Comments - ग़ज़ल-निलेश 'नूर'- कोई दर्द आँखों में दिखता नहीं है... - Open Books Online2024-03-29T14:54:58Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A459392&xn_auth=noधन्यवाद गीतिका जी, सुशिल जी tag:openbooks.ning.com,2013-10-25:5170231:Comment:4608202013-10-25T02:30:42.409ZNilesh Shevgaonkarhttp://openbooks.ning.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>धन्यवाद गीतिका जी, सुशिल जी </p>
<p>धन्यवाद गीतिका जी, सुशिल जी </p> बहुत सुंदर प्रस्तुति है आ0 नी…tag:openbooks.ning.com,2013-10-24:5170231:Comment:4605782013-10-24T15:18:26.710ZSushil.Joshihttp://openbooks.ning.com/profile/SushilJoshi
<p>बहुत सुंदर प्रस्तुति है आ0 नीलेश जी..... बधाई हो....</p>
<p>बहुत सुंदर प्रस्तुति है आ0 नीलेश जी..... बधाई हो....</p> खूबसूरत गज़ल पर बधाई आ0 नीलेश…tag:openbooks.ning.com,2013-10-24:5170231:Comment:4599922013-10-24T03:32:47.193Zवेदिकाhttp://openbooks.ning.com/profile/vedikagitika
<p>खूबसूरत गज़ल पर बधाई आ0 नीलेश जी!</p>
<p>खूबसूरत गज़ल पर बधाई आ0 नीलेश जी!</p> आदरणीय शकील जी, अरुन जी, गिरि…tag:openbooks.ning.com,2013-10-24:5170231:Comment:4601012013-10-24T03:26:15.642ZNilesh Shevgaonkarhttp://openbooks.ning.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>आदरणीय शकील जी, अरुन जी, गिरिराज जी, आशुतोष जी, विजय जी, अन्नपूर्णा जी ... धन्यवाद..<br></br>आदरणीय बृजेश जी, मै अपनी गलती स्वीकार करता हूँ और इस के लिए किसी व्यस्तता के बहाने की चादर नहीं ओढूंगा. आप की बात को अमल में लाने का प्रयत्न करूँगा.<br></br>आदरणीय सौरभ जी .. आम बोलचाल में दुनियाँ जहान के लिए प्रयुक्त किया है, लेकिन आप ने इंगित किया है तो कुछ और सोचना पड़ेगा....<br></br>आदरणीय वीनस जी .. आप से सहमत हूँ, आप की किसी पोस्ट पर एक टिप्पणी पढ़ी जिसमें आप ने सलाह दी है की रचना पूर्ण होने के 7 दिन बाद तक…</p>
<p>आदरणीय शकील जी, अरुन जी, गिरिराज जी, आशुतोष जी, विजय जी, अन्नपूर्णा जी ... धन्यवाद..<br/>आदरणीय बृजेश जी, मै अपनी गलती स्वीकार करता हूँ और इस के लिए किसी व्यस्तता के बहाने की चादर नहीं ओढूंगा. आप की बात को अमल में लाने का प्रयत्न करूँगा.<br/>आदरणीय सौरभ जी .. आम बोलचाल में दुनियाँ जहान के लिए प्रयुक्त किया है, लेकिन आप ने इंगित किया है तो कुछ और सोचना पड़ेगा....<br/>आदरणीय वीनस जी .. आप से सहमत हूँ, आप की किसी पोस्ट पर एक टिप्पणी पढ़ी जिसमें आप ने सलाह दी है की रचना पूर्ण होने के 7 दिन बाद तक उसे परखें फिर पोस्ट करें ... इसका पालन मै भी करूँगा.... लिखने की रौ में ऐसे बह जाता हूँ की खुद की कमियां नज़र नहीं आती है ... आगे से थोडा और समय दूंगा इस रचनाकर्म को.<br/>आभार <br/> </p> ग़ज़ल के लिए बधाई कुछ शेर प्रभा…tag:openbooks.ning.com,2013-10-23:5170231:Comment:4600752013-10-23T20:29:03.180Zवीनस केसरीhttp://openbooks.ning.com/profile/1q1lxk02g9ue6
<p>ग़ज़ल के लिए बधाई <br/><br/>कुछ शेर प्रभावित करते हैं <br/>कुछ में संशोधन की गुंजाईश दिखती है <br/><br/></p>
<p>ग़ज़ल के लिए बधाई <br/><br/>कुछ शेर प्रभावित करते हैं <br/>कुछ में संशोधन की गुंजाईश दिखती है <br/><br/></p> आपको प्रयासरत देखनाभला भी लगत…tag:openbooks.ning.com,2013-10-23:5170231:Comment:4600592013-10-23T17:01:30.382ZSaurabh Pandeyhttp://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आपको प्रयासरत देखनाभला भी लगता है, आदरणीय. </p>
<p>कुछ शेर तो अपने नये अंदाज़ के कारण प्रभावित करते हैं. बधाई स्वीकारें, आदरणीय.</p>
<p></p>
<p></p>
<p>मक्ते में दुनिया-जहाँ का प्रयोग क्यों हुआ है ? </p>
<p></p>
<p>आपको प्रयासरत देखनाभला भी लगता है, आदरणीय. </p>
<p>कुछ शेर तो अपने नये अंदाज़ के कारण प्रभावित करते हैं. बधाई स्वीकारें, आदरणीय.</p>
<p></p>
<p></p>
<p>मक्ते में दुनिया-जहाँ का प्रयोग क्यों हुआ है ? </p>
<p></p> बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने!…tag:openbooks.ning.com,2013-10-23:5170231:Comment:4601422013-10-23T16:57:48.848Zबृजेश नीरजhttp://openbooks.ning.com/profile/BrijeshKumarSingh
<p>बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने! बहुत बहुत बधाई!</p>
<p>एक निवेदन है कि दूसरे साथियों की रचनाओं पर भी टिप्पणी किया करें जिससे कि हम सब आपके अनुभव का लाभ उठा सकें!</p>
<p>सादर!</p>
<p>बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने! बहुत बहुत बधाई!</p>
<p>एक निवेदन है कि दूसरे साथियों की रचनाओं पर भी टिप्पणी किया करें जिससे कि हम सब आपके अनुभव का लाभ उठा सकें!</p>
<p>सादर!</p> अदरणीय नीलेश जी बहुत जोरदार ग…tag:openbooks.ning.com,2013-10-23:5170231:Comment:4597062013-10-23T13:10:40.154Zannapurna bajpaihttp://openbooks.ning.com/profile/annapurnabajpai
<p>अदरणीय नीलेश जी बहुत जोरदार गजल कही , बहुत बधाई आपको । </p>
<p>अदरणीय नीलेश जी बहुत जोरदार गजल कही , बहुत बधाई आपको । </p> निकेशजी ! सच पूछिए तो गजल जैस…tag:openbooks.ning.com,2013-10-23:5170231:Comment:4596812013-10-23T10:48:53.188Zविजय मिश्रhttp://openbooks.ning.com/profile/37jicf27kggmy
निकेशजी ! सच पूछिए तो गजल जैसे -जैसे आगे बढ़ी है , इसकी मिठास में इजाफ़ा होता चला गया है . प्यारी सी गज़ल .शुक्रिया .
निकेशजी ! सच पूछिए तो गजल जैसे -जैसे आगे बढ़ी है , इसकी मिठास में इजाफ़ा होता चला गया है . प्यारी सी गज़ल .शुक्रिया . हर शेर उम्दा ..कभी तो निकलिए…tag:openbooks.ning.com,2013-10-23:5170231:Comment:4598192013-10-23T10:43:22.028ZDr Ashutosh Mishrahttp://openbooks.ning.com/profile/DrAshutoshMishra
<p>हर शेर उम्दा ..<span>कभी तो निकलिए किसी शाम घर से, </span><br/><span>बहुत रोज़ से चाँद निकला नहीं है. ये शेर तो मुझे बेहद पसंद आया ..सादर बधाई के साथ </span></p>
<p>हर शेर उम्दा ..<span>कभी तो निकलिए किसी शाम घर से, </span><br/><span>बहुत रोज़ से चाँद निकला नहीं है. ये शेर तो मुझे बेहद पसंद आया ..सादर बधाई के साथ </span></p>