Comments - हाँ, तुम बंट गए उस दिन कबीर - Open Books Online2024-03-28T22:22:11Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A718362&xn_auth=noआज भी वहां पर हैंदिखती दो समा…tag:openbooks.ning.com,2016-01-08:5170231:Comment:7308162016-01-08T12:32:04.931ZLOON KARAN CHHAJERhttp://openbooks.ning.com/profile/LOONKARANCHHAJER
<p>आज भी वहां पर हैं<br/><br/>दिखती दो समाधियाँ<br/><br/>करती हुयी ऐलान<br/><br/>कि वह मन्त्रदाता, वह योगी, वह संत<br/><br/>जिसने किया था पाखण्ड का विरोध <br/><br/>बंट गया मगहर में <br/><br/>लोगों की जिद से<br/><br/>बहुत खूब। ..बधाई</p>
<p>आज भी वहां पर हैं<br/><br/>दिखती दो समाधियाँ<br/><br/>करती हुयी ऐलान<br/><br/>कि वह मन्त्रदाता, वह योगी, वह संत<br/><br/>जिसने किया था पाखण्ड का विरोध <br/><br/>बंट गया मगहर में <br/><br/>लोगों की जिद से<br/><br/>बहुत खूब। ..बधाई</p> बहुत सुन्दर ... सादर बधाई स्…tag:openbooks.ning.com,2015-12-30:5170231:Comment:7277422015-12-30T07:32:08.539ZShyam Narain Vermahttp://openbooks.ning.com/profile/ShyamNarainVerma
<table border="0" cellspacing="0" width="532">
<tbody><tr><td height="20" align="left" width="532">बहुत सुन्दर ... सादर बधाई स्वीकारें आदरणीय</td>
</tr>
</tbody>
</table>
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<tbody><tr><td height="20" align="left" width="532">बहुत सुन्दर ... सादर बधाई स्वीकारें आदरणीय</td>
</tr>
</tbody>
</table> बहुत ही सटीक एवम् सुंदर शब्दा…tag:openbooks.ning.com,2015-12-28:5170231:Comment:7268592015-12-28T03:04:40.170Zसतविन्द्र कुमार राणाhttp://openbooks.ning.com/profile/28fn40mg3o5v9
बहुत ही सटीक एवम् सुंदर शब्दाभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय।
बहुत ही सटीक एवम् सुंदर शब्दाभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय। कबीर के हिन्दू-मुस्लिम शिष्य…tag:openbooks.ning.com,2015-12-27:5170231:Comment:7266922015-12-27T16:42:59.176ZSatyanarayan Singhhttp://openbooks.ning.com/profile/satyanarayanShivramSingh
<p>कबीर के हिन्दू-मुस्लिम शिष्य उनके मृत्युपरांत शव को लेकर आपस में उलझे उन अज्ञानी शिष्यों को उनकी मृत्यु भी एक दृष्टांत का कारण बनी रचना के माध्यम से इस गूढ़ ज्ञान को साझा करने हेतु आदरणीय डॉ. गोपाल नारायन सादर बधाई स्वीकार करें. </p>
<p>कबीर के हिन्दू-मुस्लिम शिष्य उनके मृत्युपरांत शव को लेकर आपस में उलझे उन अज्ञानी शिष्यों को उनकी मृत्यु भी एक दृष्टांत का कारण बनी रचना के माध्यम से इस गूढ़ ज्ञान को साझा करने हेतु आदरणीय डॉ. गोपाल नारायन सादर बधाई स्वीकार करें. </p> आ० सौरभ पांडेयजी -आपके टीप क…tag:openbooks.ning.com,2015-12-27:5170231:Comment:7266872015-12-27T15:54:30.631Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttp://openbooks.ning.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>आ० सौरभ पांडेयजी -आपके टीप का स्वागत करता हूँ , सादर . </p>
<p>आ० सौरभ पांडेयजी -आपके टीप का स्वागत करता हूँ , सादर . </p> आ० कांता रॉय जी - आप्यायित हु…tag:openbooks.ning.com,2015-12-27:5170231:Comment:7267712015-12-27T15:52:50.926Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttp://openbooks.ning.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>आ० कांता रॉय जी - आप्यायित हुआ सादर . </p>
<p>आ० कांता रॉय जी - आप्यायित हुआ सादर . </p> प्रिय जान - बहुत बहुत आभार . tag:openbooks.ning.com,2015-12-27:5170231:Comment:7268422015-12-27T15:51:56.901Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttp://openbooks.ning.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>प्रिय जान - बहुत बहुत आभार . </p>
<p>प्रिय जान - बहुत बहुत आभार . </p> आ० विजय निकोर जी - सादर चरणस्…tag:openbooks.ning.com,2015-12-27:5170231:Comment:7268412015-12-27T15:51:08.285Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttp://openbooks.ning.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>आ० विजय निकोर जी - सादर चरणस्पर्श . </p>
<p>आ० विजय निकोर जी - सादर चरणस्पर्श . </p> आ० लडी वाला जी- आपका बहुत बहु…tag:openbooks.ning.com,2015-12-27:5170231:Comment:7266862015-12-27T15:50:26.043Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttp://openbooks.ning.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>आ० लडी वाला जी- आपका बहुत बहुत आभार . </p>
<p>आ० लडी वाला जी- आपका बहुत बहुत आभार . </p> आ० विजय सर ! अनुग्रहीत हुआ स…tag:openbooks.ning.com,2015-12-27:5170231:Comment:7267702015-12-27T15:49:26.554Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttp://openbooks.ning.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>आ० विजय सर ! अनुग्रहीत हुआ सादर . </p>
<p>आ० विजय सर ! अनुग्रहीत हुआ सादर . </p>