Comments - नीला, पीला, हरा (लघुकथा) - Open Books Online2024-03-29T14:55:54Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A735200&xn_auth=noये जो रंग मिलाकर हरा बनाने वा…tag:openbooks.ning.com,2016-02-02:5170231:Comment:7377292016-02-02T10:37:42.067Zधर्मेन्द्र कुमार सिंहhttp://openbooks.ning.com/profile/249pje3yd1r3m
ये जो रंग मिलाकर हरा बनाने वाली बात है इसने कमाल कर दिया है। शानदार लघुकथा के लिए बहुत बहुत बधाई।
ये जो रंग मिलाकर हरा बनाने वाली बात है इसने कमाल कर दिया है। शानदार लघुकथा के लिए बहुत बहुत बधाई। अच्छाई व् बुराई का साथ , ऊर्ज…tag:openbooks.ning.com,2016-02-01:5170231:Comment:7374712016-02-01T20:51:54.545ZDr. Vijai Shankerhttp://openbooks.ning.com/profile/DrVijaiShanker
अच्छाई व् बुराई का साथ , ऊर्जा का अमिट होना , ग्रहों का एक दूसरों को देखना , बाधा पहुंचाना , संकेतों में वर्जित सुन्दरएवं प्रेरक प्रस्तुति , बधाई , सादर।
अच्छाई व् बुराई का साथ , ऊर्जा का अमिट होना , ग्रहों का एक दूसरों को देखना , बाधा पहुंचाना , संकेतों में वर्जित सुन्दरएवं प्रेरक प्रस्तुति , बधाई , सादर। आपकी लिखी शानदार रचनाओं में ए…tag:openbooks.ning.com,2016-02-01:5170231:Comment:7374672016-02-01T20:27:56.291ZHari Prakash Dubeyhttp://openbooks.ning.com/profile/HariPrakashDubey
<p>आपकी लिखी शानदार रचनाओं में एक और अविस्मर्णीय रचना ,हार्दिक बधाई सर ! सादर</p>
<p>आपकी लिखी शानदार रचनाओं में एक और अविस्मर्णीय रचना ,हार्दिक बधाई सर ! सादर</p> सुंदर,शिक्षाप्रद एवम् रोचक रच…tag:openbooks.ning.com,2016-02-01:5170231:Comment:7374552016-02-01T15:56:54.313Zसतविन्द्र कुमार राणाhttp://openbooks.ning.com/profile/28fn40mg3o5v9
सुंदर,शिक्षाप्रद एवम् रोचक रचना हुई है।और साथ ही चर्चा से भी कई तथ्य एवम् ज्ञान प्राप्त हुआ।सादर आभार एवम् नमन पूज्य सर जी।
सुंदर,शिक्षाप्रद एवम् रोचक रचना हुई है।और साथ ही चर्चा से भी कई तथ्य एवम् ज्ञान प्राप्त हुआ।सादर आभार एवम् नमन पूज्य सर जी। आपकी शिकायत एकदम वाजिब है मोह…tag:openbooks.ning.com,2016-02-01:5170231:Comment:7374492016-02-01T10:57:36.187Zयोगराज प्रभाकरhttp://openbooks.ning.com/profile/YograjPrabhakar
<p>आपकी शिकायत एकदम वाजिब है मोहतरम समर कबीर साहिबI "दो बदन" फिल्म के एक गीत के बोल याद आ रहे हैं:</p>
<p>"ये हमारी बदनसीबी जो नहीं तो और क्या है?"</p>
<p>अपनी स्थिति के बारे में सिर्फ इतना ही अर्ज़ करना चाहूँगा कि:</p>
<p>"ये हमारी <strong>बदतमीज़ी</strong> जो नहीं तो और क्या है?" </p>
<p>यकीन मानें कि चाहते हुए भी अपने साथिओं की तो क्या अपनी रचना पर भी आने का समय नहीं मिल पाता हैI एक तो दफ्तरी काम का बोझ ऊपर से साईट की 24 घंटे मोनिटरिंग, बस ठंडी आह भर कर रह जाता हूँI उम्मीद है कि मेरी हालत को…</p>
<p>आपकी शिकायत एकदम वाजिब है मोहतरम समर कबीर साहिबI "दो बदन" फिल्म के एक गीत के बोल याद आ रहे हैं:</p>
<p>"ये हमारी बदनसीबी जो नहीं तो और क्या है?"</p>
<p>अपनी स्थिति के बारे में सिर्फ इतना ही अर्ज़ करना चाहूँगा कि:</p>
<p>"ये हमारी <strong>बदतमीज़ी</strong> जो नहीं तो और क्या है?" </p>
<p>यकीन मानें कि चाहते हुए भी अपने साथिओं की तो क्या अपनी रचना पर भी आने का समय नहीं मिल पाता हैI एक तो दफ्तरी काम का बोझ ऊपर से साईट की 24 घंटे मोनिटरिंग, बस ठंडी आह भर कर रह जाता हूँI उम्मीद है कि मेरी हालत को समझते हुए आप मुझे इस "बदतमीज़ी" के लिए मुआफ करेंगेI मैं पूरी कोशिश करूंगा कि आपको दोबारा शिकायत का मौका न मिलेI </p> आदरणीय महोदय ! लाल किताब के स…tag:openbooks.ning.com,2016-01-31:5170231:Comment:7367072016-01-31T06:13:09.006ZDr T R Sukulhttp://openbooks.ning.com/profile/DrTRSukul
<p>आदरणीय महोदय ! लाल किताब के सम्बन्ध में सुना है परन्तु मैंने उसे नहीं पढ़ा। जिज्ञासा वश पढ़े गए भारतीय ज्योतिष पर सहज उपलब्ध ग्रंथों में दी गयी जानकारी के आधार परही मैंने अपने विचार प्रकट किये हैं। यदि आपने कथित ग्रन्थ का उल्लेख वेव पर कर दिया है तो यह गुरुतर कार्य प्रशंशनीय है , अवश्य अध्ययन करूंगा। वैसे ज्योतिष पर प्राप्त अनेक ग्रंथों में लेखकों के मतैक्य नहीं। कुछ विश्वविद्यालयों में किये गए अपेक्षतया नवीन शोध भी पुराने सिद्धांतों को नए सिरे से पारिभाषित करते देखे गए हैं। सादर। </p>
<p>आदरणीय महोदय ! लाल किताब के सम्बन्ध में सुना है परन्तु मैंने उसे नहीं पढ़ा। जिज्ञासा वश पढ़े गए भारतीय ज्योतिष पर सहज उपलब्ध ग्रंथों में दी गयी जानकारी के आधार परही मैंने अपने विचार प्रकट किये हैं। यदि आपने कथित ग्रन्थ का उल्लेख वेव पर कर दिया है तो यह गुरुतर कार्य प्रशंशनीय है , अवश्य अध्ययन करूंगा। वैसे ज्योतिष पर प्राप्त अनेक ग्रंथों में लेखकों के मतैक्य नहीं। कुछ विश्वविद्यालयों में किये गए अपेक्षतया नवीन शोध भी पुराने सिद्धांतों को नए सिरे से पारिभाषित करते देखे गए हैं। सादर। </p> आ० Dr T R Sukul जी, कभी अवसर…tag:openbooks.ning.com,2016-01-31:5170231:Comment:7366492016-01-31T05:47:40.175Zयोगराज प्रभाकरhttp://openbooks.ning.com/profile/YograjPrabhakar
<p>आ० <a class="fn url" href="http://www.openbooksonline.com/profile/DrTRSukul">Dr T R Sukul</a> जी, कभी अवसर मिले तो ज्योतिष के महान ग्रन्थ "लाल किताब" को पढिएगाI वैसे तो मूल रूप में यह उर्दू भाषा में है, किन्तु इस अकिंचन ने सन 2007 में इसके एक खंड का देवनागरी में लिप्यान्तरण किया था जोकि Archive.org पर उपलब्ध है तथा जिसे २५००० बार से अधिक डाउनलोड किया जा चुका हैI विभिन्न ग्रहों से सम्बंधित रंगों का ज़िक्र आपको वहां मिलेगाI वैसे आपका यह सेवक भी पिछले 35+ साल से ज्योतिष विद्या का शिक्षार्थी हैI…</p>
<p>आ० <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/DrTRSukul" class="fn url">Dr T R Sukul</a> जी, कभी अवसर मिले तो ज्योतिष के महान ग्रन्थ "लाल किताब" को पढिएगाI वैसे तो मूल रूप में यह उर्दू भाषा में है, किन्तु इस अकिंचन ने सन 2007 में इसके एक खंड का देवनागरी में लिप्यान्तरण किया था जोकि Archive.org पर उपलब्ध है तथा जिसे २५००० बार से अधिक डाउनलोड किया जा चुका हैI विभिन्न ग्रहों से सम्बंधित रंगों का ज़िक्र आपको वहां मिलेगाI वैसे आपका यह सेवक भी पिछले 35+ साल से ज्योतिष विद्या का शिक्षार्थी हैI काला रंग केवल शनि महाराज को दिया गया है राहू को नहींI </p> वाह आदरणीय योगराज सर वाह आपसी…tag:openbooks.ning.com,2016-01-29:5170231:Comment:7355222016-01-29T15:34:39.535ZSushil Sarnahttp://openbooks.ning.com/profile/SushilSarna
<p>वाह आदरणीय योगराज सर वाह आपसी वैमनस्य को नवरंग निर्माण की सकारात्मक सोच का ये सृजन मानवीय सोच को नया आयाम देता है। आपकी ये अनुपम कृति लघु कथा की राह में न केवल नवागंतुकों के लिए बल्कि हमारे लिए भी एक मील का पत्थर है। हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय। </p>
<p>वाह आदरणीय योगराज सर वाह आपसी वैमनस्य को नवरंग निर्माण की सकारात्मक सोच का ये सृजन मानवीय सोच को नया आयाम देता है। आपकी ये अनुपम कृति लघु कथा की राह में न केवल नवागंतुकों के लिए बल्कि हमारे लिए भी एक मील का पत्थर है। हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय। </p> एक बहुत ही तथ्यपरक सार्थक संद…tag:openbooks.ning.com,2016-01-29:5170231:Comment:7354272016-01-29T14:08:47.941ZSheikh Shahzad Usmanihttp://openbooks.ning.com/profile/SheikhShahzadUsmani
एक बहुत ही तथ्यपरक सार्थक संदेश वाहक बेहतरीन अनुपम कृति रचने व पढ़ने का अवसर प्रदान करने के लिए हृदयतल से आभार सहित बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय सर श्री योगराज प्रभाकर जी।
एक बहुत ही तथ्यपरक सार्थक संदेश वाहक बेहतरीन अनुपम कृति रचने व पढ़ने का अवसर प्रदान करने के लिए हृदयतल से आभार सहित बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय सर श्री योगराज प्रभाकर जी। हार्दिक बधाई आदरणीय योगराज प्…tag:openbooks.ning.com,2016-01-29:5170231:Comment:7355132016-01-29T13:54:40.454ZTEJ VEER SINGHhttp://openbooks.ning.com/profile/TEJVEERSINGH
<p>हार्दिक बधाई आदरणीय योगराज प्रभाकर भाई जी!बेहतरीन लघुकथा!आपकी शैली का तारतम्य बेहद प्रभाव शाली और रुचिकर होता है!पाठक पूरी लघुकथा को एक सांस में पढ जाता है!इतनी रोचकता बहुत कम देखने को मिलती है!यही विशेषता आपको सर्वोपरि बना देती है!पुनः बधाई!</p>
<p>हार्दिक बधाई आदरणीय योगराज प्रभाकर भाई जी!बेहतरीन लघुकथा!आपकी शैली का तारतम्य बेहद प्रभाव शाली और रुचिकर होता है!पाठक पूरी लघुकथा को एक सांस में पढ जाता है!इतनी रोचकता बहुत कम देखने को मिलती है!यही विशेषता आपको सर्वोपरि बना देती है!पुनः बधाई!</p>