Comments - चार मित्रों, चार चेलों से मिली क्या वाह वाह (मज़ाहिया ग़ज़ल) - Open Books Online2024-03-28T10:56:52Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A692086&xn_auth=noमजेदार आदरणीय धर्मेन्द्र कुमा…tag:openbooks.ning.com,2015-09-01:5170231:Comment:6944082015-09-01T16:48:25.719ZJAWAHAR LAL SINGHhttp://openbooks.ning.com/profile/JAWAHARLALSINGH
<p>मजेदार आदरणीय धर्मेन्द्र कुमार जी!</p>
<p>मजेदार आदरणीय धर्मेन्द्र कुमार जी!</p> जनाब धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी…tag:openbooks.ning.com,2015-08-29:5170231:Comment:6931052015-08-29T18:07:33.193ZSamar kabeerhttp://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
जनाब धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी,आदाब,सुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।
जनाब धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी,आदाब,सुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें । आदरणीय सौरभ जी, उपस्थिति एवं…tag:openbooks.ning.com,2015-08-28:5170231:Comment:6922702015-08-28T12:01:02.280Zधर्मेन्द्र कुमार सिंहhttp://openbooks.ning.com/profile/249pje3yd1r3m
<p>आदरणीय सौरभ जी, उपस्थिति एवं मार्गदर्शन के लिए आभारी हूँ। अब जो है सो तो हइये है :) मगर भविष्य में एक मजाहिया ग़ज़ल, सात अश’आर वाली अवश्य पेश की जाएगी। :)</p>
<p>आदरणीय सौरभ जी, उपस्थिति एवं मार्गदर्शन के लिए आभारी हूँ। अब जो है सो तो हइये है :) मगर भविष्य में एक मजाहिया ग़ज़ल, सात अश’आर वाली अवश्य पेश की जाएगी। :)</p> काश शेर थोड़ा और रंगीन हुए होत…tag:openbooks.ning.com,2015-08-28:5170231:Comment:6923562015-08-28T09:30:00.117ZSaurabh Pandeyhttp://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>काश शेर थोड़ा और रंगीन हुए होते. पाँच में पाँच रंगों की अपेक्षा थी. और दो और शेरों की आशा. :-))</p>
<p>लेकिन जो है सो वो हइये है.. (आजकल आप ऐसे ही ’बतकूचनों’ के प्रभाव में हैं.. हा हा हा..)</p>
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<p>काश शेर थोड़ा और रंगीन हुए होते. पाँच में पाँच रंगों की अपेक्षा थी. और दो और शेरों की आशा. :-))</p>
<p>लेकिन जो है सो वो हइये है.. (आजकल आप ऐसे ही ’बतकूचनों’ के प्रभाव में हैं.. हा हा हा..)</p>
<p></p> बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय मिथ…tag:openbooks.ning.com,2015-08-28:5170231:Comment:6923522015-08-28T08:06:01.621Zधर्मेन्द्र कुमार सिंहhttp://openbooks.ning.com/profile/249pje3yd1r3m
<p>बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय मिथिलेश जी</p>
<p>बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय मिथिलेश जी</p> आदरणीय बड़े भाई धर्मेन्द्र जी,…tag:openbooks.ning.com,2015-08-27:5170231:Comment:6921762015-08-27T20:19:31.596Zमिथिलेश वामनकरhttp://openbooks.ning.com/profile/mw
<p>आदरणीय बड़े भाई धर्मेन्द्र जी, बहुत बढ़िया मजाहिया ग़ज़ल हुई है. शेर दर शेर दाद हाज़िर है. </p>
<p>इन दिनों मैं भी मजाहिया ग़ज़ल पर प्रयासरत हूँ. सादर </p>
<p>आदरणीय बड़े भाई धर्मेन्द्र जी, बहुत बढ़िया मजाहिया ग़ज़ल हुई है. शेर दर शेर दाद हाज़िर है. </p>
<p>इन दिनों मैं भी मजाहिया ग़ज़ल पर प्रयासरत हूँ. सादर </p>