Comments - गजल ,वो मुझे एकटक देखती रह गई - Open Books Online2024-03-28T09:25:37Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A631556&xn_auth=nogumnaam,ji धन्यवादtag:openbooks.ning.com,2015-03-20:5170231:Comment:6327412015-03-20T12:14:44.945Zसूबे सिंह सुजानhttp://openbooks.ning.com/profile/2fvsz8v20bb3q
gumnaam,ji धन्यवाद
gumnaam,ji धन्यवाद आदरणीय सूबे सिंह सूजान जी, इस…tag:openbooks.ning.com,2015-03-18:5170231:Comment:6320642015-03-18T15:37:56.189ZHari Prakash Dubeyhttp://openbooks.ning.com/profile/HariPrakashDubey
<p><span>आदरणीय सूबे सिंह सूजान जी, इस सुन्दर रचना पर बधाई प्रेषित ! सादर </span></p>
<p><span>आदरणीय सूबे सिंह सूजान जी, इस सुन्दर रचना पर बधाई प्रेषित ! सादर </span></p> आदरणीय सूबे सिंह जी सुन्दर ग़ज़…tag:openbooks.ning.com,2015-03-18:5170231:Comment:6322202015-03-18T14:55:07.204Zमिथिलेश वामनकरhttp://openbooks.ning.com/profile/mw
<p>आदरणीय सूबे सिंह जी सुन्दर ग़ज़ल हेतु हार्दिक बधाई </p>
<p>आदरणीय गिरिराज सर की सलाह अच्छी है उससे मैं भी सहमत हूँ.</p>
<p>एक निवेदन है ग़ज़ल की बह्र का वज्न 212x4 अवश्य लिख दे </p>
<p>आदरणीय सूबे सिंह जी सुन्दर ग़ज़ल हेतु हार्दिक बधाई </p>
<p>आदरणीय गिरिराज सर की सलाह अच्छी है उससे मैं भी सहमत हूँ.</p>
<p>एक निवेदन है ग़ज़ल की बह्र का वज्न 212x4 अवश्य लिख दे </p> मंजिलों की तरफ दौड़ते -दौड़ते…tag:openbooks.ning.com,2015-03-18:5170231:Comment:6319462015-03-18T13:30:56.606Zsomesh kumarhttp://openbooks.ning.com/profile/someshkuar
<p><span>मंजिलों की तरफ दौड़ते -दौड़ते,</span><br/><span>जिंदगी कट गई बेबसी रह गई</span></p>
<p>सुंदर शे'रों के जरिए कुछ सम्वेदनाओं और कुछ जीवन-सत्यों को बहुत सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया आप ने ,बधाई </p>
<p><span>मंजिलों की तरफ दौड़ते -दौड़ते,</span><br/><span>जिंदगी कट गई बेबसी रह गई</span></p>
<p>सुंदर शे'रों के जरिए कुछ सम्वेदनाओं और कुछ जीवन-सत्यों को बहुत सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया आप ने ,बधाई </p> आदरनीय सूबे सिंह भाई , बहुर स…tag:openbooks.ning.com,2015-03-18:5170231:Comment:6317042015-03-18T12:18:37.832Zगिरिराज भंडारीhttp://openbooks.ning.com/profile/girirajbhandari
<p>आदरनीय सूबे सिंह भाई , बहुर सुन्दर गज़ल हुई है , हार्दिक बधाइयाँ आपको ॥</p>
<p></p>
<p>वो हवा हो गई एक पल में कंही<br/> मुस्कुराहट यहाँ गूँजती रह गई ---- इस शे र में ,<strong>मुस्कुराहट</strong> की जगह <strong>खिलखिलाहट</strong> क्या अच्छा नहीं रहेगा ? क्योंकि आगे बात गूंजने की हो रही है ॥</p>
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<p>आदरनीय सूबे सिंह भाई , बहुर सुन्दर गज़ल हुई है , हार्दिक बधाइयाँ आपको ॥</p>
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<p>वो हवा हो गई एक पल में कंही<br/> मुस्कुराहट यहाँ गूँजती रह गई ---- इस शे र में ,<strong>मुस्कुराहट</strong> की जगह <strong>खिलखिलाहट</strong> क्या अच्छा नहीं रहेगा ? क्योंकि आगे बात गूंजने की हो रही है ॥</p>
<p></p> सुंदर रचना के लिए बधाई ......…tag:openbooks.ning.com,2015-03-18:5170231:Comment:6317022015-03-18T12:11:06.107Zgumnaam pithoragarhihttp://openbooks.ning.com/profile/gumnaampithoragarhi
<p>सुंदर रचना के लिए बधाई ...........................</p>
<p></p>
<p>सुंदर रचना के लिए बधाई ...........................</p>
<p></p> Shyam mathpal,जी आपका स्वागत…tag:openbooks.ning.com,2015-03-18:5170231:Comment:6316832015-03-18T07:52:16.007Zसूबे सिंह सुजानhttp://openbooks.ning.com/profile/2fvsz8v20bb3q
Shyam mathpal,जी आपका स्वागत है,बहुत बहुत धन्यवाद
Shyam mathpal,जी आपका स्वागत है,बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय विजयी शंकर जी,आपकी मेह…tag:openbooks.ning.com,2015-03-18:5170231:Comment:6316822015-03-18T07:51:11.969Zसूबे सिंह सुजानhttp://openbooks.ning.com/profile/2fvsz8v20bb3q
आदरणीय विजयी शंकर जी,आपकी मेहरबानी है,बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय विजयी शंकर जी,आपकी मेहरबानी है,बहुत बहुत शुक्रिया Shyam narayan sharma,जी आपकी…tag:openbooks.ning.com,2015-03-18:5170231:Comment:6318902015-03-18T07:49:35.334Zसूबे सिंह सुजानhttp://openbooks.ning.com/profile/2fvsz8v20bb3q
Shyam narayan sharma,जी आपकी जरर्रानवाजी है,धन्यवाद
Shyam narayan sharma,जी आपकी जरर्रानवाजी है,धन्यवाद वो हवा हो गई एक पल में कंही…tag:openbooks.ning.com,2015-03-18:5170231:Comment:6318862015-03-18T06:53:09.840Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttp://openbooks.ning.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p><br/> वो हवा हो गई एक पल में कंही<br/> मुस्कुराहट यहाँ गूँजती रह गई<br/><br/> मंजिलों की तरफ दौड़ते -दौड़ते,<br/>जिंदगी कट गई बेबसी रह गई------------------सुन्दर रचना आ० सुजान जी .</p>
<p><br/> वो हवा हो गई एक पल में कंही<br/> मुस्कुराहट यहाँ गूँजती रह गई<br/><br/> मंजिलों की तरफ दौड़ते -दौड़ते,<br/>जिंदगी कट गई बेबसी रह गई------------------सुन्दर रचना आ० सुजान जी .</p>