Comments - ग़ज़ल - कहकहों के दायरे में ..{अभिनव अरुण} - Open Books Online2024-03-29T08:02:06Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A418137&xn_auth=noबहुत आभार आ. अखिलेश जी अशार आ…tag:openbooks.ning.com,2013-09-01:5170231:Comment:4263312013-09-01T14:15:00.302ZAbhinav Arunhttp://openbooks.ning.com/profile/ArunKumarPandeyAbhinav
<p>बहुत आभार आ. अखिलेश जी अशार आपके पसंद आये लेखन सार्थक हुआ .</p>
<p>बहुत आभार आ. अखिलेश जी अशार आपके पसंद आये लेखन सार्थक हुआ .</p> बढ़ रहा है कद अँधेरे का शहर मे…tag:openbooks.ning.com,2013-09-01:5170231:Comment:4263212013-09-01T12:45:37.748Zअखिलेश कृष्ण श्रीवास्तवhttp://openbooks.ning.com/profile/1j78r4oio7ulh
<p>बढ़ रहा है कद अँधेरे का शहर में देखिये ,</p>
<p>हाशिये पर गाँव का दुबका हुआ अरमान है | ************************************** अरुण भाई- ये पंक्तियां इस गजल की जान हैं । <span>बधाई !!</span></p>
<p>बढ़ रहा है कद अँधेरे का शहर में देखिये ,</p>
<p>हाशिये पर गाँव का दुबका हुआ अरमान है | ************************************** अरुण भाई- ये पंक्तियां इस गजल की जान हैं । <span>बधाई !!</span></p> आ. मंजरी जी बहुत आभार आपका रच…tag:openbooks.ning.com,2013-08-25:5170231:Comment:4207462013-08-25T13:38:02.995ZAbhinav Arunhttp://openbooks.ning.com/profile/ArunKumarPandeyAbhinav
आ. मंजरी जी बहुत आभार आपका रचना की सराहना के लिए !!
आ. मंजरी जी बहुत आभार आपका रचना की सराहना के लिए !!
बढ़ रहा है कद अँधेरे का…tag:openbooks.ning.com,2013-08-25:5170231:Comment:4206432013-08-25T09:47:33.870Zmrs manjari pandeyhttp://openbooks.ning.com/profile/mrsmanjaripandey
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<p>बढ़ रहा है कद अँधेरे का शहर में देखिये ,</p>
<p>हाशिये पर गाँव का दुबका हुआ अरमान है | आदरणीय अभिव अरूण जी अन्तर्मन को छूती हुई बेहतरीन गज़ल . हार्दिक बधाई</p>
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<p>हाट एक सजती है पगडण्डी के दोनों छोर पर ,</p>
<p>और इच्छाएं लिए घुटता हुआ इंसान है | </p>
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<p>बढ़ रहा है कद अँधेरे का शहर में देखिये ,</p>
<p>हाशिये पर गाँव का दुबका हुआ अरमान है | आदरणीय अभिव अरूण जी अन्तर्मन को छूती हुई बेहतरीन गज़ल . हार्दिक बधाई</p>
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<p>हाट एक सजती है पगडण्डी के दोनों छोर पर ,</p>
<p>और इच्छाएं लिए घुटता हुआ इंसान है | </p> ये शेर मेरा भी पसंदीदा है आ. …tag:openbooks.ning.com,2013-08-22:5170231:Comment:4192332013-08-22T09:30:40.289ZAbhinav Arunhttp://openbooks.ning.com/profile/ArunKumarPandeyAbhinav
<p>ये शेर मेरा भी पसंदीदा है आ. केवल जी ..अनुमोदन केलिए हार्दिक रूप से धन्यवाद आपका !!</p>
<p>ये शेर मेरा भी पसंदीदा है आ. केवल जी ..अनुमोदन केलिए हार्दिक रूप से धन्यवाद आपका !!</p> आ0 अभिनव अरून भाई जी! सादर प्…tag:openbooks.ning.com,2013-08-22:5170231:Comment:4190062013-08-22T03:53:31.115Zकेवल प्रसाद 'सत्यम'http://openbooks.ning.com/profile/kewalprasad
<p>आ0 अभिनव अरून भाई जी! सादर प्रणाम! लाजवाब और शानदार गजल। बहुत सुन्दर... //छू के उस नाज़ुक बदन को खुशबुओं ने ये कहा, ज़िन्दगी से दूर साँसों की कहाँ पहचान है// बेहतरीन गजल प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,</p>
<p>आ0 अभिनव अरून भाई जी! सादर प्रणाम! लाजवाब और शानदार गजल। बहुत सुन्दर... //छू के उस नाज़ुक बदन को खुशबुओं ने ये कहा, ज़िन्दगी से दूर साँसों की कहाँ पहचान है// बेहतरीन गजल प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,</p> आ.श्री पियूष जी , ग़ज़ल को सराह…tag:openbooks.ning.com,2013-08-22:5170231:Comment:4188852013-08-22T00:41:04.147ZAbhinav Arunhttp://openbooks.ning.com/profile/ArunKumarPandeyAbhinav
<p>आ.श्री पियूष जी , ग़ज़ल को सराहने का शुक्रिया . आप ने जो विन्दु उठाये हैं उनपे पुनर्विचार कर सूचित करता हूँ ..सादर !!</p>
<p>आ.श्री पियूष जी , ग़ज़ल को सराहने का शुक्रिया . आप ने जो विन्दु उठाये हैं उनपे पुनर्विचार कर सूचित करता हूँ ..सादर !!</p> हाँ आम ही हूँ... पर आज इस आम …tag:openbooks.ning.com,2013-08-22:5170231:Comment:4188032013-08-22T00:39:13.101ZAbhinav Arunhttp://openbooks.ning.com/profile/ArunKumarPandeyAbhinav
<p>हाँ आम ही हूँ... पर आज इस आम का सीजन नहीं रहा हर तरफ मुलम्मों का बोलबाला है उसे चीरने कोशिश रहती हैं मेरी रचनाएँ.. आपने मान दिया.. ह्रदय से आभार आ . गीतिका जी !!</p>
<p>हाँ आम ही हूँ... पर आज इस आम का सीजन नहीं रहा हर तरफ मुलम्मों का बोलबाला है उसे चीरने कोशिश रहती हैं मेरी रचनाएँ.. आपने मान दिया.. ह्रदय से आभार आ . गीतिका जी !!</p> बहुत बहुत आभार श्री अरविन्द ज…tag:openbooks.ning.com,2013-08-22:5170231:Comment:4189992013-08-22T00:08:11.998ZAbhinav Arunhttp://openbooks.ning.com/profile/ArunKumarPandeyAbhinav
<p>बहुत बहुत आभार श्री अरविन्द जी !आपने शेर सराहा लेखन समादृत हुआ !!</p>
<p>बहुत बहुत आभार श्री अरविन्द जी !आपने शेर सराहा लेखन समादृत हुआ !!</p> हाट एक सजती है पगडण्डी के दोन…tag:openbooks.ning.com,2013-08-21:5170231:Comment:4188682013-08-21T15:44:15.285ZARVIND BHATNAGARhttp://openbooks.ning.com/profile/ARVINDBHATNAGAR
<p>हाट एक सजती है पगडण्डी के दोनों छोर पर ,</p>
<p>और इच्छाएं लिए घुटता हुआ इंसान है…</p>
<p>हाट एक सजती है पगडण्डी के दोनों छोर पर ,</p>
<p>और इच्छाएं लिए घुटता हुआ इंसान है |..........<span>शानदार</span><span> <span>शेर</span><span> <span>है</span><span> ....<span>कुछ</span><span> <span>कह</span><span> <span>जाता</span><span> <span>है</span><span>.... <span>दोहराने</span><span> <span>का</span><span> <span>मान</span><span> <span>करता</span><span> <span>है</span><span>| <span>बधाई</span><span>|</span></span></span></span></span></span></span></span></span></span><span><br/></span></span></span></span></p>
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