Comments - मिला जो, कब खुशी उससे समेटी यार लोगों ने - ग़ज़ल - Open Books Online2024-03-28T18:13:45Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A554065&xn_auth=noआपके ग़ज़ल के लिए हार्दिक धन्यव…tag:openbooks.ning.com,2014-07-07:5170231:Comment:5567132014-07-07T12:00:32.715ZSaurabh Pandeyhttp://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आपके ग़ज़ल के लिए हार्दिक धन्यवाद, लक्ष्मण धामी जी. <br></br><br></br>आपकी सोच बहुत ही उन्नत है. जल्दबाजी से बचें और शेरों पर तनिक और समय दें तो बहुत कुछ और भी संयत ढंग से प्रस्तुत किया जा सकता है. ऐसा मेरा मानना है. <br></br><br></br>मतले में ही शुतुर्गुर्बा का ऐब लग रहा है. <br></br><em>जनम से आदमी हो, आदमी क्यों हो नहीं पाया</em> <br></br>यह मिसरा कायदे से ऐसा होना था -</p>
<p><strong>जनम से आदमी हो, आदमी क्यों हो नहीं पाये</strong> <br></br><br></br>लेकिन इसे यों भी किया जा सकता है ताकि ग़ज़ल के रदीफ़ को संतुष्ट कर पाये…</p>
<p>आपके ग़ज़ल के लिए हार्दिक धन्यवाद, लक्ष्मण धामी जी. <br/><br/>आपकी सोच बहुत ही उन्नत है. जल्दबाजी से बचें और शेरों पर तनिक और समय दें तो बहुत कुछ और भी संयत ढंग से प्रस्तुत किया जा सकता है. ऐसा मेरा मानना है. <br/><br/>मतले में ही शुतुर्गुर्बा का ऐब लग रहा है. <br/><em>जनम से आदमी हो, आदमी क्यों हो नहीं पाया</em> <br/>यह मिसरा कायदे से ऐसा होना था -</p>
<p><strong>जनम से आदमी हो, आदमी क्यों हो नहीं पाये</strong> <br/><br/>लेकिन इसे यों भी किया जा सकता है ताकि ग़ज़ल के रदीफ़ को संतुष्ट कर पाये -<br/><strong>जनम से आदमी ही आदमी क्यों हो नहीं पाया.. </strong> अब यह प्रश्न तार्किक भी लगता है. <br/><br/>इस शेर का मुझे कोई अता-पता नहीं मिल पाया -<br/><em>मिला जो, कब खुशी उससे समेटी यार लोगों ने</em><br/><em>उसी का गम जिगर को है जमाने जो नहीं पाया.. ..</em> <br/>अवश्य है, मेरी समझ में बात नहीं आयी है. माफ़ कीजियेगा</p>
<p><br/>इस शेर पर दिल से दाद कुबूल करें, भाईजी -<br/><em>तुझे क्यों खांसना उसका दिनों में भी अखरता है</em><br/><em>पिता जो तेरे बचपन में भरी शब सो नहीं पाया</em><br/><br/>साथ ही मक्ता का तो भाईजी जवाब नहीं है. <br/>बहुत-बहुत बधाई<br/><br/></p> आ० भाई गुमनाम जी , उत्साहवर्ध…tag:openbooks.ning.com,2014-07-02:5170231:Comment:5551112014-07-02T05:02:06.374Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ० भाई गुमनाम जी , उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद l</p>
<p>आ० भाई गुमनाम जी , उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद l</p> आ० भाई विजय निकोर जी ग़ज़ल पर आ…tag:openbooks.ning.com,2014-07-02:5170231:Comment:5551102014-07-02T05:01:25.253Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ० भाई विजय निकोर जी ग़ज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया का अर्थ यही है की लेखन सफल हुआ l स्नेहाशीष बनाये आखें यही कामना है l</p>
<p>आ० भाई विजय निकोर जी ग़ज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया का अर्थ यही है की लेखन सफल हुआ l स्नेहाशीष बनाये आखें यही कामना है l</p> बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है........…tag:openbooks.ning.com,2014-07-01:5170231:Comment:5548462014-07-01T10:59:45.546Zgumnaam pithoragarhihttp://openbooks.ning.com/profile/gumnaampithoragarhi
<p>बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है.................................बधाई,</p>
<p>बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है.................................बधाई,</p> इस अच्छी गज़ल के लिए हार्दिक ब…tag:openbooks.ning.com,2014-07-01:5170231:Comment:5549302014-07-01T10:21:09.935Zvijay nikorehttp://openbooks.ning.com/profile/vijaynikore
<p>इस अच्छी गज़ल के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय लक्ष्मण जी।</p>
<p>इस अच्छी गज़ल के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय लक्ष्मण जी।</p> आ० बृजेश भाई उत्साहवर्धन के ल…tag:openbooks.ning.com,2014-07-01:5170231:Comment:5547272014-07-01T04:39:46.927Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ० बृजेश भाई उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद l <span id="7_TRN_12"><span id="7_TRN_13"><span id="7_TRN_14"><span id="7_TRN_15"><span id="7_TRN_16"><span id="7_TRN_17"><span id="7_TRN_18">स्नेह</span></span></span></span></span></span></span> बनाये रखें l</p>
<p>आ० बृजेश भाई उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद l <span id="7_TRN_12"><span id="7_TRN_13"><span id="7_TRN_14"><span id="7_TRN_15"><span id="7_TRN_16"><span id="7_TRN_17"><span id="7_TRN_18">स्नेह</span></span></span></span></span></span></span> बनाये रखें l</p> आ० भाई गिरिराज जी आपका स्नेहा…tag:openbooks.ning.com,2014-07-01:5170231:Comment:5548112014-07-01T04:38:00.780Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ० भाई गिरिराज जी आपका स्नेहाशीष पाकर धन्य हुआ , उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद l</p>
<p>आ० भाई गिरिराज जी आपका स्नेहाशीष पाकर धन्य हुआ , उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद l</p> आ० भाई जीतेन्द्र जी ग़ज़ल आप तक…tag:openbooks.ning.com,2014-07-01:5170231:Comment:5547252014-07-01T04:35:00.514Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ० भाई जीतेन्द्र जी ग़ज़ल आप तक पहुंची लेखन सार्थक हुआ हार्दिक धन्यवाद l</p>
<p>आ० भाई जीतेन्द्र जी ग़ज़ल आप तक पहुंची लेखन सार्थक हुआ हार्दिक धन्यवाद l</p> अच्छी ग़ज़ल। आपको बधाई।tag:openbooks.ning.com,2014-06-30:5170231:Comment:5544052014-06-30T17:59:47.673Zबृजेश नीरजhttp://openbooks.ning.com/profile/BrijeshKumarSingh
अच्छी ग़ज़ल। आपको बधाई।
अच्छी ग़ज़ल। आपको बधाई। आदरणीय लक्ष्मण भाई , पूरी ग़ज़ल…tag:openbooks.ning.com,2014-06-30:5170231:Comment:5545432014-06-30T12:48:48.719Zगिरिराज भंडारीhttp://openbooks.ning.com/profile/girirajbhandari
<p>आदरणीय लक्ष्मण भाई , पूरी ग़ज़ल बहुत अच्छी कही है , आपको हार्दिक बधाइयाँ ।</p>
<p>तुझे क्यों खांसना उसका दिनों में भी अखरता है<br/> पिता जो तेरे बचपन में भरी शब सो नहीं पाया --------- बात अन्दर तक लगी । बधाई भाई जी ।</p>
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<p>आदरणीय लक्ष्मण भाई , पूरी ग़ज़ल बहुत अच्छी कही है , आपको हार्दिक बधाइयाँ ।</p>
<p>तुझे क्यों खांसना उसका दिनों में भी अखरता है<br/> पिता जो तेरे बचपन में भरी शब सो नहीं पाया --------- बात अन्दर तक लगी । बधाई भाई जी ।</p>
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