Comments - इस अन्धकार में कितनी सदियाँ और बिताना बाकी है ? - Open Books Online2024-03-29T08:15:30Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A546447&xn_auth=noमर्यादा पुरुषोत्तम से अपना अप…tag:openbooks.ning.com,2014-06-08:5170231:Comment:5470482014-06-08T16:08:10.670Zrajesh kumarihttp://openbooks.ning.com/profile/rajeshkumari
<p>मर्यादा पुरुषोत्तम से अपना अपराध पूछती ,<br/>कितनी वैदेही कल भी थीं और आज भी हैं !<br/>हाथ बाँधे खड़े महारथियों से न्याय माँगती ,<br/>लज्जित द्रौपदी कल भी थीं और आज भी हैं !!------आपने सही कहा आज भी कोई फर्क नहीं लगता ....राक्षस उस वक़्त भी थे ..आज भी हैं बहुत प्रभाव शाली भावपूर्ण प्रस्तुति है बहुत- बहुत बधाई आपको </p>
<p>मर्यादा पुरुषोत्तम से अपना अपराध पूछती ,<br/>कितनी वैदेही कल भी थीं और आज भी हैं !<br/>हाथ बाँधे खड़े महारथियों से न्याय माँगती ,<br/>लज्जित द्रौपदी कल भी थीं और आज भी हैं !!------आपने सही कहा आज भी कोई फर्क नहीं लगता ....राक्षस उस वक़्त भी थे ..आज भी हैं बहुत प्रभाव शाली भावपूर्ण प्रस्तुति है बहुत- बहुत बधाई आपको </p> अच्छी रचना वाहहहहहहहहहहहहहtag:openbooks.ning.com,2014-06-08:5170231:Comment:5468552014-06-08T02:47:11.587Zumesh katarahttp://openbooks.ning.com/profile/umeshkatara437
<p>अच्छी रचना वाहहहहहहहहहहहहह</p>
<p>अच्छी रचना वाहहहहहहहहहहहहह</p> सुन्दर .. सामयिक रचना हेतु ब…tag:openbooks.ning.com,2014-06-07:5170231:Comment:5470152014-06-07T15:52:07.715ZMeena Pathakhttp://openbooks.ning.com/profile/MeenaPathak
<p>सुन्दर .. सामयिक रचना हेतु बधाई आ० चिराग जी </p>
<p>सुन्दर .. सामयिक रचना हेतु बधाई आ० चिराग जी </p> रचना का कथ्य बहुत बढ़िया है..स…tag:openbooks.ning.com,2014-06-07:5170231:Comment:5465802014-06-07T08:34:38.323ZDr.Prachi Singhhttp://openbooks.ning.com/profile/DrPrachiSingh376
<p>रचना का कथ्य बहुत बढ़िया है..सामयिक है..सामाजिक है.. </p>
<p>आपके द्वारा चयनित शब्द भी आपके मनोभावों की प्रस्तुति में पूर्णतः सक्षम हैं ..लेकिन शिल्प के स्तर पर ये कविता अभी बहुत सुधार की मांग करती है.</p>
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<p>आप मात्रिकता और गीत/नवगीत विधा पर ज़रा सा ध्यान देकर इस प्रस्तुति के शिल्प को सरलता से साध सकते हैं </p>
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<p>इस सुन्दर प्रयास के लिए हार्दिक बधाई आ० चिराग जी </p>
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<p>रचना का कथ्य बहुत बढ़िया है..सामयिक है..सामाजिक है.. </p>
<p>आपके द्वारा चयनित शब्द भी आपके मनोभावों की प्रस्तुति में पूर्णतः सक्षम हैं ..लेकिन शिल्प के स्तर पर ये कविता अभी बहुत सुधार की मांग करती है.</p>
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<p>आप मात्रिकता और गीत/नवगीत विधा पर ज़रा सा ध्यान देकर इस प्रस्तुति के शिल्प को सरलता से साध सकते हैं </p>
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<p>इस सुन्दर प्रयास के लिए हार्दिक बधाई आ० चिराग जी </p>
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