Comments - गज़ल,,,,,, - Open Books Online2024-03-29T12:08:17Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A636826&xn_auth=noआदरणीय राज भाई , बहुत बढिया ग…tag:openbooks.ning.com,2015-04-02:5170231:Comment:6373912015-04-02T07:42:19.838Zगिरिराज भंडारीhttp://openbooks.ning.com/profile/girirajbhandari
<p>आदरणीय राज भाई , बहुत बढिया गज़ल कही है , सभी अश आर के लिये दिली बधाइयाँ ॥</p>
<p>आदरणीय राज भाई , बहुत बढिया गज़ल कही है , सभी अश आर के लिये दिली बधाइयाँ ॥</p> चलीं हैं आँधियाँ कैसी बुझानॆ…tag:openbooks.ning.com,2015-04-02:5170231:Comment:6370882015-04-02T00:10:09.571ZMohan Sethi 'इंतज़ार'http://openbooks.ning.com/profile/MohanSethi
<p><span>चलीं हैं आँधियाँ कैसी बुझानॆ अब चिराग़ॊं कॊ,</span><br/><span>कभी सॊचा नहीं उन नॆं अँधॆरा स्याह काला है </span></p>
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<p>बहुत खूब कहा आपने आदरणीय</p>
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<p><span>चलीं हैं आँधियाँ कैसी बुझानॆ अब चिराग़ॊं कॊ,</span><br/><span>कभी सॊचा नहीं उन नॆं अँधॆरा स्याह काला है </span></p>
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<p>बहुत खूब कहा आपने आदरणीय</p>
<p> </p> आदरणीय राज बुन्देली जी शानदार…tag:openbooks.ning.com,2015-04-01:5170231:Comment:6370762015-04-01T18:25:18.541Zमिथिलेश वामनकरhttp://openbooks.ning.com/profile/mw
<p>आदरणीय राज बुन्देली जी शानदार ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई </p>
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<p>आदरणीय राज बुन्देली जी शानदार ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई </p>
<p></p> सियासी इल्म यॆ अपनी समझ मॆं ह…tag:openbooks.ning.com,2015-04-01:5170231:Comment:6369982015-04-01T15:45:59.647ZMAHIMA SHREEhttp://openbooks.ning.com/profile/MAHIMASHREE
<p><span>सियासी इल्म यॆ अपनी समझ मॆं ही नहीं आया,</span><br/><span>कभी पूजा हमॆं तुमनॆं कभी दिल सॆ निकाला है !!</span><br/><br/><span>ख़िलाफ़त मॆं खड़ॆ जुगनू कहॆं अब ‘राज’ है अपना, </span><br/><span>हमारी क़ैद मॆं बन्दी हुआ इस दम उजाला है !!...वाह... शानदार... बधाई</span></p>
<p><span>सियासी इल्म यॆ अपनी समझ मॆं ही नहीं आया,</span><br/><span>कभी पूजा हमॆं तुमनॆं कभी दिल सॆ निकाला है !!</span><br/><br/><span>ख़िलाफ़त मॆं खड़ॆ जुगनू कहॆं अब ‘राज’ है अपना, </span><br/><span>हमारी क़ैद मॆं बन्दी हुआ इस दम उजाला है !!...वाह... शानदार... बधाई</span></p> आ० राज बुन्देली जी
बहुत अच्छी…tag:openbooks.ning.com,2015-04-01:5170231:Comment:6368822015-04-01T08:13:39.105Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttp://openbooks.ning.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>आ० राज बुन्देली जी</p>
<p>बहुत अच्छी गजल है . आपने जान फूंक दी है . सादर .</p>
<p>आ० राज बुन्देली जी</p>
<p>बहुत अच्छी गजल है . आपने जान फूंक दी है . सादर .</p> ख़िलाफ़त मॆं खड़ॆ जुगनू कहॆं अब…tag:openbooks.ning.com,2015-04-01:5170231:Comment:6369512015-04-01T05:21:52.704ZDr. Vijai Shankerhttp://openbooks.ning.com/profile/DrVijaiShanker
ख़िलाफ़त मॆं खड़ॆ जुगनू कहॆं अब ‘राज’ है अपना,<br />
हमारी क़ैद मॆं बन्दी हुआ इस दम उजाला है !!<br />
बहुत खूब , बधाई , आदरणीय राज बुंदेली जी , सादर।
ख़िलाफ़त मॆं खड़ॆ जुगनू कहॆं अब ‘राज’ है अपना,<br />
हमारी क़ैद मॆं बन्दी हुआ इस दम उजाला है !!<br />
बहुत खूब , बधाई , आदरणीय राज बुंदेली जी , सादर। ख़िलाफ़त मॆं खड़ॆ जुगनू कहॆं अब…tag:openbooks.ning.com,2015-04-01:5170231:Comment:6368372015-04-01T04:28:07.186ZSushil Sarnahttp://openbooks.ning.com/profile/SushilSarna
<p>ख़िलाफ़त मॆं खड़ॆ जुगनू कहॆं अब ‘राज’ है अपना, <br/>हमारी क़ैद मॆं बन्दी हुआ इस दम उजाला है !! (७)<br/>वाह वाह वाह .... कितनी भी तारीफ़ करूँ रुकती नहीं जुबां ,कितनी हसीं बना दी आपने एहसासों की बस्तियां … आदरणीय बुंदेली जी इस दिलकश और खूबसूरत शे'रों के गुलदस्ते की प्रस्तुति पर हार्दिक हार्दिक बधाई कबूल फरमाएं।</p>
<p>ख़िलाफ़त मॆं खड़ॆ जुगनू कहॆं अब ‘राज’ है अपना, <br/>हमारी क़ैद मॆं बन्दी हुआ इस दम उजाला है !! (७)<br/>वाह वाह वाह .... कितनी भी तारीफ़ करूँ रुकती नहीं जुबां ,कितनी हसीं बना दी आपने एहसासों की बस्तियां … आदरणीय बुंदेली जी इस दिलकश और खूबसूरत शे'रों के गुलदस्ते की प्रस्तुति पर हार्दिक हार्दिक बधाई कबूल फरमाएं।</p>