Comments - वजूद - Open Books Online2024-03-28T21:17:34Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A612244&xn_auth=noबहुत बहुत आभार आदरणीय शरदिंदु…tag:openbooks.ning.com,2015-02-03:5170231:Comment:6138472015-02-03T06:38:36.295Zविनय कुमारhttp://openbooks.ning.com/profile/vinayakumarsingh
<p>बहुत बहुत आभार आदरणीय शरदिंदु मुखेर्जी जी ..</p>
<p>बहुत बहुत आभार आदरणीय शरदिंदु मुखेर्जी जी ..</p> बहुत ही प्रासंगिक और संवेदनशी…tag:openbooks.ning.com,2015-02-02:5170231:Comment:6137792015-02-02T19:52:52.126Zsharadindu mukerjihttp://openbooks.ning.com/profile/sharadindumukerji
बहुत ही प्रासंगिक और संवेदनशील है इस रचना का विषयवस्तु. आपकी उन्नत सोच के लिए आप नि:संदेह प्रशंसा के पात्र हैं आदरणीय विनय जी.
बहुत ही प्रासंगिक और संवेदनशील है इस रचना का विषयवस्तु. आपकी उन्नत सोच के लिए आप नि:संदेह प्रशंसा के पात्र हैं आदरणीय विनय जी. बहुत बहुत आभार आदरणीय योगराज…tag:openbooks.ning.com,2015-02-02:5170231:Comment:6134962015-02-02T10:58:26.805Zविनय कुमारhttp://openbooks.ning.com/profile/vinayakumarsingh
<p>बहुत बहुत आभार आदरणीय योगराज प्रभाकर जी | आपकी विस्तृत टिप्पणी पाकर मन प्रसन्न हुआ | आपकी राय बिलकुल सही है ..</p>
<p>बहुत बहुत आभार आदरणीय योगराज प्रभाकर जी | आपकी विस्तृत टिप्पणी पाकर मन प्रसन्न हुआ | आपकी राय बिलकुल सही है ..</p> निज पहचान को खोती हुई मध्यवर्…tag:openbooks.ning.com,2015-02-02:5170231:Comment:6136342015-02-02T09:23:45.917Zयोगराज प्रभाकरhttp://openbooks.ning.com/profile/YograjPrabhakar
<p>निज पहचान को खोती हुई मध्यवर्गीय गृहणी की व्यथा को सुन्दर शब्दों में पिरोया है भाई विनय सिंह जी। लघुकथा सुन्दर हुई है, किन्तु इसका अंत कहीं बेहतर हो सकता था। मुझे हमसूस हो रहा है कि कहानी के अंत में श्रीमती शर्मा का खामोश रहना और बिना कुछ कहे-सुने पड़ोसन का वापिस लौट जाना, ज़रूर कमी की तरफ इशारा नहीं कर रहा है। क्या यहाँ "वजूद गुम हो जाने" के दर्द को थोड़ा और विस्तार नहीं दिया जाना चाहिए था ? मसलन, श्रीमती शर्मा को ऊहापोह में पड़े देखते हुए यदि नई पड़ोसन ये कह दे कि "ठीक है, मैं आज से आपको…</p>
<p>निज पहचान को खोती हुई मध्यवर्गीय गृहणी की व्यथा को सुन्दर शब्दों में पिरोया है भाई विनय सिंह जी। लघुकथा सुन्दर हुई है, किन्तु इसका अंत कहीं बेहतर हो सकता था। मुझे हमसूस हो रहा है कि कहानी के अंत में श्रीमती शर्मा का खामोश रहना और बिना कुछ कहे-सुने पड़ोसन का वापिस लौट जाना, ज़रूर कमी की तरफ इशारा नहीं कर रहा है। क्या यहाँ "वजूद गुम हो जाने" के दर्द को थोड़ा और विस्तार नहीं दिया जाना चाहिए था ? मसलन, श्रीमती शर्मा को ऊहापोह में पड़े देखते हुए यदि नई पड़ोसन ये कह दे कि "ठीक है, मैं आज से आपको "ऑन्टी" बुलाऊँगी !" और इसके बाद वो अपना खोया वजूद ढूंढे तो कैसा रहे ? ज़रा सोच कर देखें।</p> बहुत बहुत आभार आदरणीय सोमेश क…tag:openbooks.ning.com,2015-02-01:5170231:Comment:6135352015-02-01T13:46:57.712Zविनय कुमारhttp://openbooks.ning.com/profile/vinayakumarsingh
<p><span>बहुत बहुत आभार आदरणीय सोमेश कुमार</span><span> जी..</span></p>
<p><span>बहुत बहुत आभार आदरणीय सोमेश कुमार</span><span> जी..</span></p> nari jivan ka sunder ytharthtag:openbooks.ning.com,2015-02-01:5170231:Comment:6135222015-02-01T09:36:57.015Zsomesh kumarhttp://openbooks.ning.com/profile/someshkuar
<p>nari jivan ka sunder ytharth</p>
<p>nari jivan ka sunder ytharth</p> बहुत बहुत आभार आदरणीय शिज्जु…tag:openbooks.ning.com,2015-02-01:5170231:Comment:6132892015-02-01T06:25:48.518Zविनय कुमारhttp://openbooks.ning.com/profile/vinayakumarsingh
<p>बहुत बहुत आभार आदरणीय <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/ShijjuS" class="fn url">शिज्जु "शकूर"</a> जी.. </p>
<p>बहुत बहुत आभार आदरणीय <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/ShijjuS" class="fn url">शिज्जु "शकूर"</a> जी.. </p> आदरणीय विनय जी आपने एक अनछुये…tag:openbooks.ning.com,2015-02-01:5170231:Comment:6131832015-02-01T03:50:13.181Zशिज्जु "शकूर"http://openbooks.ning.com/profile/ShijjuS
<p>आदरणीय विनय जी आपने एक अनछुये पहलू को उभारा है, बधाई इस लघुकथा के लिये</p>
<p>आदरणीय विनय जी आपने एक अनछुये पहलू को उभारा है, बधाई इस लघुकथा के लिये</p> बहुत बहुत आभार आदरणीय श्याम म…tag:openbooks.ning.com,2015-01-31:5170231:Comment:6131262015-01-31T11:36:07.299Zविनय कुमारhttp://openbooks.ning.com/profile/vinayakumarsingh
<p>बहुत बहुत आभार आदरणीय श्याम मठपाल जी..</p>
<p>बहुत बहुत आभार आदरणीय श्याम मठपाल जी..</p> Aadarniya vinay ji,
Badhai H…tag:openbooks.ning.com,2015-01-31:5170231:Comment:6129612015-01-31T09:48:50.065ZShyam Mathpalhttp://openbooks.ning.com/profile/ShyamMathpal
<p>Aadarniya vinay ji,</p>
<p></p>
<p>Badhai Ho. Apna ghar dhunte huwe apna wajud bhool gaye</p>
<p>Aadarniya vinay ji,</p>
<p></p>
<p>Badhai Ho. Apna ghar dhunte huwe apna wajud bhool gaye</p>