Comments - मैं तमन्ना नहीं करता हूँ कभी पोखर की--(ग़ज़ल)--मिथिलेश वामनकर - Open Books Online2024-03-28T17:54:58Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A721504&xn_auth=noआदरणीय विजय निकोरे सर, आपको य…tag:openbooks.ning.com,2015-12-24:5170231:Comment:7259342015-12-24T22:28:44.004Zमिथिलेश वामनकरhttp://openbooks.ning.com/profile/mw
<p>आदरणीय विजय निकोरे सर, आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर बहुत ख़ुशी हुई. आपकी सकारात्मक प्रतिक्रिया सदैव मुझे रचनाकर्म हेतु प्रेरित करती है. ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद, सादर </p>
<p>आदरणीय विजय निकोरे सर, आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर बहुत ख़ुशी हुई. आपकी सकारात्मक प्रतिक्रिया सदैव मुझे रचनाकर्म हेतु प्रेरित करती है. ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद, सादर </p> आपने इतनी अच्छी गज़ल दी, पढ़कर…tag:openbooks.ning.com,2015-12-16:5170231:Comment:7239372015-12-16T09:20:07.301Zvijay nikorehttp://openbooks.ning.com/profile/vijaynikore
<p>आपने इतनी अच्छी गज़ल दी, पढ़कर आनन्द आया।</p>
<p>आपको हार्दिक बधाई, आदरणीय मिथिलेश भाई।</p>
<p>आपने इतनी अच्छी गज़ल दी, पढ़कर आनन्द आया।</p>
<p>आपको हार्दिक बधाई, आदरणीय मिथिलेश भाई।</p> आदरणीय सौरभ सर, आपका अनुमोदन…tag:openbooks.ning.com,2015-12-10:5170231:Comment:7227212015-12-10T20:12:47.730Zमिथिलेश वामनकरhttp://openbooks.ning.com/profile/mw
<p>आदरणीय सौरभ सर, आपका अनुमोदन पाकर आश्वस्त हूँ. आपके मार्गदर्शन अनुसार ग़ज़ल में संशोधन कर रहा हूँ. सादर </p>
<p>आदरणीय सौरभ सर, आपका अनुमोदन पाकर आश्वस्त हूँ. आपके मार्गदर्शन अनुसार ग़ज़ल में संशोधन कर रहा हूँ. सादर </p> आदरणीय मिथिलेश भाई, आपने जिस…tag:openbooks.ning.com,2015-12-09:5170231:Comment:7225322015-12-09T20:17:04.039ZSaurabh Pandeyhttp://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय मिथिलेश भाई, आपने जिस तरह से इंगित अश’आर में परिवर्तन किये हैं वे आश्वस्त करते हैं.</p>
<p></p>
<p><strong>अपने माज़ी के लिए आज पे रोने वालो ...... (वालो न कि वालों)</strong><br/><strong>लौटते देखी है जलधार कभी निर्झर की</strong></p>
<p></p>
<p>उपर्युक्त शेर को मैं आपके कहे अबतक के सर्वश्रेष्ठ शेरों में से एक गिनूँगा. बहुत ही तार्किक, बहुत ही सार्थक शेर हुआ है.</p>
<p>हार्दिक बधाइयाँ व शुभकामनाएँ </p>
<p></p>
<p>आदरणीय मिथिलेश भाई, आपने जिस तरह से इंगित अश’आर में परिवर्तन किये हैं वे आश्वस्त करते हैं.</p>
<p></p>
<p><strong>अपने माज़ी के लिए आज पे रोने वालो ...... (वालो न कि वालों)</strong><br/><strong>लौटते देखी है जलधार कभी निर्झर की</strong></p>
<p></p>
<p>उपर्युक्त शेर को मैं आपके कहे अबतक के सर्वश्रेष्ठ शेरों में से एक गिनूँगा. बहुत ही तार्किक, बहुत ही सार्थक शेर हुआ है.</p>
<p>हार्दिक बधाइयाँ व शुभकामनाएँ </p>
<p></p> आदरणीय सौरभ सर, आपके मार्गदर्…tag:openbooks.ning.com,2015-12-08:5170231:Comment:7224222015-12-08T14:36:51.906Zमिथिलेश वामनकरhttp://openbooks.ning.com/profile/mw
<p>आदरणीय सौरभ सर, आपके मार्गदर्शन अनुसार सुधार का प्रयास किया है, सादर निवेदित है-</p>
<p></p>
<p><span>अम्न के वासिते मंदिर तो गया श्रद्धा से</span><br></br><strong>बात होंठों पे मगर सिर्फ वही बाबर की</strong>..... ( <strong>ग़ज़ल गद्यात्मक विधा है,</strong> जैसा गूढ़ सूत्रवाक्य साझा करने के लिए आपका आभार, नमन) </p>
<p></p>
<p>दानवी विश्व जो देखा तो गगन बोल उठा-<br></br>फिर जरुरत है धरा को नए पाराशर की........ आपने सही कहा कि मुनि पाराशर ने अंततः यज्ञ निरस्त कर दिया था किन्तु इस विचार से भय अवश्य…</p>
<p>आदरणीय सौरभ सर, आपके मार्गदर्शन अनुसार सुधार का प्रयास किया है, सादर निवेदित है-</p>
<p></p>
<p><span>अम्न के वासिते मंदिर तो गया श्रद्धा से</span><br/><strong>बात होंठों पे मगर सिर्फ वही बाबर की</strong>..... ( <strong>ग़ज़ल गद्यात्मक विधा है,</strong> जैसा गूढ़ सूत्रवाक्य साझा करने के लिए आपका आभार, नमन) </p>
<p></p>
<p>दानवी विश्व जो देखा तो गगन बोल उठा-<br/>फिर जरुरत है धरा को नए पाराशर की........ आपने सही कहा कि मुनि पाराशर ने अंततः यज्ञ निरस्त कर दिया था किन्तु इस विचार से भय अवश्य उत्पन्न हुआ था दानवों में. बस उसी बात को ध्यान में रखकर प्रयास किया है.</p>
<p></p>
<p><span>मेरे हिस्से का उजाला तो बराबर भेजो</span><br/><span>चाँद हो, तुम तो कमाई न करो ऊपर की......... आपकी इस्लाह से ये शेर तार्किक भी हुआ और कथ्य भी उभरकर सामने आ रहा है.</span></p>
<p></p>
<p></p>
<p><em>//अंतिम शेर के उला को और स्पष्ट होने की ज़रूरत है//</em></p>
<p></p>
<p><strong>अपने माज़ी के लिए आज पे रोने वालों </strong></p>
<p>लौटते देखी है जलधार कभी निर्झर की</p>
<p></p>
<p>आपका मार्गदर्शन पाकर रचनाकर्म को एक दिशा भी मिल जाती है. आपका हार्दिक आभार. नमन </p> आदरणीय नादिर खान सर,
आपको ग़ज़ल…tag:openbooks.ning.com,2015-12-08:5170231:Comment:7224202015-12-08T14:14:32.784Zमिथिलेश वामनकरhttp://openbooks.ning.com/profile/mw
<p><span>आदरणीय नादिर खान सर,</span></p>
<p><span>आपको ग़ज़ल पसंद आई, जानकार आश्वस्त हुआ हूँ. <span>ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और दाद मेरे लिए बहुत मायने रखती है.इस प्रयास</span> की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद, सादर </span></p>
<p><span>आदरणीय नादिर खान सर,</span></p>
<p><span>आपको ग़ज़ल पसंद आई, जानकार आश्वस्त हुआ हूँ. <span>ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और दाद मेरे लिए बहुत मायने रखती है.इस प्रयास</span> की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद, सादर </span></p> अम्न के वासिते मंदिर तो गया श…tag:openbooks.ning.com,2015-12-08:5170231:Comment:7222712015-12-08T10:58:34.066ZSaurabh Pandeyhttp://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>अम्न के वासिते मंदिर तो गया श्रद्धा से<br></br>हैं मगर लब पे वही बात मुग़ल बाबर की......... सानी अभी और सुधर सकता है. <br></br>एक जो महत्त्वपूर्ण बात मैंने वरिष्ठों के सान्निध्य में सीखा है वो ये कि ग़ज़ल एक गद्यात्मक विधा है. आश्चर्य सा लगता है किन्तु यह सत्य है. अच्छी ग़ज़लें वही होती हैं जिनके मिसरे गद्य वाक्य की तरह् अहोते हैं. अधिक काव्यात्मकता ग़ज़ल के मर्म से इकसार नहीं हो पाती. अतः मिसरे गद्य वाक्य के हों तो अधिक उचित है. यह ’हैं मगर लब पे वही बात..’ को संदर्भ में लेकर कह रहा हूँ.</p>
<p></p>
<p>ये…</p>
<p>अम्न के वासिते मंदिर तो गया श्रद्धा से<br/>हैं मगर लब पे वही बात मुग़ल बाबर की......... सानी अभी और सुधर सकता है. <br/>एक जो महत्त्वपूर्ण बात मैंने वरिष्ठों के सान्निध्य में सीखा है वो ये कि ग़ज़ल एक गद्यात्मक विधा है. आश्चर्य सा लगता है किन्तु यह सत्य है. अच्छी ग़ज़लें वही होती हैं जिनके मिसरे गद्य वाक्य की तरह् अहोते हैं. अधिक काव्यात्मकता ग़ज़ल के मर्म से इकसार नहीं हो पाती. अतः मिसरे गद्य वाक्य के हों तो अधिक उचित है. यह ’हैं मगर लब पे वही बात..’ को संदर्भ में लेकर कह रहा हूँ.</p>
<p></p>
<p>ये सहर क्या है, सबा क्या है, हमें क्या मालूम<br/>जिंदगी आज तो पीती है हवा कूलर की.. ......... ये बहुत ही दमदार शेर है, आदरणीय. अपने इस अंदाज़ को और पानीदार कीजिये. मज़ा आजायेगा. यह अवश्य है कि सचेत भी रहना पड़ेगा. कि, आपके मिसरे महज़ हास्य प्रधान ही न होने लगें.</p>
<p></p>
<p>दानवी विश्व जो देखा तो गगन बोल उठा-<br/>फिर जरुरत है धरा को नए पाराशर की .................. उला से संभवतः मानव-दानव के नाश की कथा की ओर इशारा हुआ है. लेकिन पाराशर ने तो सुझाव-सलाह के बाद ऐसा कोई यज्ञ करना समाप्त कर दिया था. भले खिसियाये बहुत थे.</p>
<p>वस्तुतः, यह बहुत ही देसी शेर हुआ है और ऐसे शेरों की ज़रूरत भी है. शर्त ये है कि हम अपने इतिहास के उज्ज्वल पक्ष के प्रति श्रद्धवनत हों. किसी तरह की निर्पेक्षता क्यों न हो, उच्च वैचारिकता जो कि घन अध्ययन का प्रतिफलन है, की व्युत्क्रमानुपाती नहीं होती. किन्तु, भाई लोग पौराणिक शब्द मात्र से वमनोद्वेलन का शिकार हो जाते हैं.</p>
<p></p>
<p>रास्ते ये तो बता, अब तू किधर जाएगा?<br/>ठोकरें हैं मेरे हिस्से में इधर दर-दर की................... वाह वाह !</p>
<p></p>
<p>मेरे हिस्से का उजाला तो बराबर भेजो<br/>सूर्य हो, तुम तो कमाई न करो ऊपर की ................. भावनात्मक रूप से यह शेर पाठक के मुँह से बरबस ’वाह’ खींच लाता है. लेकिन तार्किक रूप से तनिक असहज कथ्य का शिकार हो गया है. सूर्य का उजाला भेजना अंतर्निहित गुण है. भले बादलों या मौसमी हालात के कारण वह असक्षम दिखे. लेकिन मौका मिलते ही वह उजाला साझा करने लगता है. इस सूरत में सूर्य के प्रति कोई उलाहना तार्किक नहीं लगती. सूर्य ऊपर की कमाई क्या करेगा ? सूर्य को चाँद कर दिया जाय तो आपके शेर का मर्म खुल कर अभिव्यक्त होता जान पड़ता है. क्योंकि वही उजाला (रौशनी) के मामले में मनमर्ज़ी चलाता है.</p>
<p></p>
<p>अंतिम शेर के उला को और स्पष्ट होने की ज़रूरत है, आदरणीय. सानी को एक प्रभावी उला की ज़रूरत प्रतीत हो रही है. </p>
<p>बाकी शेर भी यथोचित गठन में हैं. </p>
<p>शुभ-शुभ</p>
<p></p> आपकी साफगोई और उम्दा ग़ज़ल के ल…tag:openbooks.ning.com,2015-12-08:5170231:Comment:7223182015-12-08T10:10:44.467Zनादिर ख़ानhttp://openbooks.ning.com/profile/Nadir
<p>आपकी साफगोई और उम्दा ग़ज़ल के लिए बहुत मुबारकबाद आदरणीय मिथिलेश जी ... <br/>पूरी ग़ज़ल ही लाजवाब कही आपने हमेशा की तरह। ..</p>
<p>आपकी साफगोई और उम्दा ग़ज़ल के लिए बहुत मुबारकबाद आदरणीय मिथिलेश जी ... <br/>पूरी ग़ज़ल ही लाजवाब कही आपने हमेशा की तरह। ..</p> आदरणीय सुशील सरना सर,
आपको यह…tag:openbooks.ning.com,2015-12-08:5170231:Comment:7222612015-12-08T07:46:35.606Zमिथिलेश वामनकरhttp://openbooks.ning.com/profile/mw
<p>आदरणीय सुशील सरना सर,</p>
<p>आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर बहुत ख़ुशी हुई. आपकी सकारात्मक प्रतिक्रिया सदैव मुझे रचनाकर्म हेतु प्रेरित करती है. ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद, सादर </p>
<p>आदरणीय सुशील सरना सर,</p>
<p>आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर बहुत ख़ुशी हुई. आपकी सकारात्मक प्रतिक्रिया सदैव मुझे रचनाकर्म हेतु प्रेरित करती है. ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद, सादर </p> आदरणीय श्याम नरेन् जी,
मेरी ह…tag:openbooks.ning.com,2015-12-08:5170231:Comment:7223162015-12-08T07:45:05.441Zमिथिलेश वामनकरhttp://openbooks.ning.com/profile/mw
<p>आदरणीय श्याम नरेन् जी,</p>
<p>मेरी हर ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना मेरे लिए बहुत मायने रखती है. ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद, सादर </p>
<p>आदरणीय श्याम नरेन् जी,</p>
<p>मेरी हर ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना मेरे लिए बहुत मायने रखती है. ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद, सादर </p>