Comments - मेरा मन - Open Books Online2024-03-28T08:48:25Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A436461&xn_auth=noआदरणीया विजयाश्री जी
अपने ह…tag:openbooks.ning.com,2013-09-18:5170231:Comment:4370002013-09-18T11:45:20.747ZDr.Prachi Singhhttp://openbooks.ning.com/profile/DrPrachiSingh376
<p>आदरणीया विजयाश्री जी </p>
<p></p>
<p>अपने ही मन को टटोलती.. सत्यान्वेषण के पहले सवाल ..."तुम चाहते क्या हो" का ज़वाब जानते बूझते भी खोजती इस सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बहुत बहुत बधाई.</p>
<p></p>
<p><span>मनोइच्छाओ और <span> बाह्यस्रोतीकरण इन दो शब्दों पर आपका ध्यान पुनः अपेक्षित है </span></span></p>
<p></p>
<p>सादर </p>
<p>आदरणीया विजयाश्री जी </p>
<p></p>
<p>अपने ही मन को टटोलती.. सत्यान्वेषण के पहले सवाल ..."तुम चाहते क्या हो" का ज़वाब जानते बूझते भी खोजती इस सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बहुत बहुत बधाई.</p>
<p></p>
<p><span>मनोइच्छाओ और <span> बाह्यस्रोतीकरण इन दो शब्दों पर आपका ध्यान पुनः अपेक्षित है </span></span></p>
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<p>सादर </p> शुक्रिया सलीम शेख़ जी
....
उम…tag:openbooks.ning.com,2013-09-18:5170231:Comment:4370522013-09-18T11:12:38.074Zvijayashreehttp://openbooks.ning.com/profile/vijayashree
<p>शुक्रिया सलीम शेख़ जी </p>
<p>....</p>
<p>उम्दा शेर के लिए दाद कबूलें </p>
<p>शुक्रिया सलीम शेख़ जी </p>
<p>....</p>
<p>उम्दा शेर के लिए दाद कबूलें </p> ''फिर भीढूंढता क्यामन मेरा''आ…tag:openbooks.ning.com,2013-09-18:5170231:Comment:4370492013-09-18T10:02:49.927Zsaalim sheikhhttp://openbooks.ning.com/profile/saalimsheikh
<p><br/>''फिर भी<br/>ढूंढता क्या<br/>मन मेरा''<br/><span>आदारणीया विजयाश्री जी</span> बहुत ही सुंदर रचना के लिए बधाई <br/>मन आख़िर चाहता क्या है ये सचमुच बहुत बड़ी पहेली है <br/>मैने भी कभी मन की इस उलझन पर कुछ कहने की कोशिश की थी एक शेर पेश है<br/>मंज़िल पे खड़ा हो के सफ़र ढूँढ रहा हूँ/<br/>हूँ साए तले फिर भी शजर ढूँढ रहा हूँ/</p>
<p><br/>''फिर भी<br/>ढूंढता क्या<br/>मन मेरा''<br/><span>आदारणीया विजयाश्री जी</span> बहुत ही सुंदर रचना के लिए बधाई <br/>मन आख़िर चाहता क्या है ये सचमुच बहुत बड़ी पहेली है <br/>मैने भी कभी मन की इस उलझन पर कुछ कहने की कोशिश की थी एक शेर पेश है<br/>मंज़िल पे खड़ा हो के सफ़र ढूँढ रहा हूँ/<br/>हूँ साए तले फिर भी शजर ढूँढ रहा हूँ/</p> हार्दिक आभार आ. विजय निकोर सर tag:openbooks.ning.com,2013-09-18:5170231:Comment:4369062013-09-18T09:19:08.699Zvijayashreehttp://openbooks.ning.com/profile/vijayashree
<p>हार्दिक आभार आ. विजय निकोर सर </p>
<p>हार्दिक आभार आ. विजय निकोर सर </p> आदारणीया विजयाश्री जी:
सुन्…tag:openbooks.ning.com,2013-09-18:5170231:Comment:4368932013-09-18T07:29:14.723Zvijay nikorehttp://openbooks.ning.com/profile/vijaynikore
<p>आदारणीया विजयाश्री जी:</p>
<p> </p>
<p>सुन्दर भावाभिव्यक्ति। बधाई।</p>
<p> </p>
<p>सादर,</p>
<p>विजय निकोर</p>
<p>आदारणीया विजयाश्री जी:</p>
<p> </p>
<p>सुन्दर भावाभिव्यक्ति। बधाई।</p>
<p> </p>
<p>सादर,</p>
<p>विजय निकोर</p> शुक्रिया जितेन्द्र जी tag:openbooks.ning.com,2013-09-18:5170231:Comment:4368862013-09-18T07:02:42.333Zvijayashreehttp://openbooks.ning.com/profile/vijayashree
<p>शुक्रिया जितेन्द्र जी </p>
<p>शुक्रिया जितेन्द्र जी </p> शुक्रिया अन्नपूर्णा बाजपाई जी tag:openbooks.ning.com,2013-09-18:5170231:Comment:4369552013-09-18T07:01:58.576Zvijayashreehttp://openbooks.ning.com/profile/vijayashree
<p>शुक्रिया अन्नपूर्णा बाजपाई जी </p>
<p>शुक्रिया अन्नपूर्णा बाजपाई जी </p> अरुण शर्मा जी
रचना सुंदर लगी…tag:openbooks.ning.com,2013-09-18:5170231:Comment:4370212013-09-18T07:01:06.025Zvijayashreehttp://openbooks.ning.com/profile/vijayashree
<p>अरुण शर्मा जी </p>
<p>रचना सुंदर लगी शुक्रिया ...</p>
<p>इच्छापूर्ति तो कभी होती नहीं है ..तभी तो वो इच्छा है </p>
<p></p>
<p></p>
<p>अरुण शर्मा जी </p>
<p>रचना सुंदर लगी शुक्रिया ...</p>
<p>इच्छापूर्ति तो कभी होती नहीं है ..तभी तो वो इच्छा है </p>
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<p></p> आ. गिरिराज भंडारी जी ...आभार …tag:openbooks.ning.com,2013-09-18:5170231:Comment:4368842013-09-18T06:56:10.978Zvijayashreehttp://openbooks.ning.com/profile/vijayashree
<p>आ. गिरिराज भंडारी जी ...आभार </p>
<p>आपका '' अ-मन होने का प्रयास सार्थक है " विचार से मैं स्वयं भी सहमत हूँ पर इंसान के लिए अ-मन होना बहुत मुश्किल है </p>
<p>आ. गिरिराज भंडारी जी ...आभार </p>
<p>आपका '' अ-मन होने का प्रयास सार्थक है " विचार से मैं स्वयं भी सहमत हूँ पर इंसान के लिए अ-मन होना बहुत मुश्किल है </p> बहुत बढ़िया सवाल, मन आखिर चाहत…tag:openbooks.ning.com,2013-09-17:5170231:Comment:4368552013-09-17T18:16:28.427Zजितेन्द्र पस्टारियाhttp://openbooks.ning.com/profile/JitendraPastariya
<p>बहुत बढ़िया सवाल, मन आखिर चाहता क्या है, आदरणीय अरुण अनंत जी की बात से सहमत हूँ, बहरहाल सुंदर रचना पर, आपको बहुत बहुत बधाई आदरणीया विजयाश्री जी</p>
<p>बहुत बढ़िया सवाल, मन आखिर चाहता क्या है, आदरणीय अरुण अनंत जी की बात से सहमत हूँ, बहरहाल सुंदर रचना पर, आपको बहुत बहुत बधाई आदरणीया विजयाश्री जी</p>