Comments - इस जिंदगी का क्या भरोसा ये मुद्दा है गौर का | - Open Books Online2024-03-28T14:10:01Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A647164&xn_auth=noउत्साह वर्धन के लिये आपक आभा…tag:openbooks.ning.com,2015-05-06:5170231:Comment:6516132015-05-06T11:57:52.428ZShyam Narain Vermahttp://openbooks.ning.com/profile/ShyamNarainVerma
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<tbody><tr><td height="20" class="xl64" align="left" width="482">उत्साह वर्धन के लिये आपक आभार ।</td>
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<tbody><tr><td height="20" class="xl64" align="left" width="482">उत्साह वर्धन के लिये आपक आभार ।</td>
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</table> नेपाल त्रास्दी पर रचित सार्थक…tag:openbooks.ning.com,2015-05-06:5170231:Comment:6515082015-05-06T08:34:31.561ZMohinder Kumarhttp://openbooks.ning.com/profile/MohinderKumar
<p>नेपाल त्रास्दी पर रचित सार्थक गजल... लिखते रहिये आदरणीय श्याम नारायण जी </p>
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<p>नेपाल त्रास्दी पर रचित सार्थक गजल... लिखते रहिये आदरणीय श्याम नारायण जी </p>
<p></p> आदरणीय श्री गोपाल नारायण श्री…tag:openbooks.ning.com,2015-05-04:5170231:Comment:6504472015-05-04T06:26:03.284ZShyam Narain Vermahttp://openbooks.ning.com/profile/ShyamNarainVerma
<p>आदरणीय श्री गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी , श्री गिरिराज भंडारी जी , समर कबीर जी , मिथिलेश जी , आदरणीया महिमा श्री जी , आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी , डा. विजय शंकर जी और डा. आशुतोष मिश्र जी रचना भाव पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आभार।</p>
<p>आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी अमूल्य पथ प्रदर्शन के लिए आपका बहुत बहुत आभार | <br></br>कुदरत हिलाये कौर का ? इसके क्या माने हुए ? <br></br> कुदरत जिंदगी ही तबाह कर रहा है |<br></br> उला में जहां की के बाद एक द्विकल छूट गया है. फिर काफ़िया ’मौर’ का के क्या माने ?हुत अच्छी<br></br>मौर का…</p>
<p>आदरणीय श्री गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी , श्री गिरिराज भंडारी जी , समर कबीर जी , मिथिलेश जी , आदरणीया महिमा श्री जी , आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी , डा. विजय शंकर जी और डा. आशुतोष मिश्र जी रचना भाव पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आभार।</p>
<p>आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी अमूल्य पथ प्रदर्शन के लिए आपका बहुत बहुत आभार | <br/>कुदरत हिलाये कौर का ? इसके क्या माने हुए ? <br/> कुदरत जिंदगी ही तबाह कर रहा है |<br/> उला में जहां की के बाद एक द्विकल छूट गया है. फिर काफ़िया ’मौर’ का के क्या माने ?हुत अच्छी<br/>मौर का माने सहारा है |</p>
<p>सादर</p> आदरणीय श्याम नारायण जी इस सुं…tag:openbooks.ning.com,2015-05-02:5170231:Comment:6500142015-05-02T08:10:57.065ZDr Ashutosh Mishrahttp://openbooks.ning.com/profile/DrAshutoshMishra
<p>आदरणीय श्याम नारायण जी इस सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर </p>
<p>आदरणीय श्याम नारायण जी इस सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर </p> आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी,…tag:openbooks.ning.com,2015-05-02:5170231:Comment:6499172015-05-02T03:56:17.272ZDr. Vijai Shankerhttp://openbooks.ning.com/profile/DrVijaiShanker
आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी, इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई, सादर।
आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी, इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई, सादर। आदरणीय श्याम नारायणजी, आपकी य…tag:openbooks.ning.com,2015-05-02:5170231:Comment:6498192015-05-02T03:37:07.808ZSaurabh Pandeyhttp://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय श्याम नारायणजी, आपकी यह ग़ज़ल आजकी त्रासदी और परिस्थितियों को समेटे दर्शन शास्त्र के इंगितों और विन्दुओं को साथ लिये सरस प्रवाह के साथ सामने आयी है. आजकी घड़ी आशान्वित कम किन्तु विकल अधिक कर रही है. कविकर्म प्रभावित न हो ऐसा हो ही नहीं सकता.</p>
<p>आपकी प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद और अनेकानेक शुभकामनाएँ. <br></br><br></br>अब शेर दर शेर देखा जाय तो शिल्प के लिहाज से कई कमियाँ मात्र ध्यान न देने के कारण रह गयी हैं. तो कई काफ़िया अपने अर्थ के लिहाज से स्पष्ट ही नहीं हो रहे हैं. कमसेकम मेरे साथ…</p>
<p>आदरणीय श्याम नारायणजी, आपकी यह ग़ज़ल आजकी त्रासदी और परिस्थितियों को समेटे दर्शन शास्त्र के इंगितों और विन्दुओं को साथ लिये सरस प्रवाह के साथ सामने आयी है. आजकी घड़ी आशान्वित कम किन्तु विकल अधिक कर रही है. कविकर्म प्रभावित न हो ऐसा हो ही नहीं सकता.</p>
<p>आपकी प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद और अनेकानेक शुभकामनाएँ. <br/><br/>अब शेर दर शेर देखा जाय तो शिल्प के लिहाज से कई कमियाँ मात्र ध्यान न देने के कारण रह गयी हैं. तो कई काफ़िया अपने अर्थ के लिहाज से स्पष्ट ही नहीं हो रहे हैं. कमसेकम मेरे साथ तो यही हो रहा है कि काफ़िया में कुछ शब्दों के अर्थ अस्पष्ट हैं. <br/><br/>कोई दबा घर में कहीं आशा लगाये और का |<br/>इस जिंदगी का क्या भरोसा ये मुद्दा है गौर का |.. ...... इस जिंदगी का क्या भरोसा विन्दु है ये गौर का.. मुद्दा अपने स्थान सही नहीं आ रहा है. <br/><br/>बारिश कहीं आँधी कहीं आकर गिराये घर नगर ,<br/>अपना नहीं ज़िंदा बचा सोचा नहीं इस दौर का |........... सानी को और स्पष्ट होना आवश्यक है. यह शेर प्रासंगिक है. <br/><br/>कुदरत करे ये खेल कैसा जान लेकर छोड़ता ,<br/>ठोकर कहीं धक्का कहीं आशा नहीं है ठौर का |...............’कुदरत’ स्त्रीलिंग है आदरणीय. एक अच्छा शेर व्याकरण दोष की भेंट चढ़ गया.<br/><br/>नाजुक कली कैसे बचे माली लगाये मार जब ,<br/>कोई बचे कैसे कहीं कुदरत हिलाये कौर का |................ कुदरत हिलाये कौर का ? इसके क्या माने हुए ? <br/><br/>जब साँस है तब आश है फिर है जहाँ की खुशी ,<br/>ये जिंदगी कैसे रुके जब आश ना हो मौर का |.................... उला में जहां की के बाद एक द्विकल छूट गया है. फिर काफ़िया ’मौर’ का के क्या माने ?<br/><br/>देता सहारा कोई जब जीवन बचा भी हो कहीं ,<br/>वर्मा गया कोई जहाँ से फिर कहाँ वो और का |....... ........... एक्ज बहुत अच्छी सोच कहन में न ढल पायी. उला को और साधने कीआवश्यकता है. <br/><br/>आदरणीय आप एक अरसे से मंच पर हैं लेकिन आपकी उपस्थिति जाने क्यों अत्यंत निर्लिप्त-सी प्रतीत होती है. देखते-देखते आपके इस प्रिय मंच ने कई अच्छे रचनाकारों को समृद्ध कर दिया है. आपसे सादर अपेक्षा है कि आपकी एकनिष्ठ संलग्नता प्रभावी एवं उपयोगी बने.</p>
<p><br/>इस सुन्दर हो सकती प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाइयाँ. <br/> </p> दार्शनिक ग़जल हुई है.. सोचने…tag:openbooks.ning.com,2015-05-01:5170231:Comment:6496302015-05-01T12:32:57.072ZMAHIMA SHREEhttp://openbooks.ning.com/profile/MAHIMASHREE
<p>दार्शनिक ग़जल हुई है.. सोचने को विवश करती..बधाई</p>
<p>दार्शनिक ग़जल हुई है.. सोचने को विवश करती..बधाई</p> आदरणीय श्याम जी बेहतरीन ग़ज़ल ह…tag:openbooks.ning.com,2015-05-01:5170231:Comment:6497132015-05-01T12:15:49.791Zमिथिलेश वामनकरhttp://openbooks.ning.com/profile/mw
आदरणीय श्याम जी बेहतरीन ग़ज़ल हेतु हार्दिक बधाई।<br />
इस बह्र में शब्द रुक्न में ही ख़त्म हो जाए तो ग़ज़ल खिल उठती है<br />
जय राम जी, बस मैं कहूँ, जय राम जी बस मैं करूँ।
आदरणीय श्याम जी बेहतरीन ग़ज़ल हेतु हार्दिक बधाई।<br />
इस बह्र में शब्द रुक्न में ही ख़त्म हो जाए तो ग़ज़ल खिल उठती है<br />
जय राम जी, बस मैं कहूँ, जय राम जी बस मैं करूँ। जनाब श्याम नारायण वर्मा जी,आद…tag:openbooks.ning.com,2015-05-01:5170231:Comment:6494002015-05-01T10:20:38.935ZSamar kabeerhttp://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
जनाब श्याम नारायण वर्मा जी,आदाब,अच्छी ग़ज़ल के लिये दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं |
जनाब श्याम नारायण वर्मा जी,आदाब,अच्छी ग़ज़ल के लिये दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं | आदरणीय श्याम भाई , त्रासदी पर…tag:openbooks.ning.com,2015-05-01:5170231:Comment:6494142015-05-01T06:57:33.995Zगिरिराज भंडारीhttp://openbooks.ning.com/profile/girirajbhandari
<p>आदरणीय श्याम भाई , त्रासदी पर अच्छी गज़ल हुई है , आपको हार्दिक बधाइयाँ गज़ल के लिये ॥</p>
<p>आदरणीय श्याम भाई , त्रासदी पर अच्छी गज़ल हुई है , आपको हार्दिक बधाइयाँ गज़ल के लिये ॥</p>