Comments - जीवन की नश्वरता - Open Books Online2024-03-28T11:08:46Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A436191&xn_auth=noआदरणीय सुरेन्द्र जी,आपने रचना…tag:openbooks.ning.com,2013-09-18:5170231:Comment:4372732013-09-18T17:54:08.989ZSavitri Rathorehttp://openbooks.ning.com/profile/SavitriRathore
<p>आदरणीय सुरेन्द्र जी,आपने रचना के मर्म को समझकर मेरी रचनाधर्मिता को और बढ़ावा दिया है,जिसके लिए मैं आपका आभार व्यक्त करती हूँ।</p>
<p>आदरणीय सुरेन्द्र जी,आपने रचना के मर्म को समझकर मेरी रचनाधर्मिता को और बढ़ावा दिया है,जिसके लिए मैं आपका आभार व्यक्त करती हूँ।</p> रामशिरोमणि जी,आपका आभार !tag:openbooks.ning.com,2013-09-18:5170231:Comment:4372042013-09-18T17:51:47.641ZSavitri Rathorehttp://openbooks.ning.com/profile/SavitriRathore
<p>रामशिरोमणि जी,आपका आभार !</p>
<p>रामशिरोमणि जी,आपका आभार !</p> आदरणीय प्राची जी,आपकी अमूल्य…tag:openbooks.ning.com,2013-09-18:5170231:Comment:4373482013-09-18T17:50:29.070ZSavitri Rathorehttp://openbooks.ning.com/profile/SavitriRathore
<p>आदरणीय प्राची जी,आपकी अमूल्य राय हेतु मैं आपकी आभारी हूँ,और निकट भविष्य में मैं अपनी इन कमियों को दूर करने का प्रयास अवश्य करूँगी। वैसे मैं छंद बंधन से मुक्त रहना चाहती हूँ और मुक्त छंद में ही अपनी रचनाएँ लिखना चाहती हूँ।मेरी रचनाओं में निहित कमियों का एक बड़ा कारण,समयाभाव के कारण इस मंच का लाभ न उठा पाना भी था,किन्तु आगे से मैं इस कारण को दूर करने का प्रयास अवश्य करूँगी।</p>
<p>आदरणीय प्राची जी,आपकी अमूल्य राय हेतु मैं आपकी आभारी हूँ,और निकट भविष्य में मैं अपनी इन कमियों को दूर करने का प्रयास अवश्य करूँगी। वैसे मैं छंद बंधन से मुक्त रहना चाहती हूँ और मुक्त छंद में ही अपनी रचनाएँ लिखना चाहती हूँ।मेरी रचनाओं में निहित कमियों का एक बड़ा कारण,समयाभाव के कारण इस मंच का लाभ न उठा पाना भी था,किन्तु आगे से मैं इस कारण को दूर करने का प्रयास अवश्य करूँगी।</p> आदरणीय विजयाश्री जी,आपने रचना…tag:openbooks.ning.com,2013-09-18:5170231:Comment:4372682013-09-18T17:43:00.004ZSavitri Rathorehttp://openbooks.ning.com/profile/SavitriRathore
<p>आदरणीय विजयाश्री जी,आपने रचना के मर्म को समझकर मुझे उत्साहित किया है,जिसके लिए आपका धन्यवाद !</p>
<p>आदरणीय विजयाश्री जी,आपने रचना के मर्म को समझकर मुझे उत्साहित किया है,जिसके लिए आपका धन्यवाद !</p> आदरणीय विजय जी,आप जैसे पूजनीय…tag:openbooks.ning.com,2013-09-18:5170231:Comment:4372672013-09-18T17:41:01.981ZSavitri Rathorehttp://openbooks.ning.com/profile/SavitriRathore
<p>आदरणीय विजय जी,आप जैसे पूजनीय व्यक्ति जब मेरी रचना पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं, तो मुझे प्रेरणा मिलती है,जिसके लिए मैं आपकी आभारी हूँ।<br/><br/></p>
<p>आदरणीय विजय जी,आप जैसे पूजनीय व्यक्ति जब मेरी रचना पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं, तो मुझे प्रेरणा मिलती है,जिसके लिए मैं आपकी आभारी हूँ।<br/><br/></p> जितेन्द्र जी,आपका बहुत- बहुत…tag:openbooks.ning.com,2013-09-18:5170231:Comment:4372662013-09-18T17:38:41.692ZSavitri Rathorehttp://openbooks.ning.com/profile/SavitriRathore
<p>जितेन्द्र जी,आपका बहुत- बहुत आभार !</p>
<p>जितेन्द्र जी,आपका बहुत- बहुत आभार !</p> अन्नपूर्णा जी,आपकी सराहना हेत…tag:openbooks.ning.com,2013-09-18:5170231:Comment:4371052013-09-18T17:37:40.893ZSavitri Rathorehttp://openbooks.ning.com/profile/SavitriRathore
<p>अन्नपूर्णा जी,आपकी सराहना हेतु आभारी हूँ।</p>
<p>अन्नपूर्णा जी,आपकी सराहना हेतु आभारी हूँ।</p> जब छोड़कर जाना है सब,तो क्यों…tag:openbooks.ning.com,2013-09-18:5170231:Comment:4371842013-09-18T14:00:53.723ZSURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMARhttp://openbooks.ning.com/profile/SURENDRAKUMARSHUKLABHRAMAR
<p><span>जब छोड़कर जाना है सब,</span><br/><span>तो क्यों तू इतना इतराया है।</span><br/><span>जब झूठे हैं ये सारे बंधन,</span><br/><span>क्यों इनमें स्वयं को रमाया है।</span><br/><span>फिर तोड़ दे तू ये सारे बंधन,</span><br/><span>इनके भ्रम से बाहर निकल तू।</span><br/><span>रे मन ! दृढ़ता का बीज बो,</span><br/><span>आज कठोर होता चल तू।</span></p>
<p>आदरणीया सावित्री जी ..सुन्दर रचना ... इस नश्वर संसार में ये सब जानते हुये भी काश कोई थोडा भी सुधरे मानव बने तो आनंद और आये <br/>आभार <br/>भ्रमर ५</p>
<p><span>जब छोड़कर जाना है सब,</span><br/><span>तो क्यों तू इतना इतराया है।</span><br/><span>जब झूठे हैं ये सारे बंधन,</span><br/><span>क्यों इनमें स्वयं को रमाया है।</span><br/><span>फिर तोड़ दे तू ये सारे बंधन,</span><br/><span>इनके भ्रम से बाहर निकल तू।</span><br/><span>रे मन ! दृढ़ता का बीज बो,</span><br/><span>आज कठोर होता चल तू।</span></p>
<p>आदरणीया सावित्री जी ..सुन्दर रचना ... इस नश्वर संसार में ये सब जानते हुये भी काश कोई थोडा भी सुधरे मानव बने तो आनंद और आये <br/>आभार <br/>भ्रमर ५</p> सुंदर रचना , बहुत बहुत बधाई…tag:openbooks.ning.com,2013-09-18:5170231:Comment:4373252013-09-18T13:54:04.921Zram shiromani pathakhttp://openbooks.ning.com/profile/ramshiromanipathak
<p><span>सुंदर रचना , बहुत बहुत बधाई आदरणीया सावित्री जी</span></p>
<p><span>सुंदर रचना , बहुत बहुत बधाई आदरणीया सावित्री जी</span></p> आदरणीया सावित्री जी
रचना के…tag:openbooks.ning.com,2013-09-18:5170231:Comment:4370592013-09-18T11:49:44.128ZDr.Prachi Singhhttp://openbooks.ning.com/profile/DrPrachiSingh376
<p>आदरणीया सावित्री जी </p>
<p>रचना के भाव बहुत सुन्दर हैं... पर अब आपकी अभिव्यक्तियों में गेयता व शिल्प की कमी खलने सी लगती है.. आखिर आप अब तक मंच पर प्रवाहित ज्ञान गंगा का लाभ उठाने से वंचित क्यों ?</p>
<p>आपके सद्प्रयासों की अपेक्षा है और सुगठित रचनाओं की प्रतीक्षा.</p>
<p></p>
<p>सादर.</p>
<p>आदरणीया सावित्री जी </p>
<p>रचना के भाव बहुत सुन्दर हैं... पर अब आपकी अभिव्यक्तियों में गेयता व शिल्प की कमी खलने सी लगती है.. आखिर आप अब तक मंच पर प्रवाहित ज्ञान गंगा का लाभ उठाने से वंचित क्यों ?</p>
<p>आपके सद्प्रयासों की अपेक्षा है और सुगठित रचनाओं की प्रतीक्षा.</p>
<p></p>
<p>सादर.</p>