Comments - गीत - Open Books Online2024-03-28T20:53:14Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A595531&xn_auth=noबहुत ही सुन्दर रचना आदरणीया म…tag:openbooks.ning.com,2015-01-29:5170231:Comment:6121722015-01-29T14:40:43.447ZHari Prakash Dubeyhttp://openbooks.ning.com/profile/HariPrakashDubey
<p>बहुत ही सुन्दर रचना आदरणीया मंजरीजी...</p>
<p>गाँव की पगडण्डी वो छूटी , पानी पनघट छूट गया</p>
<p>खेतवारी बँसवारी छूटी, बचपन कोई लूट गया</p>
<p>भर अँकवारी रोई दुआरी ,नइहर मोरा छूट गया ।..... बहुत बहुत बधाई ! सादर </p>
<p>बहुत ही सुन्दर रचना आदरणीया मंजरीजी...</p>
<p>गाँव की पगडण्डी वो छूटी , पानी पनघट छूट गया</p>
<p>खेतवारी बँसवारी छूटी, बचपन कोई लूट गया</p>
<p>भर अँकवारी रोई दुआरी ,नइहर मोरा छूट गया ।..... बहुत बहुत बधाई ! सादर </p> बहुत मीठा सुन्दर गीत वाह!tag:openbooks.ning.com,2015-01-25:5170231:Comment:6104822015-01-25T06:59:26.537ZRahul Dangi Panchalhttp://openbooks.ning.com/profile/RahulDangi
बहुत मीठा सुन्दर गीत वाह!
बहुत मीठा सुन्दर गीत वाह! आपके गीत मेरे मन को छू गया ,…tag:openbooks.ning.com,2015-01-24:5170231:Comment:6101972015-01-24T15:43:12.696ZRam Asheryhttp://openbooks.ning.com/profile/RamAshery918
<p>आपके गीत मेरे मन को छू गया ,</p>
<p>बचपन की याद आज ताजी हो गई </p>
<p>कोई साथी किसी मोड पर मिल गया </p>
<p>गाँव गली छोड़ मैं शहर में बस गया</p>
<p>माँ बाप भाई बहन सबकी यादें रह गई</p>
<p>क्या करें मजबूर हैं बस अकेला रह गया </p>
<p>आपको बहुत बहुत बधाई स्वीकार हो </p>
<p>आपके गीत मेरे मन को छू गया ,</p>
<p>बचपन की याद आज ताजी हो गई </p>
<p>कोई साथी किसी मोड पर मिल गया </p>
<p>गाँव गली छोड़ मैं शहर में बस गया</p>
<p>माँ बाप भाई बहन सबकी यादें रह गई</p>
<p>क्या करें मजबूर हैं बस अकेला रह गया </p>
<p>आपको बहुत बहुत बधाई स्वीकार हो </p> पारम्परिक गीतों में जिस गहराई…tag:openbooks.ning.com,2014-12-19:5170231:Comment:5960042014-12-19T18:48:14.344ZSaurabh Pandeyhttp://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>पारम्परिक गीतों में जिस गहराई से बिछोह का दर्द उमड़ा आता है वह विस्मित करता है. आदरणीया मंजरीजी, आपके प्रस्तुत गीत ने ग्रामीण अंचल की मधुरता को साझा किया है, जहाँ भले लोगों की छोटी-छोटी इच्छाओं की तृप्ति से रस पाती भोली-भाली दुनिया बसा करती थी. <br/>हार्दिक बधाइयाँ.<br/><br/></p>
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<p>पारम्परिक गीतों में जिस गहराई से बिछोह का दर्द उमड़ा आता है वह विस्मित करता है. आदरणीया मंजरीजी, आपके प्रस्तुत गीत ने ग्रामीण अंचल की मधुरता को साझा किया है, जहाँ भले लोगों की छोटी-छोटी इच्छाओं की तृप्ति से रस पाती भोली-भाली दुनिया बसा करती थी. <br/>हार्दिक बधाइयाँ.<br/><br/></p>
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<div style="display: none;" id="__hggasdgjhsagd_once"></div> देसज शब्दों के साथ ,छुटने की…tag:openbooks.ning.com,2014-12-19:5170231:Comment:5962032014-12-19T18:15:03.292Zsomesh kumarhttp://openbooks.ning.com/profile/someshkuar
<p>देसज शब्दों के साथ ,छुटने की इस पीड़ा को बड़ी सुन्दरता से शब्द दिए हैं आप ने ,बधाई !</p>
<p>देसज शब्दों के साथ ,छुटने की इस पीड़ा को बड़ी सुन्दरता से शब्द दिए हैं आप ने ,बधाई !</p> आदरणीय अजय शर्मा जी सारगर्भित…tag:openbooks.ning.com,2014-12-19:5170231:Comment:5959762014-12-19T14:38:25.793Zmrs manjari pandeyhttp://openbooks.ning.com/profile/mrsmanjaripandey
आदरणीय अजय शर्मा जी सारगर्भित टिप्पणी के लिए आभारी हूँ ।
आदरणीय अजय शर्मा जी सारगर्भित टिप्पणी के लिए आभारी हूँ । पाही पलानी मौन हुए मड़ई से छप…tag:openbooks.ning.com,2014-12-18:5170231:Comment:5957842014-12-18T19:15:31.299Zमिथिलेश वामनकरhttp://openbooks.ning.com/profile/mw
<p><span>पाही पलानी मौन हुए मड़ई से छप्पर रूठ गया</span><br/><span>सोन चिरईया फुर्र हो गयी कोकिल का स्वर रूठ गया</span><br/><span>साँझ से जैसे दियना रूठे बचपन मुझसे छूट गया ।</span></p>
<p></p>
<p>सुन्दर रचना ... बहुत बहुत बधाई आपको </p>
<p><span>पाही पलानी मौन हुए मड़ई से छप्पर रूठ गया</span><br/><span>सोन चिरईया फुर्र हो गयी कोकिल का स्वर रूठ गया</span><br/><span>साँझ से जैसे दियना रूठे बचपन मुझसे छूट गया ।</span></p>
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<p>सुन्दर रचना ... बहुत बहुत बधाई आपको </p> साँझ से जैसे दियना रूठे बचपन…tag:openbooks.ning.com,2014-12-18:5170231:Comment:5957712014-12-18T17:30:14.590Zajay sharmahttp://openbooks.ning.com/profile/ajaysharma234
<p><span>साँझ से जैसे दियना रूठे बचपन मुझसे छूट गया ।,,,,,,,,,,,,,,bahut hi marmik aur pratbinbyukta , bhav praval rachna ne man moh liya wah wah wah.. </span></p>
<p><span>साँझ से जैसे दियना रूठे बचपन मुझसे छूट गया ।,,,,,,,,,,,,,,bahut hi marmik aur pratbinbyukta , bhav praval rachna ne man moh liya wah wah wah.. </span></p>