Comments - प्रकृति का विनाश - Open Books Online2024-03-29T08:02:19Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A391643&xn_auth=noआदरणीय सतबीर जी आपका हार्दिक…tag:openbooks.ning.com,2013-07-06:5170231:Comment:3928762013-07-06T14:20:45.186Zबृजेश नीरजhttp://openbooks.ning.com/profile/BrijeshKumarSingh
<p>आदरणीय सतबीर जी आपका हार्दिक आभार कि आपने मेरे कहे को मान दिया।<br/>सादर!</p>
<p>आदरणीय सतबीर जी आपका हार्दिक आभार कि आपने मेरे कहे को मान दिया।<br/>सादर!</p> रचना पसन्द करने और अपनी सुन्द…tag:openbooks.ning.com,2013-07-06:5170231:Comment:3928572013-07-06T13:19:54.176Zसतवीर वर्मा 'बिरकाळी'http://openbooks.ning.com/profile/SatveerVermaBirkali
रचना पसन्द करने और अपनी सुन्दर प्रतिक्रिया द्वारा प्रोत्साहन करने हेतु आपका आभार आ॰ विजय मिश्र जी।
रचना पसन्द करने और अपनी सुन्दर प्रतिक्रिया द्वारा प्रोत्साहन करने हेतु आपका आभार आ॰ विजय मिश्र जी। आ॰ बृजेश नीरज जी, रचना लिखते…tag:openbooks.ning.com,2013-07-06:5170231:Comment:3929232013-07-06T13:17:43.269Zसतवीर वर्मा 'बिरकाळी'http://openbooks.ning.com/profile/SatveerVermaBirkali
आ॰ बृजेश नीरज जी, रचना लिखते समय यही लगता है कि चलो जो सन्देश देना था उसके लिए इतना काफी है। पर जब रचना एक पाठक के तौर पर दोबारा पढता हूँ तो यही सोचता हूँ कि रचना को कुछ और समय की जरुरत थी। आपकी सलाह अगली रचना में जरुर याद रखुँगा।<br />
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प्रकृति में भी भावनाएँ होती हैं का भावार्थ ये है कि कुछ स्वार्थी लोग ये सोचने लगते हैं कि प्रकृति अमूर्त है और इसके साथ कैसा भी व्यवहार किया जाए, ये कुछ नहीं कहती है। पर प्रकृति भी अपने क्रियाकलापों द्वारा मानव के द्वारा प्रकृति पर किए गये अत्याचार या संपोषण पर…
आ॰ बृजेश नीरज जी, रचना लिखते समय यही लगता है कि चलो जो सन्देश देना था उसके लिए इतना काफी है। पर जब रचना एक पाठक के तौर पर दोबारा पढता हूँ तो यही सोचता हूँ कि रचना को कुछ और समय की जरुरत थी। आपकी सलाह अगली रचना में जरुर याद रखुँगा।<br />
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प्रकृति में भी भावनाएँ होती हैं का भावार्थ ये है कि कुछ स्वार्थी लोग ये सोचने लगते हैं कि प्रकृति अमूर्त है और इसके साथ कैसा भी व्यवहार किया जाए, ये कुछ नहीं कहती है। पर प्रकृति भी अपने क्रियाकलापों द्वारा मानव के द्वारा प्रकृति पर किए गये अत्याचार या संपोषण पर प्रतिक्रिया व्यक्त करती है। उत्तराखंड में बादल फटने की क्रिया मानव की करतूतों का परिणाम है जिसके द्वारा प्रकृति कहना चाहती है कि अति सर्वत्र वर्जयेत। सुन्दर प्रतिक्रिया के लिए आभा…tag:openbooks.ning.com,2013-07-06:5170231:Comment:3928542013-07-06T13:09:49.078Zसतवीर वर्मा 'बिरकाळी'http://openbooks.ning.com/profile/SatveerVermaBirkali
सुन्दर प्रतिक्रिया के लिए आभार आ॰ राजेश कुमारी जी।
सुन्दर प्रतिक्रिया के लिए आभार आ॰ राजेश कुमारी जी। "प्रकृति होती है नारी स्वरुपा…tag:openbooks.ning.com,2013-07-06:5170231:Comment:3926612013-07-06T11:36:05.923Zविजय मिश्रhttp://openbooks.ning.com/profile/37jicf27kggmy
"प्रकृति होती है नारी स्वरुपा<br />
होती है सहनशील " ---- अति को प्रकृति अंत करती है ,तुरन्त करती है और जब करती है तो सूद-ब्याज के साथ करती है .शिक्षाप्रद सन्देश भी एक सुन्दर कविता भी .बधाई सतवीरजी
"प्रकृति होती है नारी स्वरुपा<br />
होती है सहनशील " ---- अति को प्रकृति अंत करती है ,तुरन्त करती है और जब करती है तो सूद-ब्याज के साथ करती है .शिक्षाप्रद सन्देश भी एक सुन्दर कविता भी .बधाई सतवीरजी आदरणीय सतवीर जी आपने विषय बहु…tag:openbooks.ning.com,2013-07-05:5170231:Comment:3922522013-07-05T13:03:47.521Zबृजेश नीरजhttp://openbooks.ning.com/profile/BrijeshKumarSingh
<p>आदरणीय सतवीर जी आपने विषय बहुत अच्छा चुना! आपके इस प्रयास पर आपको हार्दिक बधाई! कुछ समय और देना चाहिए था रचना को।</p>
<p>इस पंक्ति का अर्थ स्पष्ट करने का कष्ट करें। //भावनाएँ प्रकृति में भी//?</p>
<p>सादर!</p>
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<p>आदरणीय सतवीर जी आपने विषय बहुत अच्छा चुना! आपके इस प्रयास पर आपको हार्दिक बधाई! कुछ समय और देना चाहिए था रचना को।</p>
<p>इस पंक्ति का अर्थ स्पष्ट करने का कष्ट करें। //भावनाएँ प्रकृति में भी//?</p>
<p>सादर!</p>
<p> </p> प्रकृति से मनमानी ही तो विनाश…tag:openbooks.ning.com,2013-07-05:5170231:Comment:3923312013-07-05T11:54:48.913Zrajesh kumarihttp://openbooks.ning.com/profile/rajeshkumari
<p><span>प्रकृति से मनमानी ही तो विनाश का कारण </span><span> बनती है जो पूर्णतः स्पष्ट है प्रस्तुति में बधाई </span></p>
<p><span>प्रकृति से मनमानी ही तो विनाश का कारण </span><span> बनती है जो पूर्णतः स्पष्ट है प्रस्तुति में बधाई </span></p> अपनी सुन्दर प्रतिक्रिया देकर…tag:openbooks.ning.com,2013-07-04:5170231:Comment:3916742013-07-04T12:30:59.068Zसतवीर वर्मा 'बिरकाळी'http://openbooks.ning.com/profile/SatveerVermaBirkali
अपनी सुन्दर प्रतिक्रिया देकर प्रोत्साहन करने के लिए आभार आदरणीया कुन्ती मुकर्जी जी।
अपनी सुन्दर प्रतिक्रिया देकर प्रोत्साहन करने के लिए आभार आदरणीया कुन्ती मुकर्जी जी। अपनी सुन्दर प्रतिक्रिया देकर…tag:openbooks.ning.com,2013-07-04:5170231:Comment:3914802013-07-04T12:30:48.085Zसतवीर वर्मा 'बिरकाळी'http://openbooks.ning.com/profile/SatveerVermaBirkali
अपनी सुन्दर प्रतिक्रिया देकर प्रोत्साहन करने के लिए आभार आदरणीय कुन्ती मुकर्जी जी।
अपनी सुन्दर प्रतिक्रिया देकर प्रोत्साहन करने के लिए आभार आदरणीय कुन्ती मुकर्जी जी। एक छोटे से प्रयास पर अपनी प्र…tag:openbooks.ning.com,2013-07-04:5170231:Comment:3916722013-07-04T12:29:19.194Zसतवीर वर्मा 'बिरकाळी'http://openbooks.ning.com/profile/SatveerVermaBirkali
एक छोटे से प्रयास पर अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए आभार आदरणीय रविकर जी।
एक छोटे से प्रयास पर अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए आभार आदरणीय रविकर जी।