Comments - धुंध का परदा हटाओ - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' - Open Books Online2024-03-28T14:38:48Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A621194&xn_auth=noआ0 प्रबुद्ध जानो का ग़ज़ल पर…tag:openbooks.ning.com,2015-03-08:5170231:Comment:6279382015-03-08T07:14:32.178Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ0 प्रबुद्ध जानो का ग़ज़ल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए कोटि कोटि धन्यवाद . आशा है स्नेह बनाए रखेंगे </p>
<p>आ0 प्रबुद्ध जानो का ग़ज़ल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए कोटि कोटि धन्यवाद . आशा है स्नेह बनाए रखेंगे </p> सुन्दर सार्थक ग़ज़ल लिखी है बहु…tag:openbooks.ning.com,2015-02-26:5170231:Comment:6227342015-02-26T14:12:57.514Zrajesh kumarihttp://openbooks.ning.com/profile/rajeshkumari
<p>सुन्दर सार्थक ग़ज़ल लिखी है बहुत बढ़िया ...हार्दिक बधाई आ० लक्ष्मण भैया </p>
<p>सुन्दर सार्थक ग़ज़ल लिखी है बहुत बढ़िया ...हार्दिक बधाई आ० लक्ष्मण भैया </p> बहुत सुन्दर रचना सन्देश के सा…tag:openbooks.ning.com,2015-02-26:5170231:Comment:6227262015-02-26T13:47:18.080ZJAWAHAR LAL SINGHhttp://openbooks.ning.com/profile/JAWAHARLALSINGH
<p>बहुत सुन्दर रचना सन्देश के साथ ...अभिनन्दन आपका धामी साहब!</p>
<p>बहुत सुन्दर रचना सन्देश के साथ ...अभिनन्दन आपका धामी साहब!</p> यूँ अँधेरों की तिजारत करके…tag:openbooks.ning.com,2015-02-26:5170231:Comment:6222822015-02-26T04:27:10.056Zkhursheed khairadihttp://openbooks.ning.com/profile/khursheedkhairadi
<p><span>यूँ अँधेरों की तिजारत करके हासिल क्या हुआ</span><br/><span>होश में आओ जरा अब रौशनी बाँटा करो</span></p>
<p>आदरणीय लक्ष्मण सर ,उम्दा ग़ज़ल हुई है |हार्दिक बधाई स्वीकार करें साहब |मतला काफ़ी पसंद आया साहब ,,सादर अभिनन्दन |</p>
<p><span>यूँ अँधेरों की तिजारत करके हासिल क्या हुआ</span><br/><span>होश में आओ जरा अब रौशनी बाँटा करो</span></p>
<p>आदरणीय लक्ष्मण सर ,उम्दा ग़ज़ल हुई है |हार्दिक बधाई स्वीकार करें साहब |मतला काफ़ी पसंद आया साहब ,,सादर अभिनन्दन |</p> आदरनीय लक्ष्मण भाई , बहुत अच्…tag:openbooks.ning.com,2015-02-25:5170231:Comment:6223582015-02-25T17:07:21.479Zगिरिराज भंडारीhttp://openbooks.ning.com/profile/girirajbhandari
<p>आदरनीय लक्ष्मण भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है , हर शे र मे एक संदेश है । आपको हार्दिक बधाई ॥ आ. मिथिलेश भाई की बात से मै भी सहमत हूँ , एक बार सोच लीजियेगा ।</p>
<p>आदरनीय लक्ष्मण भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है , हर शे र मे एक संदेश है । आपको हार्दिक बधाई ॥ आ. मिथिलेश भाई की बात से मै भी सहमत हूँ , एक बार सोच लीजियेगा ।</p> आदरणीय लक्ष्मण धामी सर जी उम्…tag:openbooks.ning.com,2015-02-25:5170231:Comment:6221582015-02-25T14:06:30.257Zमिथिलेश वामनकरhttp://openbooks.ning.com/profile/mw
आदरणीय लक्ष्मण धामी सर जी उम्दा ग़ज़ल हुई है । शेर दर शेर दिल से दाद कुबूल फरमाये।<br />
सभी अशआर बेहतरीन हुए है। एक निवेदन यदि आपको उचित लगे तो...<br />
<br />
सूर्य के तुम वंशजों सब छोड़ दो मायूसियाँ।<br />
में के स्थान पर सब। सादर।
आदरणीय लक्ष्मण धामी सर जी उम्दा ग़ज़ल हुई है । शेर दर शेर दिल से दाद कुबूल फरमाये।<br />
सभी अशआर बेहतरीन हुए है। एक निवेदन यदि आपको उचित लगे तो...<br />
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सूर्य के तुम वंशजों सब छोड़ दो मायूसियाँ।<br />
में के स्थान पर सब। सादर। यूँ अँधेरों की तिजारत करके हा…tag:openbooks.ning.com,2015-02-25:5170231:Comment:6221562015-02-25T13:52:43.587ZSushil Sarnahttp://openbooks.ning.com/profile/SushilSarna
<p>यूँ अँधेरों की तिजारत करके हासिल क्या हुआ<br/>होश में आओ जरा अब रौशनी बाँटा करो .... वाह आदरणीय वाह क्या गज़ब की बात कह गए .... सलाम आपकी कलम और कल्पना को … हार्दिक बधाई कबूल फरमाएं सर।</p>
<p>यूँ अँधेरों की तिजारत करके हासिल क्या हुआ<br/>होश में आओ जरा अब रौशनी बाँटा करो .... वाह आदरणीय वाह क्या गज़ब की बात कह गए .... सलाम आपकी कलम और कल्पना को … हार्दिक बधाई कबूल फरमाएं सर।</p> एक और उम्दा गजल पर आपको पुनः…tag:openbooks.ning.com,2015-02-25:5170231:Comment:6222452015-02-25T12:40:02.738Zmaharshi tripathihttp://openbooks.ning.com/profile/maharshitripathi815
<p>एक और उम्दा गजल पर आपको पुनः बधाई आ, मुसाफिर जी |</p>
<p>एक और उम्दा गजल पर आपको पुनः बधाई आ, मुसाफिर जी |</p> धामी जी
आपकी गजल मुझे बहुत अ…tag:openbooks.ning.com,2015-02-25:5170231:Comment:6222312015-02-25T11:19:57.658Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttp://openbooks.ning.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>धामी जी</p>
<p>आपकी गजल मुझे बहुत अच्छी लगी i सादर i</p>
<p>धामी जी</p>
<p>आपकी गजल मुझे बहुत अच्छी लगी i सादर i</p> यूँ अँधेरों की तिजारत करके हा…tag:openbooks.ning.com,2015-02-25:5170231:Comment:6222262015-02-25T09:14:28.377ZPari M Shlokhttp://openbooks.ning.com/profile/PariMShlok
यूँ अँधेरों की तिजारत करके हासिल क्या हुआ<br />
होश में आओ जरा अब रौशनी बाँटा करो<br />
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सूर्य के तुम वंशजों में छोड़ दो मायूसियाँ<br />
त्याग दो जीवन भले ही तम को मत पूजा करो<br />
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सुन्दर ग़ज़ल..... आदरणीय लक्षमण धामी जी.. बधाई
यूँ अँधेरों की तिजारत करके हासिल क्या हुआ<br />
होश में आओ जरा अब रौशनी बाँटा करो<br />
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सूर्य के तुम वंशजों में छोड़ दो मायूसियाँ<br />
त्याग दो जीवन भले ही तम को मत पूजा करो<br />
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सुन्दर ग़ज़ल..... आदरणीय लक्षमण धामी जी.. बधाई