Comments - Ghazal-6 - Open Books Online2024-03-28T22:51:47Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A5425&xn_auth=noYogi bhai bahut shukria himma…tag:openbooks.ning.com,2010-06-07:5170231:Comment:60682010-06-07T16:18:35.068Zfauzanhttp://openbooks.ning.com/profile/fauzan
Yogi bhai bahut shukria himmat badhane ke liye
Yogi bhai bahut shukria himmat badhane ke liye //ज़िंदगी वो खेल है जिसका समा…tag:openbooks.ning.com,2010-06-07:5170231:Comment:60592010-06-07T15:03:49.059Zयोगराज प्रभाकरhttp://openbooks.ning.com/profile/YograjPrabhakar
//ज़िंदगी वो खेल है जिसका समापन ही नहीं<br />
मौत आई खेल मे मध्यांतर करते हुए//<br />
मौत को मध्यांतर समझना और कहना हरेक के बूते की बात नही ! ये शेयर तो किसी बहुत गहरी अध्यात्मिक सोच की तरफ इशारा कर रहा है ! जियो फौजान भाई जियो, मुझे फख्र है की आप मेरे मित्र हैं !
//ज़िंदगी वो खेल है जिसका समापन ही नहीं<br />
मौत आई खेल मे मध्यांतर करते हुए//<br />
मौत को मध्यांतर समझना और कहना हरेक के बूते की बात नही ! ये शेयर तो किसी बहुत गहरी अध्यात्मिक सोच की तरफ इशारा कर रहा है ! जियो फौजान भाई जियो, मुझे फख्र है की आप मेरे मित्र हैं ! ज़िंदगी वो खेल है जिसका समापन…tag:openbooks.ning.com,2010-06-05:5170231:Comment:56442010-06-05T10:19:36.644ZSanjay Kumar Singhhttp://openbooks.ning.com/profile/SanjayKumarSingh
ज़िंदगी वो खेल है जिसका समापन ही नहीं<br />
मौत आई खेल मे मध्यांतर करते हुए ,<br />
Bahut badhiya likhey hai, aap ki gazal mey jo lajjat hai wo aur jagah nahi milti, bahut badhiya,
ज़िंदगी वो खेल है जिसका समापन ही नहीं<br />
मौत आई खेल मे मध्यांतर करते हुए ,<br />
Bahut badhiya likhey hai, aap ki gazal mey jo lajjat hai wo aur jagah nahi milti, bahut badhiya, उसके चेहरे के वरक़ को झुर्रिय…tag:openbooks.ning.com,2010-06-04:5170231:Comment:55012010-06-04T09:58:05.501Zsatish mapatpurihttp://openbooks.ning.com/profile/satishmapatpuri
उसके चेहरे के वरक़ को झुर्रियों से भर दिया<br />
उम्र की रेखाओं ने हस्ताक्षर करते हुए<br />
<br />
धीरे धीरे बोझ बुनियादों पे कम होता गया<br />
वक़्त यूँ गुज़रा हवेली को खंडहर करते हुए<br />
फौजान भाई, कमाल है.
उसके चेहरे के वरक़ को झुर्रियों से भर दिया<br />
उम्र की रेखाओं ने हस्ताक्षर करते हुए<br />
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धीरे धीरे बोझ बुनियादों पे कम होता गया<br />
वक़्त यूँ गुज़रा हवेली को खंडहर करते हुए<br />
फौजान भाई, कमाल है. उसके चेहरे के वरक़ को झुर्रिय…tag:openbooks.ning.com,2010-06-03:5170231:Comment:54372010-06-03T18:08:59.437ZAdminhttp://openbooks.ning.com/profile/Admin
उसके चेहरे के वरक़ को झुर्रियों से भर दिया<br />
उम्र की रेखाओं ने हस्ताक्षर करते हुए,<br />
<br />
<font color="green">वाह जनाब वाह, आपके उबुरे-क़लम का कोई सानी नही, बहुत ही उम्द्दा ख्यालात है आपके, एक बेहतरीन ग़ज़ल,बहुत बहुत धन्यबाद आपका,</font>
उसके चेहरे के वरक़ को झुर्रियों से भर दिया<br />
उम्र की रेखाओं ने हस्ताक्षर करते हुए,<br />
<br />
<font color="green">वाह जनाब वाह, आपके उबुरे-क़लम का कोई सानी नही, बहुत ही उम्द्दा ख्यालात है आपके, एक बेहतरीन ग़ज़ल,बहुत बहुत धन्यबाद आपका,</font> रक्त से सारा मरुस्थल तरबतर कर…tag:openbooks.ning.com,2010-06-03:5170231:Comment:54352010-06-03T17:45:29.435ZEr. Ganesh Jee "Bagi"http://openbooks.ning.com/profile/GaneshJee
रक्त से सारा मरुस्थल तरबतर करते हुए<br />
प्राण तो त्यागे मगर खुद को अमर करते हुए<br />
<br />
<font color="blue">वाह फ़ौज़ान भाई वाह , क्या शानदार ग़ज़ल आपने लिखा है, आज पुनः मुझे तारीफ के लिए शब्द की कमी महसूस हो रही है, मैं यह टिप्पणी लिखने से पहले आप के इस ग़ज़ल को स्वर देकर प्रीतम भाई को जी टॉक पर सुना रहा था , बहुत ही प्यारा और सारगर्भित रचना बन पड़ा है, सभी शेअर एक पर एक है,</font><br />
<br />
ज़िंदगी वो खेल है जिसका समापन ही नहीं<br />
मौत आई खेल मे मध्यांतर करते हुए,<br />
<br />
<font color="blue">एक सच्चाई है ये....<br />
जिंदगी एक…</font>
रक्त से सारा मरुस्थल तरबतर करते हुए<br />
प्राण तो त्यागे मगर खुद को अमर करते हुए<br />
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<font color="blue">वाह फ़ौज़ान भाई वाह , क्या शानदार ग़ज़ल आपने लिखा है, आज पुनः मुझे तारीफ के लिए शब्द की कमी महसूस हो रही है, मैं यह टिप्पणी लिखने से पहले आप के इस ग़ज़ल को स्वर देकर प्रीतम भाई को जी टॉक पर सुना रहा था , बहुत ही प्यारा और सारगर्भित रचना बन पड़ा है, सभी शेअर एक पर एक है,</font><br />
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ज़िंदगी वो खेल है जिसका समापन ही नहीं<br />
मौत आई खेल मे मध्यांतर करते हुए,<br />
<br />
<font color="blue">एक सच्चाई है ये....<br />
जिंदगी एक खेल, कोई पास कोई फेल,<br />
कुछ लोग जीत कर भी हार जाते है,<br />
और कुछ लोग हार कर भी जीत जाते है,<br />
यही तो है जिंदगी का खेल,</font> सब्र की सारी हदों से कोई आगे…tag:openbooks.ning.com,2010-06-03:5170231:Comment:54292010-06-03T17:10:31.429ZPREETAM TIWARY(PREET)http://openbooks.ning.com/profile/preetamkumartiwary
सब्र की सारी हदों से कोई आगे बढ़ गया<br />
अग्निपथ पे तिशनगी को अग्रसर करते हुए<br />
bahut badhiya fauzan bhai........
सब्र की सारी हदों से कोई आगे बढ़ गया<br />
अग्निपथ पे तिशनगी को अग्रसर करते हुए<br />
bahut badhiya fauzan bhai........ lajawab hai bhai
concntrate h…tag:openbooks.ning.com,2010-06-03:5170231:Comment:54272010-06-03T16:32:54.427ZBiresh kumarhttp://openbooks.ning.com/profile/Bireshkumar
lajawab hai bhai<br />
concntrate hai<br />
kiya piroya hai khubsurti se lafzo ko<br />
mere pas sabd nahi hai .....its just fabulous!!!!!!!!!!!!!
lajawab hai bhai<br />
concntrate hai<br />
kiya piroya hai khubsurti se lafzo ko<br />
mere pas sabd nahi hai .....its just fabulous!!!!!!!!!!!!!