Comments - कुछ छन्नपकैया सारछन्द - Open Books Online2024-03-29T09:48:21Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A727051&xn_auth=noआ. भाई समर जी, सादर अभिवादन।…tag:openbooks.ning.com,2022-07-08:5170231:Comment:10862772022-07-08T14:57:25.159Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। सार्थक सार छन्द हुए हैं हार्दिक बधाई।</p>
<p>आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। सार्थक सार छन्द हुए हैं हार्दिक बधाई।</p> उम्दा ज़नाब समर कबीर साहबtag:openbooks.ning.com,2016-01-06:5170231:Comment:7299062016-01-06T05:48:22.276Zसतविन्द्र कुमार राणाhttp://openbooks.ning.com/profile/28fn40mg3o5v9
उम्दा ज़नाब समर कबीर साहब
उम्दा ज़नाब समर कबीर साहब बहना राजेश कुमारी जी,आदाब,आपक…tag:openbooks.ning.com,2016-01-05:5170231:Comment:7296922016-01-05T17:21:55.144ZSamar kabeerhttp://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
बहना राजेश कुमारी जी,आदाब,आपको मेरी कोशिश पसंद आई,इस के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ,इस सम्बन्ध में आपसे मार्गदर्शन सदैव अपेक्षित है ।
बहना राजेश कुमारी जी,आदाब,आपको मेरी कोशिश पसंद आई,इस के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ,इस सम्बन्ध में आपसे मार्गदर्शन सदैव अपेक्षित है । जनाब सौरभ पांडे जी,आदाब,आपके…tag:openbooks.ning.com,2016-01-05:5170231:Comment:7297952016-01-05T17:19:48.399ZSamar kabeerhttp://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
जनाब सौरभ पांडे जी,आदाब,आपके दिये हुए मार्गदर्शन को दिल-ओ-दिमाग़ में महफ़ूज़ कर लिया है और उस पर अमल पैरा भी हूँ ,आपने जिस अंदाज़ में मेरी कोशिश की पज़ीराइ की उस से मेरा हौसला बहुत बढ़ गया है ,अस्ल में दिक़्क़त मुझे यह हो रही है कि मैं हिन्दी शब्दों से कम आशना हूँ ,हिन्दी शब्दों का ज़ख़ीरा मेरे पास कम है ,इस सबब से वो रफ़्तार नहीं पकड़ पा रहा हूँ ,आपका मार्गदर्शन अगर इसी तरह मिलता रहा,और आप इसी तरह हौसला अफ़ज़ाई करते रहे तो क़वी उम्मीद है कि मैं इस दरिया को आसानी से पार कर लूँगा ,शुक्रिया शब्द न जाने क्यूँ…
जनाब सौरभ पांडे जी,आदाब,आपके दिये हुए मार्गदर्शन को दिल-ओ-दिमाग़ में महफ़ूज़ कर लिया है और उस पर अमल पैरा भी हूँ ,आपने जिस अंदाज़ में मेरी कोशिश की पज़ीराइ की उस से मेरा हौसला बहुत बढ़ गया है ,अस्ल में दिक़्क़त मुझे यह हो रही है कि मैं हिन्दी शब्दों से कम आशना हूँ ,हिन्दी शब्दों का ज़ख़ीरा मेरे पास कम है ,इस सबब से वो रफ़्तार नहीं पकड़ पा रहा हूँ ,आपका मार्गदर्शन अगर इसी तरह मिलता रहा,और आप इसी तरह हौसला अफ़ज़ाई करते रहे तो क़वी उम्मीद है कि मैं इस दरिया को आसानी से पार कर लूँगा ,शुक्रिया शब्द न जाने क्यूँ मुझे इस वक़्त छोटा लग रहा है, मैं आपकी मुहब्बतों को सलाम पेश करता हूँ ,क़ुबूल फ़रमाऐं । जनाब श्याम नारायण वर्मा जी,आद…tag:openbooks.ning.com,2016-01-05:5170231:Comment:7295882016-01-05T17:06:07.238ZSamar kabeerhttp://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
जनाब श्याम नारायण वर्मा जी,आदाब,हौसला अफ़ज़ाई के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
जनाब श्याम नारायण वर्मा जी,आदाब,हौसला अफ़ज़ाई के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ । वाह वाह आ० समर भाई जी,आपको छं…tag:openbooks.ning.com,2015-12-29:5170231:Comment:7270762015-12-29T18:28:48.241Zrajesh kumarihttp://openbooks.ning.com/profile/rajeshkumari
<p>वाह वाह आ० समर भाई जी,आपको छंद लिखते देखना बड़ा सुखद लगता है आपकी बेहतरीन कोशिश पर दिल से बधाई दे रही हूँ बाकी आ० सौरभ जी ने बता ही दिया |</p>
<p>वाह वाह आ० समर भाई जी,आपको छंद लिखते देखना बड़ा सुखद लगता है आपकी बेहतरीन कोशिश पर दिल से बधाई दे रही हूँ बाकी आ० सौरभ जी ने बता ही दिया |</p> अव्वल तो आदरणीय समर कबीर साहब…tag:openbooks.ning.com,2015-12-29:5170231:Comment:7273512015-12-29T18:00:46.453ZSaurabh Pandeyhttp://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>अव्वल तो आदरणीय समर कबीर साहब, दिल से बधाई लीजिये कि आपकी कोशिश सिर चढ़ कर बोल रही है. और हम बार-बार अभिभूत हुए जा रहे हैं. आपने जिस अंदाज़ में सार छन्द के छन्न पकैया प्रारूप को अपनाया है वह प्रेरक है. यह आपका पहला प्रयास है सो कुछ असंगतियाँ स्वाभाविक है लेकिन आप सहजता से इनसे पार पा लेंगे. </p>
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<p>कुछ बातें ध्यान देने योग्य है, वो ये कि कोई पंक्ति स्पष्ट चरणों में हो.</p>
<p>इस हिसाब से <span style="color: #454545; font-size: 15.6px; line-height: 20.28px;">क्यूँकि अपने साथ साथ औरों…</span></p>
<p>अव्वल तो आदरणीय समर कबीर साहब, दिल से बधाई लीजिये कि आपकी कोशिश सिर चढ़ कर बोल रही है. और हम बार-बार अभिभूत हुए जा रहे हैं. आपने जिस अंदाज़ में सार छन्द के छन्न पकैया प्रारूप को अपनाया है वह प्रेरक है. यह आपका पहला प्रयास है सो कुछ असंगतियाँ स्वाभाविक है लेकिन आप सहजता से इनसे पार पा लेंगे. </p>
<p></p>
<p>कुछ बातें ध्यान देने योग्य है, वो ये कि कोई पंक्ति स्पष्ट चरणों में हो.</p>
<p>इस हिसाब से <span style="color: #454545; font-size: 15.6px; line-height: 20.28px;">क्यूँकि अपने साथ साथ औरों का दुःख भी ढोते </span>के चरण स्पष्ट नहीं हैं. अर्थात १६ वीं मात्रा शब्द के बीच में पड़ती है. यह कुछ-कुछ शिकस्ते नार’वा के ऐब जैसा है. </p>
<p>दूसरे, किसी चरण (इस छन्द की एक पंक्ति में दो चरण होते हैं, १६-१२ की यति पर) का अन्त जगण या आभासी जगण (१२१) या फिर रगण या अभासी रगण (२१२)) से नहीं हो सकता. जैसाकि एकदो जगह हो गया है. इस हिसाब से रमेश या क्लेश की तुकान्तता नहीं बन सकती. </p>
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<p>बाकी आपका प्रयास स्तुत्य है. हार्दिक बधाइयाँ व शुभकामनाएँ, आदरणीय</p>
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<p>जभी निवाला </p> बेहद उम्दा ...बहुत बहुत बधाई…tag:openbooks.ning.com,2015-12-29:5170231:Comment:7271392015-12-29T05:08:14.715ZShyam Narain Vermahttp://openbooks.ning.com/profile/ShyamNarainVerma
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<tbody><tr><td height="20" align="left" width="532">बेहद उम्दा ...बहुत बहुत बधाई आप को आदरणीय | सादर </td>
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<tbody><tr><td height="20" align="left" width="532">बेहद उम्दा ...बहुत बहुत बधाई आप को आदरणीय | सादर </td>
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