Comments - माँ का टोटका - Open Books Online2024-03-29T10:05:07Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A647442&xn_auth=noआदरणीय Saurabh Pandey जी मैंन…tag:openbooks.ning.com,2015-05-02:5170231:Comment:6498782015-05-02T11:55:49.486Zumesh katarahttp://openbooks.ning.com/profile/umeshkatara437
<p>आदरणीय <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey">Saurabh Pandey</a> जी मैंने आपकी प्रतिक्रिया को अन्यथा कतई नहीं लिया है गौर से पढ़ा और समझा है आभार <br></br>मगर सर <br></br>मैंने इस कविता के पहले हिस्से में<br></br>माँ के छोटे से काले टीके की ताकत को दिखाया है <br></br>और दूसरे हिस्से में <br></br>पूरा मूँह काला होने पर भी <br></br>भय की स्थिति से पीडित होना बताया है<br></br>ऐसी स्थिति में <br></br>माँ के टीके की ताकत की तुलना <br></br>पूरा मुँह काला करने से की है<br></br>इसलिये <br></br>मगर फिर भी <br></br>लिखा…</p>
<p>आदरणीय <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey">Saurabh Pandey</a> जी मैंने आपकी प्रतिक्रिया को अन्यथा कतई नहीं लिया है गौर से पढ़ा और समझा है आभार <br/>मगर सर <br/>मैंने इस कविता के पहले हिस्से में<br/>माँ के छोटे से काले टीके की ताकत को दिखाया है <br/>और दूसरे हिस्से में <br/>पूरा मूँह काला होने पर भी <br/>भय की स्थिति से पीडित होना बताया है<br/>ऐसी स्थिति में <br/>माँ के टीके की ताकत की तुलना <br/>पूरा मुँह काला करने से की है<br/>इसलिये <br/>मगर फिर भी <br/>लिखा है <br/>आप कतई अन्यथा न लें <br/><br/></p> आदरणीय उमेश कटाराजी, आपको मेर…tag:openbooks.ning.com,2015-05-02:5170231:Comment:6499432015-05-02T06:42:14.082ZSaurabh Pandeyhttp://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय उमेश कटाराजी, आपको मेरी प्रतिक्रिया में ऐसा अनूठापन क्या लगा है ? या, प्रस्तुत रचनाकर्म की समृद्धि हेतु मेरी सहयोगात्मक एवं आत्मीय सलाह आपको अपने रचनाकर्म पर अतिक्रमण लगी है ? <br/>आदरणीय, मुझे भी जानने की उत्सुकता है. अन्यथा, इस मंच पर प्रतिक्रियाओं की ऐसी ही परिपाटी रही है. यदि सुझाव रचनाकार को अतुकान्त और अन्यथा लगे, तो हम सदस्य उसे बलात मनवाने में कोई रुचि नहीं रखते. <br/>सादर<br/><br/></p>
<p>आदरणीय उमेश कटाराजी, आपको मेरी प्रतिक्रिया में ऐसा अनूठापन क्या लगा है ? या, प्रस्तुत रचनाकर्म की समृद्धि हेतु मेरी सहयोगात्मक एवं आत्मीय सलाह आपको अपने रचनाकर्म पर अतिक्रमण लगी है ? <br/>आदरणीय, मुझे भी जानने की उत्सुकता है. अन्यथा, इस मंच पर प्रतिक्रियाओं की ऐसी ही परिपाटी रही है. यदि सुझाव रचनाकार को अतुकान्त और अन्यथा लगे, तो हम सदस्य उसे बलात मनवाने में कोई रुचि नहीं रखते. <br/>सादर<br/><br/></p> आदरणीय shree suneel जी आपको र…tag:openbooks.ning.com,2015-05-02:5170231:Comment:6498382015-05-02T05:59:17.108Zumesh katarahttp://openbooks.ning.com/profile/umeshkatara437
<p>आदरणीय <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/shreesuneel">shree suneel</a> जी आपको रचना पसन्द आई आपका आभार</p>
<p>आदरणीय <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/shreesuneel">shree suneel</a> जी आपको रचना पसन्द आई आपका आभार</p> आदरणीया भावना तिवारी जी आपको…tag:openbooks.ning.com,2015-05-02:5170231:Comment:6497052015-05-02T05:58:35.399Zumesh katarahttp://openbooks.ning.com/profile/umeshkatara437
<p>आदरणीया <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/DrBHAVANATIWARI">भावना तिवारी</a> जी आपको रचना पसन्द आई आभार</p>
<p>आदरणीया <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/DrBHAVANATIWARI">भावना तिवारी</a> जी आपको रचना पसन्द आई आभार</p> आदरणीय Saurabh Pandey जी आपकी…tag:openbooks.ning.com,2015-05-02:5170231:Comment:6498372015-05-02T05:57:00.726Zumesh katarahttp://openbooks.ning.com/profile/umeshkatara437
<p>आदरणीय <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey">Saurabh Pandey</a> जी आपकी अनूठी प्रतिक्रिया के लिये तहेदिल से आभार व्यक्त करता हूँ</p>
<p>आदरणीय <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey">Saurabh Pandey</a> जी आपकी अनूठी प्रतिक्रिया के लिये तहेदिल से आभार व्यक्त करता हूँ</p> आदरणीय उमेश कटाराजी, आपकी प्र…tag:openbooks.ning.com,2015-05-02:5170231:Comment:6498222015-05-02T03:58:47.467ZSaurabh Pandeyhttp://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय उमेश कटाराजी, आपकी प्रस्तुति के भावशब्द सरल शब्दों में हैं और सीधे हृदय में उतरते चले जाते हैं. इस अत्यंत भावमय प्रस्तुति के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ. </p>
<p></p>
<p>एक बात संप्रेषणीयता के लिहाज से अवश्य साझा करना चाहूँगा. शायद आप भी उसे अनुमोदित करें या मुझे बताइयेगा, यदि मैं गलत हूँ.</p>
<p><em>अब तो मैंने कैसे कैसे</em> <br></br><em>कृत्यों से कर लिया है</em><br></br><em>पूरा मुँह काला</em><br></br><em>मगर फिर भी</em> <br></br><em>भय से व्याप्त मन</em> <br></br><em>हमेशा व्याकुल रहता…</em></p>
<p>आदरणीय उमेश कटाराजी, आपकी प्रस्तुति के भावशब्द सरल शब्दों में हैं और सीधे हृदय में उतरते चले जाते हैं. इस अत्यंत भावमय प्रस्तुति के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ. </p>
<p></p>
<p>एक बात संप्रेषणीयता के लिहाज से अवश्य साझा करना चाहूँगा. शायद आप भी उसे अनुमोदित करें या मुझे बताइयेगा, यदि मैं गलत हूँ.</p>
<p><em>अब तो मैंने कैसे कैसे</em> <br/><em>कृत्यों से कर लिया है</em><br/><em>पूरा मुँह काला</em><br/><em>मगर फिर भी</em> <br/><em>भय से व्याप्त मन</em> <br/><em>हमेशा व्याकुल रहता है</em><br/><br/>इस भावशब्द में ’<em>कैसे-कैसे</em>’ की जगह ’<strong>अपने</strong>’ तथा ’<em>मगर फिर भी</em>’ की जगह ’<strong>और</strong>’ लिखें. शायद कहन में व्यापी लाक्षणिकता रचना के लिए एक स्तर आगे बढ़ निखर जाने का कारण बन जाये. <br/>अर्थात, <br/><strong>अब तो मैंने अपने </strong><br/><strong>कृत्यों से कर लिया है</strong><br/><strong>पूरा मुँह काला</strong><br/><strong>और</strong></p>
<p><strong>भय से व्याप्त मन</strong> <br/><strong>हमेशा व्याकुल रहता है</strong><br/><br/>शुभेच्छाएँ</p>
<p></p> क्या बात! आदरणीय उमेश कटारा ज…tag:openbooks.ning.com,2015-05-01:5170231:Comment:6496632015-05-01T18:27:59.486Zshree suneelhttp://openbooks.ning.com/profile/shreesuneel
क्या बात! आदरणीय उमेश कटारा जी, इस सुन्दर कविता के लिए बधाई.
क्या बात! आदरणीय उमेश कटारा जी, इस सुन्दर कविता के लिए बधाई. वाह ...कुछ पंक्तियों में आज क…tag:openbooks.ning.com,2015-05-01:5170231:Comment:6494942015-05-01T18:14:45.407Zभावना तिवारीhttp://openbooks.ning.com/profile/DrBHAVANATIWARI
<p>वाह ...कुछ पंक्तियों में आज की कुटिलताओं का समावेश और उससे व्याप्त भय का चित्र ..!!</p>
<p>वाह ...कुछ पंक्तियों में आज की कुटिलताओं का समावेश और उससे व्याप्त भय का चित्र ..!!</p> आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवा…tag:openbooks.ning.com,2015-05-01:5170231:Comment:6497562015-05-01T16:27:08.828Zumesh katarahttp://openbooks.ning.com/profile/umeshkatara437
<p><span>आदरणीय </span><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA">डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव</a> जी आपको रचना पसन्द आयी इसके लिये तहेदिल से आभारी हूँ</p>
<p><a rel="nofollow" href="http://www.openbooksonline.com/profile/DrVijaiShanker"></a></p>
<p><span>आदरणीय </span><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA">डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव</a> जी आपको रचना पसन्द आयी इसके लिये तहेदिल से आभारी हूँ</p>
<p><a rel="nofollow" href="http://www.openbooksonline.com/profile/DrVijaiShanker"></a></p> आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया जी…tag:openbooks.ning.com,2015-05-01:5170231:Comment:6494882015-05-01T16:26:43.341Zumesh katarahttp://openbooks.ning.com/profile/umeshkatara437
<p><span>आदरणीय </span><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/JitendraPastariya">जितेन्द्र पस्टारिया</a> जी आपको रचना पसन्द आयी इसके लिये तहेदिल से आभारी हूँ</p>
<p><a rel="nofollow" href="http://www.openbooksonline.com/profile/DrVijaiShanker"></a></p>
<p><span>आदरणीय </span><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/JitendraPastariya">जितेन्द्र पस्टारिया</a> जी आपको रचना पसन्द आयी इसके लिये तहेदिल से आभारी हूँ</p>
<p><a rel="nofollow" href="http://www.openbooksonline.com/profile/DrVijaiShanker"></a></p>