशिज्जु "शकूर"http://openbooks.ning.com/profile/ShijjuS
आदरणीय सौरभ सर मेरे जेह्न में ये बात अक्सर आती है ग़ज़लों में क्या अलग कहा जाये जबकि आप सहजता से अलग कह जाते हैं बेहतरीन ग़ज़ल है सादर बधाई आपको
आदरणीय सौरभ सर मेरे जेह्न में ये बात अक्सर आती है ग़ज़लों में क्या अलग कहा जाये जबकि आप सहजता से अलग कह जाते हैं बेहतरीन ग़ज़ल है सादर बधाई आपको हुज़ूर-ए-वाला इसे कहते हैं तहर…tag:openbooks.ning.com,2016-05-04:5170231:Comment:7629842016-05-04T16:14:56.510ZSamar kabeerhttp://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
हुज़ूर-ए-वाला इसे कहते हैं तहरीर शनास,आपने मेरे मन की बात महसूस कर ली,वैसे तो शैर में इबहाम का भी एक खास मक़ाम है, लेकिन वज़ाहत साफ़गोई का भी थोडा पुट भी ज़रूरी होता है ।<br />
सानी मिसरा बदलते ही शैर कहाँ से कहाँ पहुंच गया है, ये देखकर अंदर ही अंदर मसरूर हूँ,एक बार फिर से इस पूरी ग़ज़ल के लिये आपकी ख़िदमत में मुबारकबाद पेश करता हूँ,क़ुबूल फरमाएँ ।
हुज़ूर-ए-वाला इसे कहते हैं तहरीर शनास,आपने मेरे मन की बात महसूस कर ली,वैसे तो शैर में इबहाम का भी एक खास मक़ाम है, लेकिन वज़ाहत साफ़गोई का भी थोडा पुट भी ज़रूरी होता है ।<br />
सानी मिसरा बदलते ही शैर कहाँ से कहाँ पहुंच गया है, ये देखकर अंदर ही अंदर मसरूर हूँ,एक बार फिर से इस पूरी ग़ज़ल के लिये आपकी ख़िदमत में मुबारकबाद पेश करता हूँ,क़ुबूल फरमाएँ । वाह वाह वाह। क्या कहने
हार्दि…tag:openbooks.ning.com,2016-05-04:5170231:Comment:7630352016-05-04T14:20:52.280Zदिनेश कुमारhttp://openbooks.ning.com/profile/0bbsmwu5qzvln
वाह वाह वाह। क्या कहने<br />
हार्दिक दाद हाज़िर है आदरणीय सौरभ सर जी। वाह
वाह वाह वाह। क्या कहने<br />
हार्दिक दाद हाज़िर है आदरणीय सौरभ सर जी। वाह वाह वाह वा....मतले से आगे बढू…tag:openbooks.ning.com,2016-05-04:5170231:Comment:7630332016-05-04T14:18:25.577ZNilesh Shevgaonkarhttp://openbooks.ning.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>वाह वाह वा....मतले से आगे बढूँ तो बाकी पढूँ ...<br/>बहुत खूब ..अब तो तरही ग़ज़ल कहना ही पड़ेगी इस ज़मीन पर ..<br/>बहुत बहुत बधाई </p>
<p></p>
<p>वाह वाह वा....मतले से आगे बढूँ तो बाकी पढूँ ...<br/>बहुत खूब ..अब तो तरही ग़ज़ल कहना ही पड़ेगी इस ज़मीन पर ..<br/>बहुत बहुत बधाई </p>
<p></p>